भारत में संघवाद की अवधारणा एवं विकासयात्रा की व्याख्या कीजिये। भारत में गठबंधन राजनीति के पुनरुत्थान के बाद भारत के संघीय ढाँचे को मज़बूत करने के क्रम में विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की पहचान करते हुए इनके समाधान हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- भारत में संघवाद की अवधारणा का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- भारत में संघवाद के विकास की व्याख्या कीजिये।
- भारत के संघीय ढाँचे में प्रमुख चुनौतियों की पहचान कीजिये।
- भारत के संघीय ढाँचे को मज़बूत करने के लिये समाधान दीजिये।
- भारत में संघवाद के लिये एक दूरदर्शी दृष्टिकोण प्रस्तावित करके निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत में संघवाद एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें संवैधानिक रूप से केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों के मध्य सत्ता का विभाजन किया गया है। भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत विषयों का राज्य सूची, केंद्रीय सूची और समवर्ती सूची में स्पष्ट विभाजन संघ की घटक इकाइयों को उनकी संबंधित भूमिकाओं को दर्शाता है।
भारत में संघवाद का उद्देश्य क्षेत्रीय स्वशासन का पालन करते हुए एकता बनाए रखना है। संघवाद एक बड़ी राजनीतिक इकाई के भीतर विविधता और क्षेत्रीय स्वायत्तता को समायोजित करने की अनुमति देता है। हालाँकि भारतीय संविधान एक संघीय प्रणाली स्थापित करता है, जिसकी विशेषता एक मज़बूत केंद्रीय सरकार है, जिसे अक्सर "अर्द्ध-संघीय" कहा जाता है।
मुख्य भाग:
भारत में संघवाद का विकास:
- आंतरिक-दल संघवाद (Inner-Party Federalism) (1950-67):
- संघवाद के प्रथम चरण के दौरान संघीय सरकार और राज्यों के बीच प्रमुख विवादों का समाधान कॉन्ग्रेस पार्टी के मंचों पर किया जाता था, जिसे राजनीतिक-वैज्ञानिक रजनी कोठारी ने ‘कॉन्ग्रेस प्रणाली’ (Congress System) कहा है।
- अभिव्यंजक संघवाद (Expressive Federalism) (1967-89):
- इस चरण में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और विपक्षी दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के बीच ‘अभिव्यंजक’ (expressive) तथा अधिक प्रत्यक्ष संघर्षपूर्ण संघीय गतिशीलता के युग को चिह्नित किया गया है।
- बहुदलीय संघवाद (Multi-Party Federalism) (1990-2014):
- इस अवधि में केंद्र-राज्य के मध्य तनाव में कमी देखी गई, साथ ही राज्य शासन के विघटन के लिये केंद्र द्वारा अनुच्छेद 356 के मनमाने उपयोग में भी कमी आई।
- टकरावपूर्ण संघवाद (Confrontational Federalism) (2014- 2024):
- वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में एकल दल बहुमत के साथ एक बार फिर ‘प्रभुत्वशाली दल’ के प्रभाव वाला संघवाद उभर कर सामने आया। इस अवधि में सत्तारूढ़ दल ने कई राज्यों में भी सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत की साथ ही टकरावपूर्ण संघवाद का उदय हुआ, जहाँ विपक्ष के नेतृत्व वाले राज्यों और केंद्र के बीच महत्त्वपूर्ण विवाद हुए।
- वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद: केंद्रीय स्तर पर गठबंधन की राजनीति के पुनरुत्थान ने क्षेत्रीय दलों को प्रमुख शक्ति दल का दर्जा दिया गया, जो केंद्रीकृत नीति निर्णय की प्रवृत्ति का मुकाबला करता है।
भारत में संघवाद के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:
- केंद्रीकरण और क्षेत्रवाद में संतुलन: भारत राष्ट्रीय एकता के लिये केंद्रीय प्राधिकार और क्षेत्रीय आवश्यकताओं के लिये राज्य स्वायत्तता के बीच की जटिल स्थिति का सामना करता है। मज़बूत केंद्रीय सरकारों को अतिक्रमण के रूप में देखा जा सकता है, जबकि मज़बूत क्षेत्रीय आंदोलन राष्ट्रीय एकता को खतरे में डाल सकते हैं।
- वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार ने राज्य विधानमंडल से परामर्श किये बिना ही हटा दिया। संघीय सिद्धांतों को कमज़ोर करने के प्रयास के रूप में इस कदम की आलोचना की गई।
- शक्तियों के विभाजन से संबंधित विवाद: संविधान केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन करता है (संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के माध्यम से)। कई बार यह विभाजन अस्पष्ट सिद्ध हो सकता है, जिससे अधिकार क्षेत्र को लेकर (विशेष रूप से कृषि या शिक्षा को समवर्ती सूची में रखने) टकराव उत्पन्न हो सकता है।
- केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2020 में पारित तीन कृषि कानूनों को पंजाब जैसे राज्यों ने इस आधार पर चुनौती दी थी कि कृषि राज्य सूची का विषय है। यह शक्ति विभाजन की व्याख्या को लेकर जारी विवादों को उजागर करता है।
- राज्यपाल के पद का दुरुपयोग: राज्यपाल के पद का दुरुपयोग—विशेष रूप से राज्य सरकारों को मनमाने ढंग से बर्खास्त करने, सरकार गठन में हेरा-फेरी, विधेयकों पर मंज़ूरी न देने और प्रायः केंद्रीय सत्तारूढ़ दल के निर्देश पर होने वाले स्थानांतरण एवं नियुक्तियों से संबंधित मामलों में—चिंता का विषय बनता जा रहा है।
- अरुणाचल प्रदेश (2016) में सत्तारूढ़ सरकार के पास बहुमत का समर्थन होने के बावजूद राज्यपाल की अनुशंसा पर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया, जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया।
- अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग :
- वर्ष 2000 तक 100 से अधिक बार राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग किया गया था, जिससे राज्य की स्वायत्तता बाधित हुई। हालाँकि इसका उपयोग कम हुआ है, लेकिन इसका संभावित दुरुपयोग चिंता का विषय बना हुआ है।
- वर्ष 1988 में सरकारिया आयोग ने पाया कि अनुच्छेद 356 के उपयोग के कम-से-कम एक तिहाई मामले राजनीति से प्रेरित थे।
- राजकोषीय असंतुलन:
- असमान राजस्व वितरण: 15वें वित्त आयोग ने राज्यों के लिये केंद्रीय करों में अधिक हिस्सेदारी की और इसे 32% से बढ़ाकर 41% करने की अनुशंसा की। राज्य प्रायः शिकायत करते हैं कि उन्हें प्राप्त धन अपर्याप्त है और इसे समय पर वितरित नहीं किया जाता है, जिससे राजकोषीय तनाव उत्पन्न होता है।
- इसके अलावा, दक्षिणी राज्य प्रायः शिकायत करते हैं कि उत्तरी राज्यों की तुलना में करों में अधिक योगदान के बावजूद उन्हें कम धनराशि प्राप्त होती है और उन्हें उनकी कम जनसंख्या के कारण इस असमानता का सामना करना पड़ता है।
- अंतर्राज्यीय विवाद:
- भारत में अंतर्राज्यीय विवादों में जल बँटवारा, सीमा विवाद और संसाधन आवंटन सहित कई मुद्दे शामिल हैं।
- तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी नदी के जल बँटवारे को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस विवाद में कई कानूनी लड़ाइयाँ, हिंसक विरोध प्रदर्शन तथा राजनीतिक गतिरोध देखने को मिले हैं।
- विशेष श्रेणी के दर्जे की मांग: बिहार और आंध्र प्रदेश की राष्ट्रीय गठबंधन सरकार में क्षेत्रीय दल विशेष श्रेणी के दर्जे को अपनी विशिष्ट विकासात्मक चुनौतियों से निपटने तथा सतत् वृद्धि एवं विकास के लिये आवश्यक अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्राप्त करने के लिये एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में देखते हैं।
- राष्ट्रीय गठबंधन सरकार में शामिल बिहार और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रीय दल अपनी विशिष्ट विकासात्मक चुनौतियों से निपटने तथा सतत् वृद्धि एवं विकास के लिये आवश्यक अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्राप्त करने हेतु विशेष श्रेणी दर्जे (Special Category Status) को एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में देखते हैं।
