पूर्वी और पश्चिमी घाट भारत की दो प्रमुख पर्वत शृंखलाएँ हैं, जो विभिन्न तरीकों से भारत की जलवायु तथा कृषि को प्रभावित करती हैं। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पूर्वी और पश्चिमी घाट का उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये?
- जलवायु और कृषि पर पूर्वी एवं पश्चिमी घाटों के विपरीत प्रभाव पर गहराई से विचार कीजिये?
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
पूर्वी और पश्चिमी घाट भारत के भौगोलिक क्षेत्र की खूबसूरती के प्रमाण हैं। फिर भी पूर्वी एवं पश्चिमी घाट की पर्वत शृंखलाएँ देश की जलवायु तथा कृषि को विपरीत रूप से प्रभावित करती हैं।
मुख्य भाग:
जलवायु और कृषि पर पूर्वी एवं पश्चिमी घाटों का विपरीत प्रभाव:
- वर्षा का पैटर्न:
- पश्चिमी घाट: यह वर्षा अवरोधक के रूप में कार्य करता है। दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनें नमी सागर से नमी ग्रहण कर पश्चिमी घाट में ऊपर की ओर उठती हैं, जिससे पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों (केरल, महाराष्ट्र) पर भारी वर्षा होती है।
- पश्चिमी घाट का पूर्वी भाग (दक्कन पठार) पर वर्षा छाया क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जिसके कारण यहाँ वर्षा काफी कम होती है।
- पूर्वी घाट: अपनी कम ऊँचाई और असंतत् प्रकृति के कारण मानसून के विक्षेपण पर इसका प्रभाव सीमित है। इसका पूर्वी घाटों का मानसून पैटर्न पर कम प्रभाव पड़ता है।
- हालाँकि मानसूनी पवनों की शेष नमी आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के तटीय मैदानों तक पहुँचती हैं, जिसके कारण इन क्षेत्रों में मध्यम वर्षा होती है।
- तापमान विनियमन:
- पश्चिमी घाट: यहाँ का तटीय तापमान मध्यम है। पश्चिमी घाट एक भौतिक अवरोध के रूप में कार्य करता हैं, जो दक्कन पठार से आने वाली गर्म, शुष्क पवनों को पश्चिमी तट तक पहुँचने से रोकता हैं। यह मालाबार तट पर अधिक सुखद और आर्द्र जलवायु बनाए रखता है।
- पूर्वी घाट: इसका तापमान पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। अपनी कम ऊँचाई और असंतत् प्रकृति के कारण, पूर्वी घाटों का क्षेत्रीय तापमान को विनियमित करने पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। आस-पास के क्षेत्रों में मौसमी बदलाव अधिक प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किये जाते हैं।
- वनस्पति पर प्रभाव:
- पश्चिमी घाट: उच्च वर्षा और मध्यम तापमान समृद्ध जैवविविधता वाले घने जंगलों के लिये आदर्श परिस्थितियाँ विकसित करते हैं। यहाँ पर हरे-भरे, सदाबहार वन पाए जाते हैं। यह वनस्पति वाष्पीकरण को बढ़ावा देकर वर्षा के प्रारूप को और अधिक प्रभावित करती है तथा निम्न तापमान में योगदान प्रदान करती है।
- पूर्वी घाट: यहाँ शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं। पूर्वी घाट की वर्षा छाया में कम और अधिक अनियमित वर्षा पैटर्न के कारण यहाँ पत्तियों के गिरने के साथ शुष्क वनों का विकास होता है।
- यहाँ जटिल परिस्थितियों के अनुकूल झाड़ियाँ और घास के मैदान भी पाए जाते हैं।
- कृषि पर प्रभाव:
- पश्चिमी घाट: उच्च वर्षा और मध्यम तापमान के कारण यहाँ कॉफी, चाय, इलायची तथा मसालों जैसी बागानों में उगाई जाने वाली फसलों के लिये आदर्श परिस्थितियाँ हैं। अतः यहाँ बागवानी कृषि की जाती हैं।
- इसके अतिरिक्त, ढलानों पर उपजाऊ मिट्टी केले जैसे फलों की खेती के लिये अनुकूल है।
- पूर्वी घाट: मध्यम और अक्सर अनियमित वर्षा पैटर्न के कारण अलग-अलग समय पर पानी की आवश्यकता वाली मिश्रित फसलें उगाई जाती हैं। अतः यहाँ मिश्रित कृषि तथा शुष्क प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा दिया जाता है।
- यहाँ आमतौर पर दलहन, बाजरा, कपास और कुछ तिलहन फसलें उगाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त, ज्वार एवं बाजरा जैसी शुष्क प्रतिरोधी फसलें इन क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- जल संसाधन प्रबंधन:
- पश्चिमी घाट: पश्चिमी घाट प्राकृतिक रूप से ‘वाटर टाॅवर’ के रूप में कार्य करते हैं। पश्चिमी घाट में घने जंगल वर्षा जल को संग्रहीत करते हैं, जिससे पश्चिम की ओर बहने वाली कई बारहमासी नदियाँ इनसे जल प्राप्त करती हैं। ये नदियाँ इस क्षेत्र में सिंचाई और जल आपूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- पूर्वी घाट: पश्चिमी घाट की तुलना में पूर्वी घाट में नदियों का एक छोटा नेटवर्क है।
- हालाँकि पूर्वी घाट में गोदावरी और महानदी जैसी कुछ प्रमुख नदियाँ प्रवाहित होती हैं, जो पूर्वी भारत के जल संसाधनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
निष्कर्ष:
दोनों पर्वत शृंखलाएँ जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या दबाव और विकासात्मक आवश्यकताओं के संदर्भ में अद्वितीय चुनौतियों का सामना कर रही हैं। इन महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्रों का संरक्षण तथा सतत् प्रबंधन भारत की पर्यावरणीय स्थिरता, खाद्य सुरक्षा एवं समग्र सतत् विकास के लिये अनिवार्य है।