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प्रश्न :
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विकसित हो रहे व्यापार ढाँचे के आलोक में भारत, आत्मनिर्भरता एवं घरेलू आर्थिक विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के साथ क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में अपनी भागीदारी को किस प्रकार संतुलित कर सकता है? (250 शब्द)
09 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार की गतिशीलता पर चर्चा करते हुए परिचय दीजिये।
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विकसित हो रही व्यापार संरचना पर गहनता से विचार कीजिये।
- भागीदारी और आत्मनिर्भरता के बीच संतुलन बनाने के लिये रणनीति सुझाएँ।
- संतुलित रूप से निष्कर्ष लिखिये।
भूमिका:
एशिया-प्रशांत क्षेत्र की व्यापार संरचना में तेज़ी से बदलाव देखने को मिल रहा है, जिसमें RCEP, CPTPP और IPEF जैसे समझौते आर्थिक संबंधों को नया आकार दे रहे हैं।
- भारत को इन उभरते क्षेत्रीय व्यापार समझौतों (RTA) में अपनी भागीदारी को आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) और घरेलू आर्थिक विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के साथ संतुलित करने की चुनौतीयों का सामना करना पड़ रहा है।
- इस संतुलनकारी कार्य के लिये राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए अवसरों का लाभ उठाने वाले एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विकसित व्यापार संरचना:
- मेगा-रीजनल बनाम एफटीए का उदय: व्यापक और प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) जैसे बड़े, व्यापक व्यापारिक समझौते में गति देखने को मिल रही, जबकि छोटे, द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर कम ध्यान दिया जा रहा है।
- अन्य प्रावधानों पर फोकस: आधुनिक RTA में टैरिफ कटौती से अलग अन्य प्रावधानों को तेज़ी से शामिल किया जा रहा है।
- इसमें बौद्धिक संपदा अधिकार, डिजिटल व्यापार, पर्यावरण मानक और श्रम विनियमन से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
- ई-कॉमर्स और आपूर्ति शृंखला एकीकरण: ई-कॉमर्स तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म के विकास के साथ व्यापार में परिवतन आ रहा है।
- RTA इन परिवर्तनों को संबोधित करने के लिये विकसित हो रहे हैं, जिसमें सीमा पार ई-कॉमर्स को सुव्यवस्थित करने और क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला एकीकरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
- भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार युद्ध: बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और हालिया अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है तथा देशों को अपने व्यापार संबंधों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये प्रेरित किया जा रहा है।
- इससे क्षेत्र में अधिक विखंडित एवं बहुध्रुवीय व्यापार संरचना विकसित हो रही है।
भागीदारी और आत्मनिर्भरता में संतुलन हेतु रणनीतियाँ:
- RTAs में रणनीतिक भागीदारी:
- पारस्परिक रूप से लाभकारी समझौतों पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को ऐसे RTA को प्राथमिकता देनी चाहिये, जो संवेदनशील घरेलू क्षेत्रों की सुरक्षा करते हुए अपने निर्यात के लिये टैरिफ में कटौती की पेशकश करते हैं।
- उदाहरणों में उन्नत प्रौद्योगिकीय बाज़ारों तक पहुँच के बदले कृषि उत्पादों के लिये उचित शर्तों पर चर्चा करना शामिल है।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये RTAs का लाभ उठाना: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की शर्तों के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करने के लिये RTA का उपयोग करना।
- इससे घरेलू उद्योगों को उन्नत बनाने और उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी के लिये आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है।
- उदाहरण के लिये संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ भारत का हालिया मुक्त व्यापार समझौता (FTA) कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में ज्ञान-साझाकरण पर केंद्रित है।
- उत्पत्ति के नियमों को मज़बूत करना: RTA के भीतर "उत्पत्ति के नियमों" को और अधिक सख्त बनाने पर चर्चा की जानी चाहिये। ये नियम परिभाषित करते हैं कि कोई उत्पाद वास्तव में "कहाँ बनाया गया है" ताकि देशों को केवल वस्तु का पुनः निर्यात करने तथा घरेलू विनिर्माण विकास को दरकिनार करने से रोका जा सके।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) पर ध्यान देना: RTA को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में MSME को एकीकृत करने के लिये डिज़ाइन किया जाना चाहिये।
- यह लक्ष्य छोटे व्यवसायों के लिये व्यापार सुविधा और क्षमता निर्माण पर समर्पित अध्यायों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- पारस्परिक रूप से लाभकारी समझौतों पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को ऐसे RTA को प्राथमिकता देनी चाहिये, जो संवेदनशील घरेलू क्षेत्रों की सुरक्षा करते हुए अपने निर्यात के लिये टैरिफ में कटौती की पेशकश करते हैं।
- घरेलू क्षमताओं को बढ़ावा देना:
- बुनियादी संरचना और कौशल विकास में निवेश: लेन-देन की लागत को कम करने और निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये बुनियादी संरचना के विकास (लॉजिस्टिक्स, विद्युत्, डिजिटल कनेक्टिविटी) पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, वैश्विक व्यापार की मांगों के लिये सुसज्जित कार्यबल तैयार करने हेतु कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता है।
- "कौशल भारत" मिशन इसके लिये आधार हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त, वैश्विक व्यापार की मांगों के लिये सुसज्जित कार्यबल तैयार करने हेतु कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता है।
- आयात प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित करना: रणनीतिक आयात प्रतिस्थापन की पहचान कर उन क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
- इसे लक्षित टैरिफ संरचनाओं और उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- बुनियादी संरचना और कौशल विकास में निवेश: लेन-देन की लागत को कम करने और निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये बुनियादी संरचना के विकास (लॉजिस्टिक्स, विद्युत्, डिजिटल कनेक्टिविटी) पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
घरेलू उद्योग संरक्षण के बारे में चिंताओं के कारण वर्ष 2019 में RCEP से बाहर निकलने का भारत का निर्णय "पहले भारत (India First)" के रुख को दर्शाता है। यह BIMSTEC और SAARC जैसे क्षेत्रीय समूहों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए भी आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देता है। यह चुनिंदा भारत को अपने आर्थिक हितों से समझौता किये बिना रणनीतिक साझेदारी और लाभकारी व्यापार सौदों की तलाश करने की अनुमति देता है।
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