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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    नैतिक अहंकार और नैतिक परोपकारिता व्यावसायिक क्षेत्र में निर्णय लेने को कैसे प्रभावित करते हैं। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    04 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नैतिक अहंकार और नैतिक परोपकारिता के विपरीत परिप्रेक्ष्य की चर्चा करते हुए उत्तर का परिचय दीजिये।
    • नैतिक अहंकार और उसके प्रभाव पर गहराई से विचार कीजिये।
    • नैतिक परोपकारिता और उसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
    • सकारात्मक रूप से निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    नैतिक अहंकार और नैतिक परोपकारिता विपरीत नैतिक दृष्टिकोणों को दर्शाते है, जो व्यावसायिक क्षेत्र में निर्णय लेने को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। जबकि नैतिक स्वार्थ अहंकार को प्राथमिकता देता है, नैतिक परोपकारिता दूसरों के कल्याण पर ज़ोर देती है।

    मुख्य भाग:

    नैतिक अहंकार और उसका प्रभाव:

    • केंद्रित: व्यावसायिक संदर्भ में नैतिक अहंकार का अर्थ व्यक्तिगत लाभ जैसे- पदोन्नति की मांग करना, टीम की उपलब्धियों का श्रेय लेना या ऐसे कार्यों में शामिल होना जो किसी के करियर को लाभ पहुँचाते हैं, भले ही वे सहकर्मियों या संगठन के लिये हानिकारक हों, को प्राथमिकता देना हो सकता है।
    • संभावित लाभ: नैतिक अहंकार महत्वाकांक्षा को बढ़ावा दे सकता है और उत्पादकता तथा वाचार में वृद्धि होती हेतु कर्मचारियों को उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिये प्रेरित कर सकता है। यह किसी के करियर प्रक्षेपवक्र के लिये आत्मनिर्भरता और ज़िम्मेदारी की भावना को भी बढ़ावा दे सकता है।
    • संभावित नुकसान: अनियंत्रित अहंकार अनैतिक व्यवहार, धोखा और दूसरों का शोषण करने की ओर अग्रसर हो सकता है। जिससे एक विषाक्त कार्य संकृति विकसित हो सकती है, जो सहकर्मियों के बीच विश्वास को खत्म कर सकती है।
    • नैतिक परोपकारिता और उसका प्रभाव:
    • केंद्रित: नैतिक परोपकारिता दूसरों के सर्वोत्तम हित में कार्य करने पर ज़ोर देने पर केंद्रित है, भले ही इसके लिये व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़े।
      • व्यावसायिक परिवेश में यह व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा संगठन की सफलता को प्राथमिकता देने, किसी परियोजना के लाभ के लिये व्यक्तिगत समय का त्याग करने या सहकर्मियों और ग्राहकों के कल्याण की वकालत करने के रूप में प्रकट हो सकता है।
    • संभावित लाभ: नैतिक परोपकारिता टीमवर्क, सहयोग और साझा लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता को बढ़ावा देती है।
      • यह एक अधिक सकारात्मक तथा सहायतापूर्ण कार्य संस्कृति विकसित कर सकती है, जिससे कर्मचारी की संतुष्टि एवं विश्वास में वृद्धि होती है।
      • अंततः यह व्यक्तिगत कार्यों को संगठन के मिशन के साथ संरेखित करता है।
    • संभावित नुकसान: अनियंत्रित परोपकारिता से थकान, त्याग का प्रतिदान न मिलने पर नाराजगी तथा दूसरों द्वारा शोषण की स्थिति पैदा हो सकती है, जो व्यक्ति की मदद करने की इच्छा का फायदा उठाते हैं।
      • इससे सीमाएँ निर्धारित करने और अनुचित अनुरोधों को "ना" कहने से भी चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।

    निष्कर्ष:

    व्यावसायिक निर्णय लेने में नैतिक अहंकार और परोपकारिता को संतुलित करने में व्यक्तिगत कल्याण सहकर्मियों तथा संगठन के कल्याण से जुड़ा हुआ है। प्रबुद्ध अहंकार को अपनाना तथा ईमानदारी एवं सम्मान जैसे गुणों को विकसित करना यह सुनिश्चित करता हैं कि निर्णय सभी के लिये लाभकारी हों। ऐसा करके, लोक सेवक अधिक नैतिक एवं उत्पादक कार्य वातावरण को बढ़ावा दे सकते हैं।

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