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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से सत्ता का विकेंद्रीकरण सहभागी लोकतंत्र और ज़मीनी स्तर पर विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    02 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • 73वें संशोधन का उल्लेख करते हुए उत्तर का परिचय दीजिये।
    • पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से सत्ता के विकेंद्रीकरण के लाभों पर विस्तार से चर्चा कीजिये।
    • पंचायती राज संस्थाओं को सत्ता के प्रभावी विकेंद्रीकरण में आने वाली बाधाओं पर प्रकाश डालिये।
    • सकारात्मक रूप से उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    पंचायती राज संस्थाएँ ज़मीनी स्तर पर शासन पर बढ़ते दबाव के फलस्वरूप अस्तित्त्व में आई हैं। ग्रामीण शासन के आधार के रूप में कार्य करते हुए, इन संस्थाओं में सक्रिय रूप से नागरिको की सहभागिता को बढ़ावा देकर और विकास संबंधी कार्यों को बढ़ाकर लोकतंत्र को बदलने की अपार क्षमता है।

    मुख्य बिंदु:

    पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) के माध्यम से सत्ता के विकेंद्रीकरण के लाभ:

    • सशक्तीकरण और सहभागिता: पंचायती राज संस्थाएँ स्थानीय समुदायों के जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णय की प्रक्रियाओं में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेने के लिये एक मंच प्रदान करती हैं।
      • इससे स्वामित्व और जवाबदेही की भावना को बढ़ावा मिलता है, जिससे समावेशी विकास में वृद्धि होती है।
    • आवश्यकता-आधारित विकास योजना: पंचायती राज संस्थाओं को स्थानीय स्तर पर लोगों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं की गहरी समझ होती है।
      • यह स्वच्छता, जलापूर्ति, प्राथमिक शिक्षा और ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिये संसाधनों को अधिक प्रभावी ढंग से आवंटित कर सकती हैं।
      • महाराष्ट्र का हिवरे बाज़ार गाँव को प्रभावी आवश्यकता-आधारित योजना के माध्यम से सूखा-ग्रस्त क्षेत्र से सतत् विकास के मॉडल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है ।
    • बेहतर सेवा वितरण: विकेंद्रीकरण शासन से लोगों में सहभागिता बढ़ती है, जिससे स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में बेहतर निगरानी तथा बेहतर सेवा वितरण की सुविधा प्राप्त होती है।
    • महिला सशक्तीकरण: महिलाओं के लिये आरक्षित सीटों वाली पंचायती राज संस्थाएँ महिलाओं के नेतृत्व और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भागीदारी के लिये एक मंच प्रदान करती हैं।
      • इससे विकास के प्रति अधिक लैंगिक-समावेशी दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।
      • एमबीए की डिग्री प्राप्त भारत की सबसे युवा सरपंच छवि राजावत जैसे नेताओं का पंचायती राज संस्थाएँ में शामिल होना महिला सशक्तीकरण तथा निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ावा देता हैं।

    सत्ता के प्रभावी विकेंद्रीकरण में बाधाएँ:

    • कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण: कई राज्यों द्वारा संविधान की 11वीं अनुसूची में उल्लिखित 29 कार्यों को पंचायती राज संस्थाओं को पूर्ण रूप से हस्तांतरित नहीं किया गया है।
      • इससे स्थानीय स्तर पर प्राधिकरण और निर्णय लेने की शक्ति का दायरा सीमित हो जाता है।
    • वित्तीय बाधाएँ: पंचायती राज संस्थाओं के पास अक्सर अपने कार्यों का क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से करने के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की कमी होती है। उन्हें करों के माध्यम से अपने राजस्व का केवल 1% ही वित्त प्राप्त होता हैं।
    • इससे केंद्र और राज्य सरकार के हस्तांतरण पर अत्यधिक निर्भरता का संकेत मिलता है।
    • कौशल और ज्ञान का अभाव: पंचायती राज संस्थाओं में कई निर्वाचित प्रतिनिधियों में प्रभावी शासन के लिये आवश्यक कौशल और ज्ञान का अभाव है।
      • उदाहरण: वर्ष 2018 के एक अध्ययन में पाया गया कि उत्तर प्रदेश में 50% से अधिक निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपने पद पर रहने के एक वर्ष बाद भी कोई प्रशिक्षण नहीं मिला।
    • अनियमित चुनाव: कुछ राज्य नियमित रूप से पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव कराने में विफल रहते हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमज़ोर होती है। इससे स्थानीय शासन और प्रतिनिधित्त्व में अंतर पैदा होता है।
    • लैंगिक अंतर: आरक्षण के बावजूद, ‘प्रधान-पति’ संस्कृति के प्रचलन के कारण पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी में कमी बनी हुई है। यह स्थानीय शासन में महिलाओं के दृष्टिकोण को शामिल करने में बाधा डालता है।
    • विशेष प्रयोजन वाहन: विशेष प्रयोजन वाहन, जिन्हें अक्सर केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा स्थापित किया जाता है, स्थानीय स्तर पर विकास संबंधी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं को महत्त्व नही दिया जाता है।
      • इस संदर्भ में 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को कम अधिकार दिये गए हैं।

    आगे की राह:

    • कार्यात्मक सीमांकन और राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देना: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश के अनुसार प्रत्येक सरकारी स्तर के लिये कार्यों का स्पष्ट रूप से सीमांकन स्थापित करना।
      • स्थानीय स्तर पर प्रभावी वित्तीय प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये जवाबदेही के साथ वास्तविक राजकोषीय स्वायत्तता सुनिश्चित करना।
      • सेवा वितरण दक्षता में सुधार के लिये सार्वजनिक या निजी एजेंसियों को विशिष्ट कार्यों की आउटसोर्सिंग को प्रोत्साहित करना।
    • वित्तीय संसाधनों और प्रबंधन को मज़बूत करना: ग्रामीण स्थानीय निकायों के ORS पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के अनुसार संपत्ति कर और उपयोगकर्त्ता शुल्क जैसे स्वयं के राजस्व पर ध्यान केंद्रित करना।
      • पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों और अधिकारियों को वित्तीय एवं संसाधन के प्रबंधन हेतु व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करना।
      • स्थानीय विकास से संबंधित पहलों का समर्थन करने के लिये उच्च सरकारी स्तरों से समय पर और पर्याप्त धन हस्तांतरण सुनिश्चित करें।
    • बुनियादी अवसंरचनाओं का विकास: शासन, प्रशासन और विकास संबंधी योजना पर पीआरआई सदस्यों के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित तथा कार्यान्वित करना।
      • पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिये डिजिटल बुनियादी अवसंरचना में सुधार तथा ई-गवर्नेंस पहलों को लागू करना।
      • उचित कामकाज और सेवा वितरण सुनिश्चित करने के लिये पंचायत के कार्यालयों को मज़बूत करना।
    • सहभागी और समावेशी शासन को बढ़ावा देना: ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व बनाए रखने के लिये नियमित और समय पर पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव सुनिश्चित करना।
      • सहभागितापूर्ण निर्णय लेने और सामुदायिक सहभागिता के लिये ग्राम सभाओं को मंच के रूप में मज़बूत बनाना।
      • स्थानीय आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित करने के लिये सहभागितापूर्ण नियोजन और बजट संबंधी प्रक्रियाओं को लागू करना।

    निष्कर्ष:

    पंचायती राज संस्थाओं को मज़बूत बनाकर तथा अन्य विकासात्मक संस्थाओं के साथ सहयोगात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर, ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र की वास्तविक भावना तथा सभी के लिये जीवंत, समतापूर्ण भविष्य का निर्माण किया जा सकता है।

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