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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    समकालीन सार्वजनिक सेवा के संदर्भ में गांधीवादी नैतिकता के सिद्धांतों को कैसे लागू किया जा सकता है? चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    04 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • गांधीवादी नैतिकता के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • समकालीन सार्वजनिक सेवा पर गांधीवादी नैतिकता के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • सकारात्मक निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    महात्मा गांधी की समय सीमाओं से परे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिये उनका दर्शन, आज भी समकालीन लोक सेवकों के लिये गहन प्रासंगिकता रखता है।

    सामाजिक असमानताओं से लेकर पर्यावरणीय क्षरण तक की जटिल चुनौतियों से जूझ रहे विश्व में गांधीवादी नैतिकता सार्वजनिक सेवा में चुनौतियों से निपटने के लिये एक दिशा-निर्देश प्रदान करती है।

    मुख्य भाग:

    समकालीन लोक सेवा पर गांधीवादी नैतिकता का महत्त्व:

    • सत्याग्रह (Truth Force):
      • पारदर्शिता और जवाबदेही: लोक सेवक पारदर्शिता के साथ सत्याग्रह को कायम रख सकते हैं।
        • इसका अर्थ है सक्रियतापूर्वक जानकारी का खुलासा करना, गलतियों को स्वीकार करना तथा सार्वजनिक जाँच के लिये सदैव तैयार रहना।
      • मुखबिर: गांधीवादी नैतिकता मुखबिरों भ्रष्टाचार या गलत कार्यों का सामना करने के लिये प्रोत्साहित करती है, भले ही इसका अर्थ वरिष्ठों को चुनौती देना हो।
        • इससे यह सुनिश्चित होता है कि सत्य की जीत हो तथा व्यवस्था के भीतर व्याप्त अन्याय को उजागर किया जा सके।
      • नीति निर्माण: लोक सेवक डेटा-आधारित निर्णय लेने और सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से सत्य की राह में चलकर सत्याग्रह को मूर्त रूप दे सकते हैं।
        • इससे यह सुनिश्चित होता है कि नीतियाँ लोगों की आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करें और तथ्यात्मक साक्ष्य पर आधारित हों।
    • अहिंसा (Non-Violence):
      • संघर्ष समाधान: अहिंसा शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान को बढ़ावा देती है। लोक सेवक सहकर्मियों, नागरिकों या अन्य हितधारकों के साथ असहमति को दूर करने के लिये संवाद, मध्यस्थता और सहानुभूति का उपयोग करके इसे मूर्त रूप दे सकते हैं।
      • सामाजिक न्याय: अहिंसा सामाजिक समावेश और समान अधिकारों की वकालत करती है। लोक सेवक समान विकास के लिये प्रयास कर सकते हैं तथा सेवा वितरण में भेदभावपूर्ण प्रथाओं से बच सकते हैं।
      • पर्यावरणीय स्थिरता: पर्यावरण के विरुद्ध भी अहिंसा का प्रयोग किया जाता है।
        • लोक सेवक पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं, संसाधन संरक्षण और सतत् विकास संबंधी पहलों को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • स्वावलंबन (Self-Reliance):
      • सशक्तीकरण: स्वावलंबन नागरिकों को आत्मनिर्भर बनने के लिये सशक्त बनाता है।
        • लोक सेवक ऐसे कार्यक्रम का आयोजन या उनकी शुरूआत कर सकते हैं, जो समुदायों को संसाधन और कौशल प्रदान करें तथा दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा दें।
      • विकेंद्रीकरण: स्वावलंबन स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने को प्रोत्साहित करता है।
        • लोक सेवक स्थानीय निकायों को शक्तियाँ हस्तांतरित कर सकते हैं, जिससे विकास परियोजनाओं में सामुदायिक स्वामित्व और भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
      • दक्षता और संसाधन प्रबंधन: स्वावलंबन संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देता है।
        • लोक सेवक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर अपव्यय को न्यूनतम कर सकते हैं तथा संसाधन के उपयोग को अनुकूलतम बनाने के लिये नवीन समाधान तलाश सकते हैं।
    • सात सामाजिक पाप: सार्वजनिक सेवा में गांधीजी द्वारा सात सामाजिक पाप कार्य के बिना धन, विवेक के बिना आनंद, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, मानवता के बिना विज्ञान, त्याग के बिना पूजा और सिद्धांत के बिना राजनीति, नैतिक दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करते हैं।
      • वे उचित मुआवज़ा, नैतिक अखंडता, ज्ञान का ज़िम्मेदारीपूर्वक सही उपयोग, नैतिक व्यावसायिक व्यवहार, विज्ञान में मानव कल्याण, वास्तविक प्रतिबद्धता और सैद्धांतिक निर्णय लेने पर ज़ोर देते हैं।
      • इन सिद्धांतों का पालन नैतिक शासन को बढ़ावा देता है तथा एक न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज में योगदान देता है।

    निष्कर्ष:

    इन मूल आदर्शों को अपनाकर, लोक सेवक शासन के प्रति अधिक नैतिक और प्रभावी दृष्टिकोण विकसित कर सकते हैं। सत्य को कायम रखना, अहिंसा की वकालत करना, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, सार्वभौमिक उत्थान के लिये प्रयास करना तथा व्यक्तिगत लाभ से अलग रहना गांधीवादी नैतिकता की भावना में एक अधिक न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज का निर्माण कर सकता है।

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