भारत में दिव्यांगजनों (PwD) के समक्ष आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन्हें सामाजिक भागीदारी हेतु सशक्त बनाने के लिये प्रभावी उपाय बताइए। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में दिव्यांगजनों (PwDs) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारत में दिव्यांगजनों (PwDs) के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- पूर्ण सामाजिक भागीदारी हेतु उन्हें सशक्त बनाने हेतु प्रभावी उपाय बताइये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
जनगणना 2011 के अनुसार, देश में दिव्यांगजनों की संख्या 2.68 करोड़ (जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21% है) है। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के अनुसार 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को चिह्नित किया गया है, जिनमें लोकोमोटर या चलन संबंधी दिव्यांगता, दृश्य दिव्यांगता, श्रवण दिव्यांगता, वाणी एवं भाषा दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, बहु दिव्यांगता, मस्तिष्क पक्षाघात, बौनापन आदि शामिल हैं।
मुख्य भाग:
भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ:
- अगम्य अवसंरचना (Inaccessible Infrastructure): मौजूदा अवसंरचना दिव्यांगजनों के लिये प्राय: अगम्य या दुर्गम्य है। सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और यहाँ तक कि कई निजी इमारतों में उपयुक्त रैंप, लिफ्ट या टैक्टाइल पैविंग का अभाव पाया जाता है।
- दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग (Department of Empowerment of Persons with Disabilities) की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 3% इमारतें ही पूरी तरह से अभिगम्य पाई गईं।
- शैक्षिक अपवर्जन: शिक्षा का अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के बावजूद कई दिव्यांगजनों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- लगभग 45% दिव्यांगजन निरक्षर हैं और 3 से 35 आयु वर्ग के केवल 62.9% दिव्यांगजन कभी भी नियमित स्कूल गए हैं।
- पूर्वाग्रह: दिव्यांगजनों को सार्थक रोज़गार प्राप्त करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- भारत में लगभग 3 करोड़ दिव्यांगजन हैं, जिनमें से लगभग 1.3 करोड़ रोज़गार योग्यता रखते हैं, लेकिन उनमें से केवल 34 लाख को ही रोज़गार प्राप्त हुआ है।
- स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बाधाएँ: उपयुक्त स्वास्थ्य देखभाल तक अभिगम्यता दिव्यांगजनों के लिये एक गंभीर चुनौती बनी हुई है ।
- कई स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में दिव्यांगजनों के अनुकूल उपकरणों या विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव पाया जाता है।
- सामाजिक कलंक की अदृश्य जंज़ीरें: दिव्यांगता के बारे में गहन रूप से व्याप्त सामाजिक कलंक और गलत धारणाएँ दिव्यांगों को हाशिये पर धकेलती रहती हैं।
- उन्हें प्रायः भेदभाव, सामाजिक गतिविधियों से अपवर्जन और यहाँ तक कि हिंसा का भी सामना करना पड़ता है।
- यह सामाजिक अपवर्जन उनके मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की समग्र गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
- डिजिटल डिवाइड- अपवर्जन का एक नया मोर्चा, जैसे- जैसे भारत तेज़ी से डिजिटल होता जा रहा है, विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रौद्योगिकियों की अगम्यता के कारण दिव्यांगजन पीछे छूटते जा रहे हैं।
- वेब एक्सेसिबिलिटी वार्षिक रिपोर्ट (2020) में पाया गया कि 98% वेबसाइट दिव्यांगजनों के लिये अभिगम्यता संबंधी आवश्यकताओं का पालन करने में विफल रहे थे।
- विधिक और नीति कार्यान्वयन संबंधी अंतराल– यद्यपि भारत में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 जैसे प्रगतिशील कानून मौजूद हैं, फिर भी इनका कार्यान्वयन एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- उदाहरण के लिये, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग की 2019 की रिपोर्ट से उज़ागर हुआ कि 35 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 23 ने ही दिव्यांगता पर राज्य सलाहकार बोर्ड का गठन किया था, जैसा कि अधिनियम द्वारा अनिवार्य बनाया गया है।
भारत में दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने के उपाय:
