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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के लिये स्वच्छ और सतत् ऊर्जा स्रोत के रूप में परमाणु ऊर्जा की व्यवहार्यता का मूल्यांकन कीजिये। परमाणु ऊर्जा से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    03 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत की ऊर्जा मांग और खपत की स्थिति का उल्लेख करते हुए उत्तर का परिचय दीजिये।
    • भारत के लिये स्वच्छ और सतत् ऊर्जा स्रोत के रूप में परमाणु ऊर्जा की व्यवहार्यता पर चर्चा कीजिये?
    • संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह की पर चर्चा कीजिये?
    • सकारात्मक रूप से निष्कर्ष लिखिये?

    परिचय:

    भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है, जहाँ ऊर्जा की मांग में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है, वर्ष 2020 से कुल खपत में प्रतिवर्ष लगभग 6.5% की वृद्धि हुई है। वर्तमान में भारत के ऊर्जा मिश्रण में अधिकांश हिस्सा कोयले का है, जो लगभग 40% है। जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं को संबोधित करते हुए इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये स्थायी ऊर्जा विकल्पों, विशेष रूप से परमाणु ऊर्जा का पता लगाने की त्वरित आवश्यकता है।

    भारत में परमाणु ऊर्जा विद्युत का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है, जो देश के कुल विद्युत उत्पादन में लगभग 2% का योगदान देता है।

    मुख्य भाग:

    आर्थिक व्यवहार्यता:

    • लागत लाभ: रेडियोधर्मी ईंधन के प्रबंधन और निपटान की लागत के बावजूद, परमाणु ऊर्जा संयंत्र कोयला या गैस संयंत्रों की तुलना में संचालित करने के लिये सस्ते हैं। अनुमान बताते हैं कि परमाणु संयंत्रों की लागत कोयला संयंत्र की तुलना में केवल 33-50% और गैस संयुक्त-चक्र संयंत्र की तुलना में 20-25% है।
    • कच्चे माल की उपलब्धता: हालाँकि भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन वर्तमान में यूरेनियम के उपयोग पर हावी है जिसे आयात किया जाता है, देश में दुनिया के थोरियम भंडार का 25% हिस्सा है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा हिस्सा है।
      • थोरियम में परमाणु संयंत्रों में वैकल्पिक ईंधन के रूप में कार्य करने की क्षमता है, जिससे आयात का बोझ कम हो सकता है और परमाणु ऊर्जा अधिक सस्ती हो सकती है।
    • विदेशी सहयोग: उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकी वाले देशों के साथ सहयोग भारत की परमाणु क्षमता को बढ़ा सकता है तथा घरेलू औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद कर सकता है। इससे लागत कम हो सकती है तथा तकनीकी क्षमताओं में सुधार हो सकता है।
    • आर्थिक लाभ: परमाणु क्षेत्र का विकास सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को अतिरिक्त लाभ प्रदान कर सकता है, जिससे 'मेक इन इंडिया' पहल को समर्थन मिलेगा तथा कुशल कार्यबल का निर्माण होगा।

    पर्यावरणीय व्यवहार्यता:

    • निम्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: परमाणु ऊर्जा एक निम्न कार्बन ऊर्जा स्रोत है। कोयला आधारित विद्युत की जगह परमाणु ऊर्जा की प्रत्येक इकाई लगभग 1 किलोग्राम CO2 उत्सर्जन बचाती है। वर्ष 2015-16 में भारत के परमाणु ऊर्जा उत्पादन ने 37 मिलियन टन से अधिक CO2 की बचत की है।
      • भारत ने वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प लिया है। परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल काकोडकर के अनुसार, भारत परमाणु ऊर्जा के बिना नेट ज़ीरो के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है।
    • जीवन चक्र उत्सर्जन: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिये औसत जीवन चक्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन सभी ऊर्जा स्रोतों में सबसे कम है, जो सौर ऊर्जा संयंत्रों की तुलना में काफी कम है।
    • भूमि उपयोग दक्षता: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को समान स्थापित क्षमता के लिये सौर ऊर्जा संयंत्रों की तुलना में बहुत कम भूमि की आवश्यकता होती है, जो उन्हें भारत जैसे घनी आबादी वाले देशों के लिये उपयुक्त बनाता है।

    चुनौतियाँ:

