आक्रामक प्रजातियों के पारिस्थितिक और आर्थिक प्रभावों की व्याख्या कीजिये तथा उनके नियंत्रण एवं उन्मूलन हेतु रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- आक्रामक प्रजातियों के बारे में उदाहरण सहित उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।
- आक्रामक प्रजातियों के पारिस्थितिक और आर्थिक प्रभावों के महत्त्वपूर्ण प्रभावों पर चर्चा कीजिये।
- इन प्रजातियों के प्रतिकूल प्रभावों के उन्मूलन के लिये रणनीतियों की सूची बनाइये।
- सकारात्मक निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
आक्रामक प्रजाति वह प्रजाति है जो विचाराधीन पारिस्थितिकी तंत्र के लिये गैर-स्वदेशी प्रजाति (या विदेशी) है और जिसके प्रवेश से आर्थिक या पर्यावरणीय हानि या मानव स्वास्थ्य को हानि होने की संभावना होती है।
- अफ्रीकी कैटफिश, नील तिलापिया, रेड-बेलिड पिरान्हा और एलीगेटर गार जैसी प्रजातियाँ भारत में आक्रामक वन्यजीवों की सूची में प्रमुख हैं।
- जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी प्लेटफॉर्म (IPBES) के अनुसार, विश्व भर के क्षेत्रों तथा बायोम में कई मानवीय गतिविधियों द्वारा 37,000 से अधिक विदेशी प्रजातियाँ पाई गई हैं।
मुख्य भाग:
आक्रामक प्रजातियों के पारिस्थितिक और आर्थिक प्रभाव:
- खाद्य जाल और आवास संरचना में परिवर्तन: आक्रामक प्रजातियाँ स्थानीय खाद्य स्रोतों को नष्ट करके या उनकी जगह लेकर पारिस्थितिकी तंत्र में खाद्य जाल को प्रभावित कर सकती हैं। आक्रामक प्रजातियाँ वन्यजीवों के लिये बहुत कम या बिलकुल भी खाद्य मूल्य प्रदान नहीं कर सकती हैं।
- आक्रामक प्रजातियाँ उन प्रजातियों की प्रचुरता या विविधता को भी प्रभावित कर सकती हैं, जो देशी वन्यजीवों के लिये महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करती हैं।
- स्थानीय समुदायों पर सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव: आक्रामक प्रजातियाँ स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और मूल भू-परिदृश्यों को सांस्कृतिक रूप से प्रभावित करती हैं।
- उदाहरण के लिये, प्रोसोपिस के आक्रमण ने कच्छ के रण में प्रवासी मार्गों को अवरुद्ध कर दिया है, जिससे जल स्रोतों तक पहुँच कम हो गई है तथा चरागाह संसाधनों में कमी के कारण पशुपालकों के बीच संघर्ष की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है।
- भारतीय वनों का व्यापक नुकसान: यह अनुमान लगाया गया है कि लैंटाना कैमरा नामक एक आक्रामक वनस्पति प्रजाति ने 38.8% वनों को विशेष रूप से उष्ण और आर्द्र क्षेत्रों के क्षीण वनों को नुकसान पहुँचाया है।
- लैंटाना सामान्यतः मध्य भारत, शिवालिक पहाड़ियों और दक्षिणी पश्चिमी घाट के शुष्क पर्णपाती वनों के भू-परिदृश्यों में व्यापक रूप से वितरित है।
- प्रबंधन व्यय: सरकारें और निजी संस्थाएँ आक्रामक प्रजातियों की रोकथाम, शीघ्र पहचान एवं नियंत्रण हेतु संसाधनों पर व्यय करती हैं।
- आक्रामक प्रजातियों से प्रभावित पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के प्रयास महँगे और दीर्घकालिक हो सकते हैं, जिसमें स्वदेशी प्रजातियों को पुनः स्थापित तथा आवासों का पुनर्वास करना शामिल है।
- नियंत्रण एवं उन्मूलन हेतु रणनीतियाँ:
- वैश्विक:
- जैवविविधता पर कन्वेंशन (CBD): CBD के अनुच्छेद 8 (h) में कहा गया है कि प्रत्येक पक्ष को पारिस्थितिकी तंत्र, आवासों या प्रजातियों को खतरा पहुँचाने वाली विदेशी प्रजातियों को आने से रोकना, नियंत्रित करना या उनका उन्मूलन करना चाहिये।
- कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता: सतत् विकास लक्ष्य 6, जो कि यूएन-सीबीडी के तहत एक समझौता है, के तहत भारत सहित सदस्य देशों को 2030 तक जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रभाव को 50% तक कम करने की आवश्यकता है।
- IUCN आक्रामक प्रजाति विशेषज्ञ समूह (ISSG): वैश्विक आक्रामक प्रजाति डेटाबेस (GISD) तथा पेश की गई और आक्रामक विदेशी प्रजातियों के वैश्विक रजिस्टर का प्रबंधन करता है।
- भारत:
- राष्ट्रीय जैवविविधता कार्य योजना: लक्ष्य 4 विशेष रूप से आक्रामक प्रजातियों की रोकथाम और प्रबंधन पर केंद्रित है।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPINVAS): नए प्रवेश को रोकने, स्थापित आक्रामक प्रजातियों का शीघ्र पता लगाने, नियंत्रण एवं प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती है।
निष्कर्ष :
आक्रामक प्रजातियाँ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं, वैश्विक समुदाय के सम्मिलित प्रयास, नवीन रणनीतियों और मज़बूत शासन के साथ मिलकर, जैवविविधता को संरक्षित करने तथा स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने की आशा प्रदान करते हैं। सतत् एवं अनुकूल दृष्टिकोणों के साथ भावी पीढ़ियों की प्राकृतिक विरासत को सुरक्षित रखना संभव है।