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प्रश्न :
महात्मा गांधी के शिक्षा संबंधी विचारों पर प्रकाश डालते हुए यह बताएँ कि यह वर्तमान में कहाँ तक उपयोगी हैं?
23 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
आधुनिक भारत के निर्माण में महात्मा गांधी का बहुआयामी योगदान रहा है। गांधीजी की शिक्षा संबंधी विचारधारा उनके नैतिकता तथा स्वाबलंबन संबंधी सिद्धांतों पर आधारित थी। हरिजन पत्रिका तथा वर्धा शिक्षा योजना में निहित उनके विचारों के माध्यम से इसे देखा जा सकता है।
गांधीजी के शिक्षा संबंधी विचार
- गांधीजी ज्ञान आधारित शिक्षा के स्थान पर आचरण आधारित शिक्षा के समर्थक थे। उनके अनुसार शिक्षा प्रणाली ऐसी हो जो व्यक्ति को अच्छे-बुरे का ज्ञान प्रदान कर उसे नैतिक बनने के लिये प्रेरित करे।
- वे शिक्षा को मानव के सर्वांगीण विकास का सशक्त माध्यम तानते थे। अतः वर्धा योजना में उन्होंने प्रथम सात वर्षों की शिक्षा को निःशुल्क एवं अनिवार्य किये जाने पर बल दिया था।
- गांधीजी का यह मानना भी था कि व्यक्ति अपनी मातृभाषा में शिक्षा को अधिक रुचि तथा सहजता के साथ ग्रहण कर सकता है। अतः वे आरंभिक शिक्षा व्यक्ति को उसकी मातृभाषा में दिये जाने के पक्षधर थे।
- अखिल भारतीय स्तर पर भाषायी एकीकरण के लिये वह कक्षा सात तक हिंदी भाषा में ही शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।
- स्वाबलंबन को महत्त्व दिये जाने के कारण गांधीजी का स्पष्ट मानना था कि शिक्षा लोगों में कौशल को बढ़ावा दे, ताकि व्यक्ति लघु एवं कुटीर उद्योगों के माध्यम से स्वाबलंबी बन सके।
गांधीजी के शिक्षा संबंधी विचारों की वर्तमान में प्रासंगिकता
- वर्तमान समय में भारतीय सामाज की समस्याओं का एक बड़ा कारण व्यक्ति की भ्रष्टाचार, बढ़ती हुई स्वार्थवादी प्रवृत्ति और नैतिकता का ह्रास है। ऐसे में शिक्षा द्वारा नैतिकता को बढ़ावा दिये जाने से इन समस्याओं का समाधान हो पाएगा।
- गांधीजी का आरंभिक शिक्षा में मातृभाषा को महत्त्व देने का विचार भी प्रासंगिक है। इससे बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि बनी रहेगी और नामंकन दर में भी वृद्धि होगी।
- साथ ही शिक्षा को हस्तशिल्प तथा कौशल से जोड़े जाने से बेरोज़गारी तथा गरीबी की समस्या का समाधान होगा तथा भारत अपनी जनसांख्यकीय लाभांश का लाभ उठा सकेगा।
- किंतु आठवीं कक्षा के बाद ही शिक्षा को अंग्रेज़ी में प्रदान करने की बाध्यता वर्तमान समय में प्रासंगिक नहीं है, क्योंकि वर्तमान समय में अंग्रेज़ी का महत्त्व बढ़ा है।
- इसके अलावा कक्षा सात तक हिंदी भाषा में शिक्षा प्रदान करने की बाध्यता गैर-हिंदी क्षेत्र के लोगों के लिये समस्या उत्पन्न कर सकती है।
किंतु इन्हें सीमा मान कर गांधीजी के शिक्षा संबंधी विचारों के महत्त्व को कम नहीं किया जा सकता। वास्तव में (इन सीमाओं को हटाने पर) महात्मा गांधी के शिक्षा संबंधी विचार आज न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि आज की आवश्यकता भी हैं।
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