"कला के लिये कला" बनाम "सामाजिक परिवर्तन के लिये कला।" समकालीन भारतीय कला के संदर्भ में इस विमर्श पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- ‘‘कला के लिये कला’’ और ‘’सामाजिक परिवर्तन के लिये कला’’ को परिभाषित करके उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- समकालीन भारतीय कला रूप में ‘’कला के लिये कला’’ की अवधारणा और प्रासंगिकता पर गहराई से चर्चा कीजिये।
- समकालीन भारतीय कला रूप में ‘सामाजिक परिवर्तन के लिये कला’ की अवधारणा और प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिये।
- संतुलन के साथ निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
"कला के लिये कला" और "सामाजिक परिवर्तन के लिये कला" के बीच गतिशील अंतर्क्रिया कला जगत में एक महत्त्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है, जबकि कला के लिये कला सौंदर्य मूल्य तथा कलात्मक अभिव्यक्ति पर ज़ोर देता है, ‘सामाजिक परिवर्तन के लिये कला’ कला को सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने एवं कार्रवाई को प्रेरित करने के माध्यम के रूप में प्रदर्शित है।
समकालीन भारतीय कला के संदर्भ में यह चर्चा अद्वितीय है, जो देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जटिल सामाजिक परिवर्तन और तेज़ी से बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करती है।
मुख्य बिंदु:
"कला के लिये कला":
- अवधारणा: यह परिप्रेक्ष्य शिक्षाप्रद, नैतिक या उपयोगितावादी कार्यों की तुलना में सौंदर्यात्मक मूल्य पर ज़ोर देता है कि कला का सृजन और सराहना उसकी अंतर्निहित सुंदरता तथा उसके रूप के लिये की जानी चाहिये।
- 19वीं सदी के यूरोपीय सौंदर्य आंदोलन में निहित, यह विशेष रूप से थियोफाइल गौटियर और वाल्टर पैटर से जुड़ा हुआ है।
- यह दृष्टिकोण कलात्मक स्वतंत्रता और सामाजिक दबावों से स्वायत्तता की वकालत करता है तथा शास्त्रीय सौंदर्यशास्त्र में 'रस' सिद्धांत जैसी भारतीय दार्शनिक अवधारणाओं से प्रभावित है।
- समकालीन भारतीय कला में:
- एस.एच. रजा और वी.एस. गायतोंडे जैसे कलाकार अमूर्त रूपों तथा रंगों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो तांत्रिक कला एवं भारतीय आध्यात्मिकता से प्रेरणा लेते हैं।
- बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप ने शुरू में आधुनिकतावादी सौंदर्यशास्त्र पर ध्यान केंद्रित किया, जो अकादमिक यथार्थवाद से अलग होने की कोशिश कर रहा था। नसरीन मोहम्मदी चित्रकला और फोटोग्राफी, लाइन, फॉर्म पूरी तरह पारंगत थी।
- "सामाजिक परिवर्तन के लिये कला":
- अवधारणा: यह परिप्रेक्ष्य कला को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों को संबोधित करने के माध्यम के रूप में देखता है, जिसका उद्देश्य जागरूकता में वृद्धि तथा विचारों को प्रोत्साहित करना है।
- यह कला का समाज के साथ जुड़ने के दायित्व के विश्वास पर आधारित है, यह अक्सर सामाजिक यथार्थवाद, कार्यकर्त्ता आंदोलनों और भारत के सामाजिक रूप से संलग्न कला के इतिहास से प्रेरणा ग्रहण करती है।
- समकालीन भारतीय कला में:
- सुबोध गुप्ता जैसे कलाकार रोज़मर्रा की वस्तुओं का उपयोग उपभोक्तावाद (जैसे- ‘वेरी हंग्री गॉड’), प्रवास और वर्ग असमानताओं पर टिप्पणी करने के लिये करते हैं।
- चित्रकार अर्पिता सिंह अपने जीवंत, कथा-समृद्ध कैनवस के माध्यम से महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक न्याय के मुद्दों को संबोधित करती हैं।
- प्रदर्शन कलाकार तेजल शाह अपने बहु-विषयक अभ्यास के माध्यम से लिंग, कामुकता और पारिस्थितिकी के मुद्दों को संबोधित करती हैं।
निष्कर्ष:
"कला के लिये कला" और "सामाजिक परिवर्तन के लिये कला" के बीच गतिशील अंतर्क्रिया भारत के कला परिदृश्य को समृद्ध करती है, सौंदर्यशास्त्र को सामाजिक टिप्पणी के साथ जोड़ती है। नलिनी मालानी जैसे कलाकार ऐसी कृतियाँ बनाते हैं, जो दृश्य रूप से आकर्षक एवं सामाजिक रूप से प्रासंगिक दोनों हैं। यह निरंतर संवाद भारतीय कला की वैश्विक प्रतिध्वनि को बढ़ाता है तथा समाज में कला की भूमिका पर व्यापक योगदान देता है