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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    गुप्तोत्तर काल में विखंडित राजनीतिक परिदृश्य के साथ क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ। इस विखंडन के लिये ज़िम्मेदार कारकों पर चर्चा कीजिये और उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक विकास पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    01 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • गुप्त साम्राज्य के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर का परिचय दीजिये।
    • गुप्त काल के बाद विखंडन के लिये ज़िम्मेदार कारकों पर विचार कीजिये।
    • सांस्कृतिक विकास पर इसके प्रभावों पर प्रकाश डालिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    गुप्त साम्राज्य के स्वर्ण युग (4वीं-6वीं शताब्दी ई.) में एकीकृत भारत सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि देखने को मिलती है। हालाँकि इसके पतन के साथ ही राजनीतिक विखंडन की अवधि की शुरुआत हुई, जिसमें कई क्षेत्रीय साम्राज्य अपने प्रभुत्व के लिये लड़ रहे थे।

    मुख्य भाग:

    विखंडन के लिये ज़िम्मेदार कारक:

    • आंतरिक संघर्ष: गुप्त साम्राज्य को शाही परिवार के बीच आंतरिक लड़ाई और मतभेदों का सामना करना पड़ा, जिससे केंद्रीय सत्ता कमज़ोर हो गई।
      • यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि विष्णुगुप्त, जिन्होंने 540 से 550 ई. तक शासन किया, गुप्त वंश के अंतिम शासक थे।
      • इस तरह के आंतरिक संघर्ष ने संभवतः से एकीकृत नेतृत्व में कमी आई, जिसने साम्राज्य को बाह्य खतरों के प्रति कमज़ोर बना दिया।
    • बाह्य आक्रमण: हूणों के आक्रमणों ने साम्राज्य के पतन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्कंदगुप्त (चंद्रगुप्त द्वितीय के पोते) के शासनकाल के दौरान, हूणों ने उत्तर-पश्चिम भारत पर आक्रमण किया।
      • यद्यपि स्कंदगुप्त ने इस प्रारंभिक आक्रमण को सफलतापूर्वक विफल कर दिया, लेकिन इससे साम्राज्य के वित्तीय संसाधन काफी हद तक समाप्त हो गए। बाद में छठी शताब्दी ई. में हूणों ने मालवा, गुजरात, पंजाब एवं गांधार सहित कई विशाल क्षेत्रों पर अपना प्रभुत्त्व स्थापित कर लिया, जिससे इन क्षेत्रों पर गुप्त शासन की पकड़ और भी कमज़ोर हो गई।
    • क्षेत्रीय शक्तियों से क्षेत्रों की हानि: गुप्त साम्राज्य को अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के आक्रमणों का भी सामना करना पड़ा।
      • बुधगुप्त के शासनकाल के दौरान, पश्चिमी दक्कन के वाकाटक शासक नरेंद्रसेन ने मालवा, मेकल और कोसल पर आक्रमण किया। इसके बाद एक अन्य वाकाटक राजा, हरिषेण ने गुप्तों से मालवा तथा गुजरात पर विजय प्राप्त की। क्षेत्रीय शक्तियों के इन आक्रमणों से इन क्षेत्रों में हुए नुकसान ने गुप्त साम्राज्य के विस्तार एवं संसाधनों को काफी हद तक कम कर दिया।
    • स्वतंत्र शासकों का उदय: जब हूणों के आक्रमण से देश में गुप्तों प्रभुत्त्व कमज़ोर हो गया, जिसके कारण उत्तरी भारत में स्वतंत्र शासकों का उदय हुआ।
      • उदाहरणों में मालवा के यशोधर्मन, उत्तर प्रदेश के मौखरी, सौराष्ट्र के मैत्रक और बंगाल के विभिन्न शासक शामिल हैं। क्षेत्रीय शक्तियों के विस्तार ने गुप्त साम्राज्य के अधिकार तथा क्षेत्रीय नियंत्रण को और कम कर दिया।
    • भौगोलिक संकुचन: इन विभिन्न कारकों के परिणामस्वरूप, गुप्त साम्राज्य का क्षेत्राधिकार धीरे-धीरे कम होता गया। उत्तरी भारत के विशाल क्षेत्रों पर नियंत्रण रखने वाला यह साम्राज्य अंततः केवल मगध तक ही सीमित रह गया।
      • इस क्षेत्रीय शक्तियों के विस्तार से गुप्त शासकों के संसाधनों और क्षेत्राधिकार सीमित हो गए।

    सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव:

    राजनीतिक विखंडन के बावजूद, इस अवधि के दौरान उपमहाद्वीप में विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का उत्कर्ष देखने को मिला।

    • क्षेत्रीय संरक्षण: प्रत्येक राज्य ने अपनी विशिष्ट कलात्मक शैली और साहित्यिक परंपराएँ विकसित कीं।
      • दक्कन में चालुक्यों द्वारा मंदिर वास्तुकला में जबकि दक्षिण भारत में पल्लवों द्वारा महाबलीपुरम में शानदार स्मारक में उत्कृष्टता हासिल हुई। इस अवधि के दौरान क्षेत्रीय संरक्षण से कलात्मक और स्थापत्य कला में महत्त्वपूर्ण योगदान देखने को मिला।
    • भक्ति आंदोलन: विखंडित राजनीतिक परिदृश्य ने भक्ति आंदोलन के उदय हेतु उपजाऊ ज़मीन प्रदान की गई, जिससे देवताओं की भक्ति पूजा पर ज़ोर मिला।
      • इस आंदोलन ने क्षेत्रीय सीमाओं को पार कर तमिल, कन्नड़ और हिंदी जैसी स्थानीय भाषाओं का उपयोग किया, जिससे नए साहित्यिक रूपों का विकास हुआ।
    • ज्ञान का प्रसार: स्थापित मार्गों पर व्यापार में वृद्धि हुई, जिससे विचारों और सांस्कृतिक परंपराओं का आदान-प्रदान सुगम हुआ।
      • इन विचारों एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान से सांस्कृतिक परिदृश्य और भी समृद्ध हुआ, उदाहरण के लिये दक्षिण-पूर्व एशियाई मंदिरों पर पल्लव वास्तुकला का प्रभाव।

    निष्कर्ष:

    भारत में गुप्तोत्तर विखंडन राजनीतिक अव्यवस्था और सांस्कृतिक गतिशीलता दोनों का काल था। इस काल में क्षेत्रीय राज्यों के उदय ने राजनीतिक परिदृश्य को जन्म दिया, जिससे सांस्कृतिक विचारों को भी बढ़ावा मिला। इस युग की विरासत क्षेत्रीय संस्कृतियों के समृद्ध मिश्रण में निहित है।

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