- दिव्यांगजनों के अनुकूल अवसंरचना: सार्वजनिक अवसंरचना को दिव्यांगजनों के अनुकूल बनाने के लिये उन्नत करना, जिसमें स्पष्ट रूप से चिह्नित रैम्प, टैक्टाइल पैथ, सुगम्य सार्वजनिक परिवहन और कार्यस्थलों पर एडेप्टिव प्रौद्योगिकी का उपयोग शामिल होंगे।
- स्कूल, अस्पताल और डिजिटल सेवाओं को सभी के लिये आसानी से सुलभ बनाने के लिये सख्त दिशा-निर्देश लागू किये जाएँ।
- कृत्रिम अंगों के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास: भारत में दिव्यांगजनों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये कृत्रिम अंगों के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास (R&D) में वृद्धि करना महत्त्वपूर्ण है।
- कृत्रिम अंगों में नवाचार के लिये समर्पित सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों से वित्तपोषण को बढ़ाकर यह हासिल किया जा सकता है।
- विशिष्ट राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कृत्रिम अंग अनुसंधान केंद्रों की स्थापना से अत्याधुनिक विकास के लिये केंद्रित वातावरण उपलब्ध होगा।
- दिव्यांगजनों की स्पष्ट पहचान: यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि केवल वास्तविक दिव्यांगजनों को ही लाभ मिले और इसके लिये एक सख्त पहचान एवं सत्यापन प्रणाली का कार्यान्वयन किया जाए।
- एक केंद्रीकृत डिजिटल डाटाबेस के सृजन के साथ इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, जो बायोमीट्रिक प्रामाणीकरण और नियमित ऑडिट के माध्यम से दिव्यांगता प्रमाण-पत्रों को रिकॉर्ड करेगा तथा उन्हें सत्यापित करेगा।
- इस डेटाबेस को नियमित रूप से अद्यतन करने तथा अन्य सरकारी अभिलेखों के साथ इसके मिलान से झूठे दावों के मामलों की पहचान करने तथा उन्हें रद्द करने में मदद मिलेगी।
- दिव्यांगजनों के बारे में प्रचलित धारणाओं में बदलाव लाना: ‘विकलांग’ के स्थान पर ‘दिव्यांग’ जैसे सशक्तीकारी शब्दों के प्रयोग को बढ़ावा देकर सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाया जाए।
- अधिक समावेशी और सम्मानकारी समाज को बढ़ावा देने के लिये मीडिया, कला तथा सार्वजनिक मंचों के माध्यम से दिव्यांगजनों की क्षमताओं एवं उपलब्धियों को उजागर किया जाना चाहिये।
- ‘बढ़ते कदम’ पहल इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- AI-संचालित सुगम्यता ऑडिट: शहरी योजना-निर्माण में AI-संचालित सुगम्यता ऑडिट क्रियान्वित किया जाए।
- शहरी अवसंरचना का विश्लेषण करने के लिये मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग किया जाए, जहाँ तत्काल अभिगम्यता संबंधी अंतराल की पहचान की जा सकती है।
- इसमें सुगम्य मार्गों का मानचित्रण करने, बाधाओं का पता लगाने और सुधार का सुझाव देने के लिये सेंसर नेटवर्क तथा कंप्यूटर विज़न सिस्टम की तैनाती करना भी शामिल हो सकता है।
- ऐसी प्रणाली को निरंतर अपडेट किया जा सकता है, जिससे नगर नियोजकों और दिव्यांगजनों दोनों को गतिशील सुगम्यता संबंधी सूचना मिलती रहेगी।
- ‘यूनिवर्सल डिज़ाइन इनोवेशन हब’: दिव्यांगजनों और नीति निर्माताओं को एक साथ लाकर एक राष्ट्रीय यूनिवर्सल डिज़ाइन इनोवेशन हब की स्थापना की जाए।
- यह हब उत्पादों, सेवाओं और अवसंरचना के लिये नवोन्मेषी तथा लागत प्रभावी सार्वभौमिक डिज़ाइन समाधानों के विकास एवं विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
- यह व्यापक कार्यान्वयन से पहले नई सुगम्यता प्रौद्योगिकियों के लिये परीक्षण स्थल के रूप में भी कार्य कर सकता है।
- न्यूरो-एडेप्टिव लर्निंग प्लेटफॉर्म: न्यूरो-एडेप्टिव लर्निंग प्लेफॉर्म विकसित करने में निवेश करें जो विभिन्न शिक्षण दिव्यांगता रखने वाले छात्रों के लिये शैक्षिक सामग्री को वैयक्तिकृत करने हेतु इलेक्ट्रोएंसेफेलोग्राम (EEG) का उपयोग करते हैं।
- ये प्लेटफॉर्म तत्काल छात्र के संज्ञानात्मक भार, ध्यान के स्तर और सीखने की शैली के अनुसार समायोजित हो सकते हैं, जिससे दिव्यांगजनों के लिये शिक्षा अधिक सुगम्य एवं प्रभावी हो जाएगी।
निष्कर्ष:
इन व्यापक उपायों को अपनाकर, भारत एक ऐसी रूपरेखा तैयार कर सकता है जहाँ दिव्यांगजन न केवल समाज में एकीकृत होंगे बल्कि समान और सक्रिय भागीदार के रूप में भी विकसित होंगे। यह न केवल सामाजिक न्याय का मामला है बल्कि सभी के लिये अधिक समावेशी और समतापूर्ण समाज की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम भी है।