    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल और फुकुशिमा जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के उदाहरण के रूप में भयावह दुर्घटनाओं की संभावना के कारण लोगों में आशंका बनी हुई है। कड़े सुरक्षा उपायों तथा संचार के माध्यम से जनता का विश्वास बनाना एवं बनाए रखना सर्वोपरि है।
    • अपशिष्ट प्रबंधन: रेडियोधर्मी अपशिष्ट निपटान एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव और सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम सुनिश्चित करते हुए अनिवार्य सुरक्षित, दीर्घकालिक भंडारण समाधान विकसित है।
    • अपर्याप्त परमाणु स्थापित क्षमता: वर्ष 2008 में परमाणु ऊर्जा आयोग ने अनुमान लगाया था कि भारत में वर्ष 2050 तक 650GW क्षमता स्थापित होगी, वर्तमान में केवल 6.78 GW है।
    • नियामक ढाँचा: भारत का परमाणु क्षति अधिनियम, 2010 के लिये नागरिक दायित्व, विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, जो अपने नियंत्रण से परे दुर्घटनाओं हेतु उत्तरदायी होने से डरते हैं। इस दायित्व संबंधी चिंता ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं निवेश में बाधा उत्पन्न की है।
    • सार्वजनिक स्वीकृति: सामाजिक प्रतिरोध पर काबू पाने के लिये सक्रिय भागीदारी, शिक्षा और जागरूकता अभियान की आवश्यकता है। ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन शमन के संदर्भ में गलत धारणाओं को दूर करना तथा परमाणु ऊर्जा के लाभों को प्रदर्शित करना महत्त्वपूर्ण कदम हैं।

    आगे की राह:

    • PHWR विस्तार: स्वदेशी 700 मेगावाट PHWR, जिसकी पहली इकाई पहले से ही चालू है, ‘बेस लोड’ विद्युत क्षमता बढ़ाने का प्राथमिक स्रोत होना चाहिये। वर्तमान में फ्लीट एप्रोच का उपयोग करके पँद्रह और इकाइयाँ निर्माणाधीन हैं।
      • मल्टिपल फ्लीट कार्यान्वयन में NPCIL के अतिरिक्त विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (PSUs) को भी शामिल किया जाना चाहिये।
    • SMRs और कोयला संयंत्र प्रतिस्थापन: आने वाले दशकों में बंद हो रहे कोयला संयंत्रों से खाली होने वाले कई स्थलों पर स्वदेशी लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) का निर्माण किया जाना चाहिये। इन इकाइयों को आयात करने से बिजली उत्पादन महँगा हो जाएगा।
      • देश में सबसे अधिक संख्या में कोयला संयंत्रों वाली कंपनी NTPC, इस प्रक्रिया में एक स्वाभाविक रूप से साझेदारी है तथा अतिरिक्त औद्योगिक साझेदार भी इसमें शामिल हो सकते हैं।
    • परमाणु ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा के साथ एकीकृत करना: एक संतुलित ऊर्जा रणनीति अपनाएँ जो परमाणु ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ एकीकृत करती है। इससे देश की बड़ी और विविध ऊर्जा मांगों को स्थायी तरीके से पूरा करने में मदद मिल सकती है।
    • थोरियम ऊर्जा विकास: दीर्घकालिक स्थायी ऊर्जा आपूर्ति के लिये पहले से मौजूद योजनाओं के अनुसार थोरियम ऊर्जा क्षमता को मुक्त करने के लिये दूसरे और तीसरे चरण के परमाणु-ऊर्जा कार्यक्रम के विकास में तेज़ी लानी चाहिये।
      • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में अपेक्षित क्षमता है।
    • नीतिगत समर्थन: परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये सरकार से मज़बूत नीतिगत समर्थन सुनिश्चित कीजिये। इसमें विदेशी निवेश, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और नवाचार के लिये प्रोत्साहन हेतु अनुकूल नीतियाँ शामिल हैं।

    निष्कर्ष:

    दूरदर्शी नीतिगत ढाँचों और नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता के साथ, भारत परमाणु ऊर्जा की परिवर्तनकारी क्षमता को बड़ा सकता है, जिससे भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है जहाँ ऊर्जा सुरक्षा पर्यावरण संरक्षण के साथ सहज रूप से जुड़े हुए है। सामूहिक कार्रवाई तथा दूरदर्शिता के माध्यम से, भारत आने वाली पीढ़ियों के लिये एक उज्जवल कल सुनिश्चित करते हुए, सतत् ऊर्जा समाधानों में वैश्विक नेतृत्व करने के लिये एक मार्ग तैयार करता है।

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