देश की बढ़ती सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की भूमिका में सुधार के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- वर्तमान सुरक्षा ढाँचे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के महत्त्व को समझाइये।
- NSA की भूमिका में सुधार हेतु बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिये।
- भारत में NSA कार्यालय और राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करने के उपाय सुझाएँ।
- भारत के हितों की रक्षा के लिये एक सक्रिय और अनुकूलनीय राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता पर ज़ोर दीजिये।
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भूमिका:
भारत एक जटिल सुरक्षा स्थितियों का सामना कर रहा है, जिसमें आंतरिक और बाहरी खतरें दोनों शामिल है। राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) प्रधानमंत्री के प्रमुख सलाहकार होता हैं। वह जटिल सुरक्षा तथा खुफिया मुद्दों पर गहन विश्लेषण एवं अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। उभरते सुरक्षा परिदृश्य से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये NSA की भूमिका में सुधार हेतु एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
मुख्य भाग :
NSA की भूमिका में सुधार के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता:
- साइबर युद्ध और डिजिटल खतरे: साइबर युद्ध जैसी गतिविधियाँ तेज़ी से विकसित हो रही हैं, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण और बहुआयामी खतरा बन गया है।
- महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को निशाना बनाकर किये जाने वाले राज्य प्रायोजित साइबर हमलों से आवश्यक सेवाएँ तथा बड़े पैमाने पर दैनिक जीवन बाधित होने की संभावना है।
- सीमा पार आतंकवाद और कट्टरपंथ: सीमा पार आतंकवाद और कट्टरपंथ की उभरती प्रकृति भारत के सुरक्षा परिदृश्य के लिये एक बड़ा खतरा बनी हुई है।
- वैश्विक चरमपंथी विचारधाराओं से प्रेरित ‘लोन वुल्फ अटैक’ का उदय आतंकवाद-रोधी प्रयासों में अप्रत्याशितता और जटिलता का एक नया आयाम प्रस्तुत करता है।
- हाल ही में रियासी में हुआ आतंकवादी हमला आतंकवाद के लगातार और विकसित होते खतरे की एक कड़ी को याद दिलाता है।
- सीमा विवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता: भारत को सीमा विवादों, विशेषकर चीन और पाकिस्तान के साथ, की चुनौतियों का लगातार सामना करना पड़ रहा है।
- चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रहे तनाव, जिसका उदाहरण वर्ष 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प है, अचानक वृद्धि की संभावना को उजागर करता है।
- गलवान घाटी में वर्ष 2020 का संघर्ष चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर निरंतर तनाव का एक उदाहरण है, जो अचानक तनाव बढ़ने की संभावना पर ज़ोर देता है।
- अफगानिस्तान और म्याँमार जैसे पड़ोसी देशों में अस्थिरता के कारण शरणार्थी संकट तथा आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि सहित अन्य प्रभावों का ज़ोखिम है।
- अंतरिक्ष एवं उपग्रह सुरक्षा: संचार, नेविगेशन और निगरानी के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर भारत की बढ़ती निर्भरता, उपग्रह अवसंरचना को एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है।
- वैश्विक शक्तियों द्वारा अंतरिक्ष का संभावित सैन्यीकरण, जैसा कि चीन के वर्ष 2007 के उपग्रह-रोधी परीक्षण से प्रदर्शित होता है, अंतरिक्ष सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिये नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
- समुद्री एवं महासागरीय खतरे: भारत को समुद्री क्षेत्र में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें समुद्री डकैती, आतंकवाद और हिंद महासागर में मछली ग्रहण क्षेत्र में संघर्ष शामिल हैं।
- हिंद महासागर में चीन की नौसेना की उपस्थिति का विस्तार (जैसे श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह) भारत के समुद्री हितों के लिये चुनौती है।
