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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    कृषि विकास हेतु अनुकूल वातावरण बनाने वाले नीतिगत सुधारों को अपनाने से भारत अपने राष्ट्रीय विकास की पूर्ण क्षमता का दोहन कर सकेगा। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    10 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • कृषि क्षेत्र के सामने मौजूदा चुनौतियों की व्याख्या कीजिये।
    • इन मुद्दों को हल करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये सुधारों पर चर्चा कीजिये।
    • नीति कार्यान्वयन के लिये रणनीतियाँ और रोडमैप सुझाएँ।

    भूमिका:

    भारत में कृषि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जो देश के लगभग 45% कार्यबल को रोज़गार प्रदान करता है और सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15% का योगदान देता है। यह एक विशाल आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है तथा विभिन्न उद्योगों के लिये कच्चे माल की आपूर्ति करता है। कृषि क्षेत्र का स्वास्थ्य देश के समग्र आर्थिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक स्थिरता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

    मुख्य भाग:

    कृषि क्षेत्र के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ:

    • लघु भूमि जोत:
      • कृषि योग्य भूमि का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा छोटी जोतों में विभाजित है, जो किसानों की बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान और सम्मानजनक आजीविका को सीमित करता है।
      • भारत की कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार, 86.1 प्रतिशत भारतीय किसान छोटे और सीमांत (SMF) हैं, यानी उनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है।
    • आर्थिक कठिनाइयाँ:
      • भारत में किसानों की औसत मासिक आय अपेक्षाकृत कम है, जो कृषि क्षेत्र में उन लोगों के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों को उजागर करती है।
      • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, मज़दूरी, फसल उत्पादन और पशुधन सहित सभी स्रोतों से एक किसान परिवार की औसत मासिक आय लगभग ₹10,218 थी।
    • मृदा क्षरण एवं जल की कमी:
      • कृषि के लिये पानी का अत्यधिक दोहन जलभृतों को कम कर रहा है, जिससे प्रमुख खाद्य उत्पादक क्षेत्रों में सिंचाई करना लगातार अव्यावहारिक होता जा रहा है।
      • भारत के लगभग 90 प्रतिशत भूजल का उपयोग कृषि के लिये किया जाता है।
      • अनुचित भूमि उपयोग पद्धतियाँ, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग तथा अपर्याप्त मृदा संरक्षण में योगदान करता हैं।
    • अपर्याप्त कृषि अवसंरचना और निवेश:
      • अपर्याप्त भंडारण और ‘ कोल्ड चेन’ सुविधाएँ, अपर्याप्त ग्रामीण सड़कें तथा बाज़ारों तक सीमित पहुँच फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान में योगदान करती हैं।
      • कृषि अनुसंधान और विस्तार सेवाओं में निवेश मुद्रास्फीति के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाया है, जिससे वास्तविक वित्तपोषण में गिरावट आई है। यह कम निवेश नवीन एवं कुशल कृषि पद्धतियों को अपनाने में बाधा डालता है।
    • पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ:.
      • भारतीय किसानों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी पारंपरिक खेती के तरीकों पर निर्भर है।
      • सूचना तक सीमित पहुँच, आधुनिक तकनीकों के बारे में जागरूकता की कमी और बदलाव के प्रति प्रतिरोध उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाने में बाधा डालते हैं।
      • कृषि अनुसंधान में यह कम निवेश नवीन और कुशल कृषि पद्धतियों को अपनाने में बाधा डालता है।
    • बाज़ार में अस्थिरता और मूल्य में उतार-चढ़ाव:
      • भारत में किसानों को अक्सर प्रभावी बाज़ार संपर्क, बिचौलियों और मूल्य सूचना की कमी के कारण मूल्य अस्थिरता का सामना करना पड़ता है। इससे वे मूल्य शोषण तथा निवेश पर अनिश्चित रिटर्न के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
      • उपभोक्ताओं के लिये खाद्य कीमतों को कम करने की वैश्विक प्राथमिकताओं के परिणामस्वरूप कृत्रिम रूप से कृषि-द्वार की कीमतों में कमी आती है, जिससे खेती आर्थिक रूप से अव्यवहारिक और पर्यावरण की दृष्टि से अस्थिर हो जाती है।
    • जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाएँ:.
      • अप्रत्याशित मौसम पैटर्न, जलवायु परिवर्तन और बाढ़, चक्रवात एवं सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भारत के कृषि उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती हैं। इन घटनाओं के परिणामस्वरूप फसल का नुकसान, पशुधन मृत्यु एवं किसानों के लिये जोखिम बढ़ सकता है।
      • जलवायु परिवर्तन प्रभाव आकलन के अनुसार, अनुकूलन उपायों को अपनाए बिना, भारत में वर्षा आधारित चावल की पैदावार वर्ष 2050 तक 20% और 2080 तक 47% कम होने का अनुमान है।

