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प्रश्न :
आंतरिक मूल्य की अवधारणा यह बताती है कि मनुष्यों के लिये प्रकृति का मूल्य उसकी उपयोगिता से स्वतंत्र है। पर्यावरण नीति निर्माण के संबंध में इस परिप्रेक्ष्य के नैतिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
27 Jun, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- आंतरिक मूल्य की अवधारणा को परिभाषित करते हुए उत्तर को लिखिये।
- नैतिक सिद्धांतों का उपयोग करके आंतरिक मूल्यों के नैतिक दृष्टिकोण को समझाइये।
- पर्यावरण नीति निर्माण पर प्रमुख नैतिक प्रभावों पर गहनता से विचार कीजिये।
- संतुलन के साथ निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
आंतरिक मूल्य की अवधारणा मानव-केंद्रित दृष्टिकोण को चुनौती देती है कि प्रकृति का मूल्य केवल मनुष्यों के लिये इसकी उपयोगिता पर आधारित है। यह माना जाता है कि प्रकृति में अंतर्निहित मूल्य है, जो इसकी उपयोगिता से स्वतंत्र है। इस दृष्टिकोण के पर्यावरण नीति निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण नैतिक निहितार्थ हैं, जो प्राकृतिक रूप से विश्व के साथ हमारे संबंधों में परिवर्तन चाहते हैं।
आंतरिक मूल्य:
- कर्त्तव्यपरायण दृष्टिकोण: प्रकृति में अधिकार और नैतिक स्थितियाँ निहित है।
- मानव का कर्त्तव्य है कि वह परिणामों की परवाह किये बिना प्रकृति का सम्मान करे और उसकी रक्षा करे।
- सद्गुण नैतिकता: प्रकृति के आंतरिक मूल्य को पहचानने से विनम्रता, सम्मान और संरक्षकता जैसे पर्यावरणीय गुणों का विकास होता है।
- परिणामवादी दृष्टिकोण: प्रकृति के आंतरिक मूल्य को संरक्षित करने से पारिस्थितिकी तंत्र और मानवता दोनों के लिये बेहतर दीर्घकालिक परिणाम प्राप्त होते हैं।
पर्यावरण से संबंधित नीति निर्माण पर प्रमुख नैतिक निहितार्थ:
- नैतिक विचारशीलता का विस्तार: प्रकृति के हितों के विरुद्ध मानव के हितों को संतुलित करना एक नैतिक दुविधा उत्पन्न करता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिक समग्र और पारदर्शी होना चाहिये तथा इसमें प्रकृति को एक विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिये। इसका एक उदाहरण न्यूज़ीलैंड द्वारा वांगानुई नदी को कानूनी रूप से व्यक्ति की मान्यता प्रदान करना है, जिसमें "जीवित तथा सुशोभित रहने" के उसके अंतर्निहित अधिकार को मान्यता दी गई है।
- अंतर-पीढ़ीगत न्याय: भविष्य की पीढ़ियों के लिये प्रकृति को संरक्षित करना एक दायित्व है, जो एक नैतिक सिद्धांत भी है।
- दीर्घकालिक संरक्षण से संबंधित रणनीतियों में अल्पकालिक आर्थिक लाभ के तरीकों को अपनाना चाहिये, जैसे कि " वन्यजीव" के लिये हमेशा भूमि का संरक्षण, जो प्राकृतिक क्षेत्रों को स्थायी संरक्षण प्रदान करते हैं।
- प्रगति और विकास को पुनर्परिभाषित करना: यह नैतिक प्रश्न उठता है कि क्या आर्थिक विकास को प्रकृति के आंतरिक मूल्यों के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- विकास लक्ष्यों में पारिस्थितिकी संरक्षण को एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण है। भूटान का सकल राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक, जिसमें पारिस्थितिकी विविधता को एक प्रमुख पैमाने के रूप में शामिल किया गया है, इस दृष्टिकोण का उदाहरण है।
- मानव-केंद्रितता को चुनौती देना: मानव को केंद्र में रखकर पर्यावरण को वैश्विक दृष्टिकोण की ओर बढ़ना एक नैतिक बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है।
- प्रजातियों या पारिस्थितिकी प्रणालियों की रक्षा उनके अंतर्निहित मूल्य के आधार पर करनी चाहिये, जैसे कि विशाल पांडा जैसी प्रजातियों के लिये संरक्षण, जिनका पारिस्थितिक कार्य सीमित है, लेकिन इनका एक आंतरिक मूल्य भी है।
- प्रकृति के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन: प्रकृति में विभिन्न अंतर्निहित मूल्यों, जैसे पशु कल्याण बनाम पारिस्थितिकी तंत्र के बीच प्राथमिकता तय करना एक नैतिक चुनौती है।
- विभिन्न पर्यावरणीय मूल्यों के बीच संघर्षों से निपटने के लिये रूपरेखा विकसित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जैसा कि लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये प्रजनन कार्यक्रमों की नैतिकता पर वाद विवाद देखा गया है।
- मानव-प्रकृति संबंध को नया स्वरूप देना: प्रकृति पर प्रभुत्व से साझेदारी की ओर बढ़ना एक नैतिक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है।
- नीतियों द्वारा चक्रीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। औद्योगिक कृषि के विकल्प के रूप में कृषि पारिस्थितिकी एवं पर्माकल्चर को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ इस दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
- पर्यावरण न्याय का विस्तार: सामाजिक न्याय के विस्तार के रूप में प्रकृति के लिये न्याय एक महत्त्वपूर्ण नैतिक सिद्धांत है। प्रकृति के हितों के प्रतिनिधित्व की अनुमति देने वाले कानूनी ढाँचे का विस्तार करना समय की मांग है।
- मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा प्रकृति को अधिकार और कर्त्तव्यों सहित 'जीवित प्राणी' का दर्जा प्रदान करना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
निष्कर्ष:
प्रकृति के अंतर्निहित मूल्य को पहचानने के लिये प्राकृतिक रूप से विश्व के साथ हमारे संबंधों का मौलिक पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है, जिससे हम ऐसी नीतियाँ विकसित करने के लिये प्रेरित हों जो सतत् विकास के साथ-साथ पारिस्थितिकी प्रणालियों एवं प्रजातियों के अंतर्निहित मूल्य का सम्मान करें।
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