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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    मूल्यांकन कीजिये कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम किस प्रकार से भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार हैं। इसके साथ ही इनकी वित्तीय एवं परिचालन बाधाओं को दूर करने हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)

    26 Jun, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • विकास के उत्प्रेरक के रूप में MSMEs को रेखांकित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • MSMEs को भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार के रूप में प्रदर्शित करने वाले तर्कों का उल्लेख कीजिये।
    • MSMEs के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये। उनकी वित्तीय एवं परिचालन बाधाओं को दूर करने के उपाय बताइये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) भारत के आर्थिक ढाँचे की आधारशिला हैं, जो उद्यमशीलता, रोज़गार सृजन तथा समावेशी विकास के उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं।

    • हाल के वर्षों में इनका महत्त्व (खासकर भारत की आत्मनिर्भरता, सतत् विकास एवं 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने की आकांक्षाओं के मद्देनजर) और भी बढ़ गया है।

    मुख्य भाग

    भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार के रूप में MSMEs:

    • रोज़गार सृजन: यह क्षेत्र भारत में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है।
      • भारत में 11.10 करोड़ नौकरियों में से MSMEs क्षेत्र द्वारा 360.41 लाख नौकरियाँ प्रदान की जाती हैं।
        • ये नौकरियाँ मुख्य रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित हैं।
      • इसके अलावा हथकरघा एवं हस्तशिल्प क्षेत्र से प्रत्यक्ष रूप से 7 मिलियन से अधिक कारीगरों को रोज़गार मिलता है।
    • जीडीपी और निर्यात में योगदान: भारत की जीडीपी में इस क्षेत्र का लगभग 30% योगदान है और कुल निर्यात में इसकी हिस्सेदारी लगभग 45% है।
    • समावेशी विकास को बढ़ावा देना: विविध सामाजिक-आर्थिक समूहों में उद्यमशीलता को बढ़ावा देकर, यह क्षेत्र क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने के साथ समान धन वितरण सुनिश्चित करता है।
      • स्थानीय प्रतिभा और स्वदेशी कौशल हेतु इनक्यूबेटर के रूप में कार्य करते हुए यह क्षेत्र महिला उद्यमियों को सशक्त बनाता है।
      • इसका एक उदाहरण केरल का कुदुंबश्री मिशन है, जिसके द्वारा बड़ी संख्या में महिलाओं के नेतृत्व वाले सूक्ष्म उद्यमों का समर्थन किया गया है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं का रूपांतरण हो रहा है।
      • इसके अलावा प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) के तहत महिला उद्यमियों द्वारा 1.38 लाख परियोजनाओं की शुरुआत की गई है।
    • नवाचार और अनुकूलनशीलता: यह क्षेत्र बड़े उद्योगों की तुलना में बाज़ार में होने वाले बदलावों के प्रति अधिक लचीला और अनुकूलनीय है तथा अक्सर स्वदेशी प्रौद्योगिकियों एवं उत्पादों को विकसित करने में इसकी अग्रणी भूमिका रहती है।
      • ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में भारत के परिवर्तन हेतु यह महत्त्वपूर्ण होने के साथ अभिनव व्यापार मॉडल के लिये परीक्षण आधार के रूप में कार्य करता है।
      • पेटीएम और ओला जैसे कई सफल स्टार्ट-अप छोटे उद्यमों के रूप में शुरू हुए, जिनके द्वारा अपने संबंधित क्षेत्रों में क्रांति लाई गई।
    • बड़े उद्योगों को समर्थन: बड़े उद्योगों के लिये सहायक इकाइयों के रूप में कार्य करते हुए, यह क्षेत्र आपूर्ति शृंखला का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनता है और विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
      • यह क्षेत्र मेक इन इंडिया पहल की सफलता के लिये आवश्यक होने के साथ विशिष्ट सेवाएँ और उत्पाद प्रदान करता है।
    • संतुलित क्षेत्रीय विकास: यह क्षेत्र ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में मदद करने के साथ स्थानीय रोज़गार प्रदान करके शहरी क्षेत्रों में पलायन को कम करता है।
      • इसमें स्थानीय संसाधनों एवं कौशल का बेहतर उपयोग होने से सतत् विकास को बढ़ावा मिलने के साथ औद्योगिक समूहों के विकास में योगदान मिलता है।
      • उदाहरण के लिये, कानपुर में चमड़ा क्लस्टर ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: यह क्षेत्र पारंपरिक कला तथा शिल्प को संरक्षित करने के साथ सांस्कृतिक पर्यटन एवं भारत की सॉफ्ट पावर में योगदान देता है।
      • यह CSR गतिविधियों के माध्यम से स्थानीय सामुदायिक विकास का समर्थन करता है।
      • इसका एक उदाहरण मध्य प्रदेश में चंदेरी हथकरघा क्लस्टर है, जो न केवल आजीविका प्रदान करता है बल्कि सदियों पुरानी बुनाई परंपरा को भी संरक्षित करता है।

    MSMEs से संबंधित चुनौतियाँ:

    • ऋण तक सीमित पहुँच: MSMEs की अक्सर ऋण तक सीमित पहुँच रहती है क्योंकि बैंक उन्हें उच्च जोखिम वाले उधारकर्त्ताओं के रूप में देखते हैं।
      • जटिल ऋण प्रक्रियाओं तथा उच्च ब्याज दरों से यह स्थिति और भी बदतर हो जाती है।
      • इसके अलावा इस क्षेत्र से संबंधित हितधारकों में वैकल्पिक वित्तपोषण विकल्पों की समझ सीमित है।
      • उदाहरण के लिये केवल 16% MSMEs की औपचारिक ऋण तक पहुँच है, जिनमें से कई अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।
    • तकनीकी का पुराना होना: प्रौद्योगिकी को उन्नत करने के लिये कई MSMEs के पास आवश्यक धन की कमी रहती है जिससे इन्हें बड़ी एवं तकनीकी रूप से उन्नत फर्मों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है।
      • अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं तक सीमित पहुँच तथा उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों को अपनाने में चुनौतियाँ, इनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में और बाधा डालती हैं।
    • विपणन और ब्रांडिंग चुनौतियाँ: MSMEs के पास अक्सर विपणन और ब्रांडिंग के लिये सीमित संसाधन होते हैं, जिससे स्थापित ब्रांडों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है।
      • उदाहरण के लिये कई हस्तशिल्प उत्पादकों को स्थानीय बाज़ारों से परे अपने उत्पादों का विपणन करना मुश्किल होता है, जिससे इन्हें वैश्विक स्तर के अवसर नहीं मिल पाते हैं।
    • कुशल कर्मचारियों की कमी: कुशल कर्मचारियों को आकर्षित करना और उन्हें बनाए रखना MSMEs के लिये एक बड़ी चुनौती है। प्रशिक्षण एवं विकास हेतु सीमित संसाधनों तथा कर्मचारी टर्नओवर की अधिकता से यह समस्या और भी जटिल हो जाती है।
      • उद्योग की आवश्यकताओं एवं उपलब्ध कौशल के बीच अक्सर अंतराल बना रहता है।
      • उदाहरण के लिये ऑटो सेक्टर में (विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में) कौशल अंतराल बना रहता है।
    • कच्चे माल की खरीद: सीमित वित्तीय क्षमता के कारण कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण MSMEs को कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
      • उदाहरण के लिये, छोटी कपड़ा इकाइयों को अक्सर कपास की कीमतों में उतार-चढ़ाव से मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लाभ एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर असर पड़ता है।

    MSMEs से संबंधित चुनौतियों को दूर करने के उपाय:

    • ऋण पहुँच को बढ़ाना: इसके तहत MUDRA और सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों हेतु ऋण गारंटी निधि ट्रस्ट (CGTMSE) जैसी योजनाओं को मज़बूत करना, फिनटेक तथा डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म को प्रोत्साहित करना व वैकल्पिक वित्तपोषण विकल्पों को बढ़ावा देना शामिल है।
    • प्रौद्योगिकी उन्नयन और नवाचार सहायता: इसमें क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी स्कीम (CLCSS) को बढ़ावा देना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हेतु उद्योग-अकादमिक भागीदारी को बढ़ावा देना, देश भर में अधिक प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित करना और सब्सिडी तथा प्रशिक्षण के माध्यम से उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना शामिल हैं।
    • बाज़ार संबंध और निर्यात संवर्द्धन: इसमें सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को मज़बूत करना, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों में भागीदारी को बढ़ावा देना तथा निर्यात-विशिष्ट ऋण एवं बीमा सहायता प्रदान करना शामिल है।
    • कौशल विकास और क्षमता निर्माण: कौशल भारत मिशन के तहत कार्यक्रमों का विस्तार करना, उद्योग-विशिष्ट कौशल विकास केंद्रों को प्रोत्साहित करना, MSMEs में प्रशिक्षुता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना तथा उद्यमिता प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करना शामिल हैं।
    • व्यापार करने में सुलभता: इसके तहत विनियमों को सरल बनाना, एकल-खिड़की निकासी प्रणालियों को बढ़ावा देना, श्रम सुधारों को लागू करना, अनुपालन प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाना तथा सरकारी विभागों में समर्पित MSMEs सुविधा प्रकोष्ठ प्रदान करना शामिल हैं।
      • उदाहरण के लिये, उद्यम पंजीकरण प्रक्रिया ने MSMEs पंजीकरण को सरल बनाया है और यह इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • औपचारिकता और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना: इसके तहत पंजीकरण एवं कर अनुपालन को प्रोत्साहित करना, औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल होने के लिये लाभ प्रदान करना, डिजिटल भुगतान तथा लेखा प्रणालियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना और MSMEs-विशिष्ट क्लाउड-आधारित समाधान विकसित करना शामिल हैं।
      • उदाहरण के लिये MSMEs की परिभाषा में हाल ही में हुए बदलाव से औपचारिकता को प्रोत्साहन मिलने के साथ अधिक इकाइयों को औपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत लाया गया है।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और गुणवत्ता में वृद्धि: इसमें गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों को अपनाने को बढ़ावा देना तथा निर्यात-उन्मुख MSMEs क्लस्टर विकसित करना शामिल हैं।
      • उदाहरण के लिये ज़ीरो डिफेक्ट ज़ीरो इफेक्ट (ZED) प्रमाणन योजना से MSMEs की गुणवत्ता में सुधार होने के साथ पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद मिली है।

    निष्कर्ष:

    MSMEs, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का इंजन हैं। बहुआयामी दृष्टिकोण के माध्यम से इनकी वित्तीय तथा परिचालन बाधाओं को हल करके, सरकार इन्हें भारत की आर्थिक समृद्धि में योगदान देने हेतु सशक्त बना सकती है।

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