- सूचना युद्ध और सोशल मीडिया हेर-फेर: सोशल मीडिया के माध्यम से सूचना का सामाजिक सामंजस्य एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिये एक बड़ा खतरा बन गया है।
- डीपफेक प्रौद्योगिकी का उदय सूचना में जनता के विश्वास को कमज़ोर करता है तथा सामाजिक स्थिरता बनाए रखने और सूचित निर्णय लेने के प्रयासों को जटिल बनाता है।
भारत में NSA कार्यालय और राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करने के उपाय:
- "संपूर्ण-सरकार" राष्ट्रीय सुरक्षा डेटाबेस को कार्यान्वित करना: एक सुरक्षित, केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना जो विभिन्न मंत्रालयों, खुफिया एजेंसियों और सैन्य शाखाओं से वास्तविक समय की जानकारी को एकीकृत करता हो।
- यह प्रणाली NSA और प्रमुख निर्णयकर्त्ताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों तथा अवसरों के बारे में व्यापक, अद्यतन जानकारी उपलब्ध कराएगी।
- राष्ट्रीय सुरक्षा दूरदर्शिता इकाई का गठन: NSA कार्यालय के भीतर एक समर्पित टीम की स्थापना करना जो दीर्घकालिक रणनीतिक योजना और परिदृश्य विश्लेषण पर केंद्रित हो।
- यह इकाई संभावित भावी सुरक्षा चुनौतियों और अवसरों पर नियमित रूप से रिपोर्ट तैयार करेगी, जिससे सक्रिय नीतियों को आकार देने में मदद मिलेगी।
- अंतर-राज्यीय सुरक्षा समन्वय तंत्र विकसित करना: राज्य स्तरीय सुरक्षा अधिकारियों के साथ नियमित परामर्श और समन्वय के लिये NSA के तहत एक औपचारिक संरचना स्थापित करना।
- इससे संघीय और राज्य स्तर पर सूचना साझाकरण तथा नीति कार्यान्वयन में विशेष रूप से सीमा सुरक्षा एवं आतंकवाद-रोधी जैसे मुद्दों पर सुधार होगा।
- नेशनल क्राइसिस सिमुलेशन केंद्र की स्थापना: विभिन्न सुरक्षा परिदृश्यों के नियमित, बड़े पैमाने पर सिमुलेशन आयोजित करने के लिये अत्याधुनिक सुविधा का निर्माण करना।
- यह केंद्र नीति निर्माताओं, सैन्य नेताओं और प्रमुख हितधारकों को जटिल संकटों के लिये समन्वित प्रतिक्रियाओं का अभ्यास करने, समग्र तैयारियों में सुधार करने तथा वर्तमान सुरक्षा ढाँचे में अंतराल की पहचान करने की अनुमति देगा।
- राष्ट्रीय सुरक्षा नवाचार निधि की स्थापना: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के अत्याधुनिक अनुसंधान और विकास में निवेश हेतु एक समर्पित निधि की स्थापना करना।
- यह निधि भारत की सुरक्षा से संबंधित तकनीकी प्रगति की दिशा में क्वांटम कंप्यूटिंग, उन्नत सामग्री, स्वायत्त प्रणालियों और अंतरिक्ष-आधारित प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करेगी।
- राष्ट्रीय संज्ञानात्मक युद्ध केंद्र की स्थापना: युद्ध का सामना करने और उसमें क्षमताएँ विकसित करने के लिये एक विशेष संस्थान का निर्माण करना, जो भारत के सूचना क्षेत्र एवं सामाजिक सामंजस्य की रक्षा पर केंद्रित हो।
- यह केंद्र मनोविज्ञान, डेटा विज्ञान और रणनीतिक संचार में विशेषज्ञता को संयोजित करेगा, ताकि प्रभाव संचालन, दुष्प्रचार अभियानों तथा संज्ञानात्मक हेर-फेर के अन्य रूपों से बचाव किया जा सके एवं संभावित रूप से उनमें संलग्न रह सके।
- पारदर्शी मीट्रिक प्रणाली लागू करना: राष्ट्रीय सुरक्षा परिणामों के लिये प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों का एक समूह विकसित करना, जिसकी नियमित रूप से समीक्षा की जाएगी और प्रासंगिक सरकारी हितधारकों को (सुरक्षित तरीके से) रिपोर्ट की जाएगी।
- इससे जवाबदेही बढ़ेगी और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंधन में निरंतर सुधार का आधार मिलेगा।
निष्कर्ष:
हुड्डा समिति (2019) ने राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में आम नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की सिफारिश की थी। एक सतर्क और अनुकूलनीय राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे को अपनाकर तथा NSA को सशक्त बनाकर, भारत गतिशील वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य को अधिक प्रभावी ढंग से नेविगेट कर सकता है साथ ही 21वीं सदी में अपने हितों एवं सिद्धांतों की रक्षा कर सकता है।