    भारत में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिये आगामी कदम:

    • समग्र कृषि दृष्टिकोण:
      • कृषि को उत्पादन, विपणन और उपभोग को शामिल करते हुए एक व्यापक खाद्य प्रणाली के रूप में स्थापित कर सकते है।
      • संस्थागत सुधारों के माध्यम से ऋण, इनपुट और किसान-केंद्रित सलाह तक पहुँच में सुधार करना।
      • जैविक खेती, एकीकृत कीट प्रबंधन और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन को बढ़ावा देना। सामूहिक सौदेबाज़ी के लिये किसान-उत्पादक संगठनों तथा सहकारी समितियों को मज़बूत करना।
    • मूल्य शृंखला विकास:
      • उच्च मूल्य वाली फसलों, डेयरी उत्पादों, मत्स्य एवं मुर्गी पालन के लिये मज़बूत मूल्य शृंखलाएँ स्थापित करना।
      • इसे प्राप्त करने के लिये निजी क्षेत्र, सहकारी समितियों और किसान-उत्पादक कंपनियों के साथ सहयोग करना ।
      • मूल्य शृंखला विकास को बढ़ाने के लिये उद्योग में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के समान सार्वजनिक-निजी भागीदारी और योजनाओं को लागू करना।
    • प्रौद्योगिकियों और बाज़ारों तक पहुँच:
      • उत्पादकता और आय में सुधार के लिये किसानों को सर्वोत्तम प्रौद्योगिकियों तथा वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच सुनिश्चित करना।
      • निर्यात प्रतिबंधों, व्यापारियों पर स्टॉक सीमा और बाज़ार मूल्य दमन की रणनीति को कम करके किसानों की तुलना में उपभोक्ताओं के पक्ष में नीतिगत पूर्वाग्रहों को संबोधित करना।
      • कृषि अनुसंधान और विकास (R&D) तथा विस्तार सेवाओं पर व्यय को कृषि-जीडीपी के कम-से-कम 1% तक बढ़ाएँ, जो वर्तमान स्तर 0.5% से कम है।
    • उर्वरक सब्सिडी में सुधार:
      • उर्वरक सब्सिडी को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को हस्तांतरित करना।
      • वर्तमान में सब्सिडी का प्रबंधन रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा किया जाता है, जिसका किसानों के साथ सीधा संपर्क सीमित है।
      • नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के उपयोग में असंतुलन को ठीक करने के लिये उर्वरक सब्सिडी वितरण को युक्तिसंगत बनाएँ।
      • उर्वरक सब्सिडी के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण में परिवर्तन, जिससे किसानों को रासायनिक और जैव-उर्वरकों या प्राकृतिक खेती के तरीकों के बीच चयन करने की अनुमति मिलती है।
    • समावेशी विकास और सामाजिक सुरक्षा
      • व्यापक फसल बीमा योजनाओं और सहायता कार्यक्रमों को लागू करना।
      • कृषि आय को स्थिर करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसलों की खरीद सुनिश्चित करना।
    • जलवायु अनुकूल कृषि का सृजन:
      • जलवायु-अनुकूल (स्मार्ट) कृषि सृजित करने के लिये निवेश संसाधनों को बढ़ाने की त्वरित आवश्यकता है।
        • इसका यह अर्थ है कि ऊष्मा और बाढ़ प्रतिरोधी बीजों में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है साथ ही जल संसाधनों में अधिक निवेश करना होगा, न केवल उनकी आपूर्ति बढ़ाने के लिये बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिये भी कि पानी का अधिक बुद्धिमानी से उपयोग किया जा रहा है।
        • "प्रति बूँद अधिक फसल" केवल एक नारा नहीं बल्कि एक वास्तविकता होनी चाहिये। ड्रिप, स्प्रिंकलर और संरक्षित खेती को वर्तमान की तुलना में बड़े पैमाने पर सटीक कृषि के हिस्से के रूप में अपनाना होगा।

    निष्कर्ष:

    कृषि विकास के लिये अनुकूल माहौल बनाने वाले नीतिगत सुधारों को अपनाने से भारत अपने कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता को अनलॉक करने में सक्षम होगा, जिससे यह राष्ट्रीय विकास का आधार बन जाएगा। यह परिवर्तन लाखों किसानों के लिये स्थायी आजीविका को सुरक्षित करेगा, खाद्य सुरक्षा, समावेशी विकास को बढ़ावा देगा और भारत को कृषि नवाचार तथा स्थिरता में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करेगा।

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