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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    राजनीतिक अस्थिरता को रोकने तथा दलीय अनुशासन को बढ़ावा देने में दल-बदल विरोधी कानून की प्रभावशीलता का आकलन कीजिये। (150 शब्द)

    09 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • दल-बदल विरोधी कानून का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
    • राजनीतिक अस्थिरता को रोकने और दलीय अनुशासन को बढ़ावा देने में दल-बदल विरोधी कानून की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये।
    • दल-बदल विरोधी कानून की सीमाओं पर गहराई से विचार कीजिये।
    • सकारात्मक रूप से निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    संविधान की दसवीं अनुसूची में उल्लिखित दल-बदल विरोधी कानून, विधायकों द्वारा बार-बार दल (पार्टी) बदलने (जिसे आमतौर पर आया राम, गया राम की राजनीति कहा जाता है) को नियंत्रित करने के लिये लाया गया था।

    52वें संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था, यह विधेयक निर्वाचित विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिये आवश्यक है, यदि वे स्वेच्छा से दल बदलते हैं या अपने दल के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करते हैं।

    मुख्य बिंदु:

    दल-बदल विरोधी कानून की प्रभावशीलता:

    • राजनीतिक अस्थिरता को रोकने में प्रभावशीलता:
      • सदन में बहुमत खोने की दर में कमी: दल-बदल विरोधी कानून से पहले, विधायकों द्वारा बार-बार दल बदलने से सरकारें गिर जाती थीं, जिससे राजनीतिक अनिश्चितता पैदा होती थी।
        • दल-बदल विरोधी कानून से निसंदेह तात्कालिक राजनीतिक लाभ से प्रेरित दल-बदल गतिविधियाँ कम हुई हैं, जिसके परिणामस्वरूप:
      • सरकार का स्थायित्त्व : विशेष रूप से राज्य स्तर पर, जहाँ गठबंधन सरकारें अधिक आम हैं, दल-बदल विरोधी कानून से दल-बदल जैसी गतिविधियाँ हतोत्साहित हुई है, विशेष रूप से राज्य स्तर पर जहाँ गठबंधन सरकारें अधिक आम हैं, जो सरकारें आसानी से गिर जाती थी।
        • इससे नीति निर्माण और कार्यान्वयन हेतु अनुकूल एक अधिक स्थिर राजनीतिक परिवेश को बढ़ावा मिलता है।
      • मज़बूत गठबंधन: दल-बदल को हतोत्साहित करके, दल-बदल विरोधी कानून अधिक मज़बूत गठबंधन के गठन को प्रोत्साहित करता है।
        • दलों को पूरे कार्यकाल के लिये एक साथ कार्य करने हेतु अधिक प्रोत्साहन मिलता है, क्योंकि उन्हें पता है कि दल-बदल से अयोग्यता और सत्ता का संभावित नुकसान होता है।
        • स्थिर गठबंधन दल-बदल को रोकने के लिये अल्पकालिक राजनीतिक पैंतरेबाज़ी के बजाय दीर्घकालिक नीति लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
    • दल अनुशासन को बढ़ावा देने में प्रभावशीलता:
      • निष्ठापूर्ण आचरण: अयोग्य ठहराए जाने का खतरा विधायकों को महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने दल के नेतृत्व के विरुद्ध खुलेआम विद्रोह करने से रोकता है। इससे दलों के भीतर अनुशासन की भावना बढ़ती है:
      • एकीकृत सार्वजनिक छवि: दल-बदल विरोधी कानून दलों के भीतर सार्वजनिक असहमति को हतोत्साहित करता है, जिससे मतदाताओं के सामने एकीकृत छवि पेश होती है।
      • व्हिपिंग मैकेनिज़्म: दलों के विधायकों पर अपने व्हिप (मतदान निर्देश) को लागू करने के लिये ADL का इस्तेमाल एक उपकरण के रूप में कर सकती हैं।
        • इससे महत्त्वपूर्ण विधेयकों पर अधिक एकता सुनिश्चित होती है, विशेषकर तब जब सरकार का बहुमत कम हो।
      • ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ जैसी गतिविधियों को कम करना: व्यक्तिगत रूप से विधायकों को उनके मत के बदले में व्यक्तिगत लाभ के लिये विपक्ष के साथ सौदेबाज़ी करने जैसी गतिविधियों को दल-बदल विरोधी कानून हतोत्साहित करता है।

    चुनौतियाँ और सीमाएँ:

    • पक्षपात निर्णय: दल-बदल के मुद्दे पर निर्णय लेने का अधिकार सदन के अध्यक्ष/सभापति के पास होता है, जो सत्तारूढ़ दल से हो सकता है। इससे पक्षपात और कानून के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ पैदा होती हैं:
    • अयोग्यता: ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ अध्यक्ष द्वारा कुछ विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, लेकिन उसी दल के अन्य विधायकों को नहीं या फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विधानसभा अध्यक्षों और संसद को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तीन महीने की अवधि के भीतर अयोग्यता से संबंधित याचिकाओं पर निर्णय लेने के निर्देश के बावजूद देरी की गई (केशम मेघचंद्र सिंह बनाम मणिपुर विधान सभा के माननीय अध्यक्ष और अन्य (2020))।
    • विलय बनाम दल-बदल: कानून द्वारा विलय के संबंध में छूट प्रदान की गई है। इसका दुरुपयोग सामूहिक रूप से दल-बदल के लिये अयोग्यता को दरकिनार करने हेतु एक बचाव के रूप में किया जा सकता है।
      • विलय की योजना बनाना: संभावित दल-बदल का सामना कर रहे दल अयोग्यता से बचने के लिये छोटे दलों के साथ विलय कर सकते हैं, जिससे दल-बदल कानून हतोत्साहित होता है।
    • आलोचना का दमन: अयोग्य ठहराए जाने का डर विधायकों को वास्तविक मुद्दे पर सवाल करने या दल के नेतृत्व की रचनात्मक आलोचना करने से हतोत्साहित कर सकता है।
    • आंतरिक-दल लोकतंत्र का क्षरण: दल-बदल कानून का अत्यधिक सख्त प्रवर्तन दल के भीतर चर्चा को दबा सकता है, जिससे नीतियों और रणनीतियों को तैयार करने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

    निष्कर्ष:

    भारत को द्वितीय प्रशासनिक रिपोर्ट द्वारा अनुशंसित निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित करने, दल के विलय की सख्त परिभाषाओं और दल-बदल विरोधी कानून की पूरी क्षमता को उजागर करने तथा भारत में अधिक मज़बूत राजनीतिक वातावरण विकसित करने हेतु स्वस्थ आंतरिक-दल को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण सुधारों की आवश्यकता है।

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