भारत के संघीय ढाँचे को मज़बूत करने के लिये उठाये गए कदम:
- संघीय सिद्धांतों और भावना का सम्मान:
- केंद्रीय हस्तक्षेप को कम करना: केंद्र को संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 (जो राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति देते हैं) के तहत अपनी शक्तियों के अत्यधिक उपयोग से बचना चाहिये। इससे राज्यों के लिये अधिक स्वायत्तता सुनिश्चित होगी।
- सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था कि अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का प्रयोग अत्यंत संयम से किया जाना चाहिये और अत्यंत आवश्यक मामलों में अंतिम उपाय के रूप में तभी इसका प्रयोग किया जाना चाहिये जब अन्य सभी उपलब्ध विकल्प विफल हो जाएँ।
- अधिक प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करना: पुंछी आयोग ने राज्यपाल की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की भागीदारी की अनुशंसा की थी।
- शक्तियों का हस्तांतरण बढ़ाना: संवैधानिक सूचियों को संशोधित करके, केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाकर, राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता और लचीलापन देकर, राज्यों तथा स्थानीय निकायों को शक्तियों एवं संसाधनों का हस्तांतरण बढ़ाकर संघवाद को मज़बूत किया जा सकता है।
- शक्तियों का हस्तांतरण बढ़ाना:
- संवैधानिक सूचियों में संशोधन करने, केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने, राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता और लचीलापन प्रदान करने आदि के रूप में राज्यों तथा स्थानीय निकायों के लिये शक्तियों एवं संसाधनों का हस्तांतरण बढ़ाकर संघवाद को सुदृढ़ किया जा सकता है।
- केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाना: पुंछी आयोग ने केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने और उनकी वित्तीय स्वायत्तता में वृद्धि का सुझाव दिया है।
- अंतर-राज्य परिषद (ISC) को पुनर्जीवित करना: अंतर-राज्यीय विवादों को सुलझाने और राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिये ISC को अधिक प्रभावी मंच के रूप में तैयार करना। इसमें आम नीतियों को विकसित करने के लिये इसे अधिक शक्ति प्रदान कर सकते है।
- सहकारी और प्रतिस्पर्द्धा संघवाद को बढ़ावा देना:
- सहकारी संघवाद में केंद्र और राज्य राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा प्रबंधन और आर्थिक विकास जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर मिलकर कार्य करते हैं, जिससे साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित होता है।
- उदाहरण के लिये GST परिषद की स्थापना करना और राज्यों की वित्त पोषण हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये वित्त आयोग के सुझाव को मंज़ूरी देना।
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में राज्य बुनियादी ढाँचे, सार्वजनिक सेवाओं और विनियामक ढाँचे में सुधार करके निवेश एवं प्रतिभा के लिये प्रतिस्पर्द्धा करते हैं। इससे पूरे देश में नवाचार और बेहतर शासन प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।
- नीति आयोग विभिन्न सूचकांकों के माध्यम से भारत में अधिक मज़बूत और प्रतिस्पर्द्धी संघीय प्रणाली के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है, जो राज्यों को स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक (SEQI), राज्य स्वास्थ्य सूचकांक (SHI), समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI) आदि जैसे विशिष्ट मापदंडों पर रैंकिंग प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
गठबंधन राजनीति के पुनरुत्थान और क्षेत्रीय दलों के बढ़ते प्रभाव से चिह्नित उभरता राजनीतिक परिदृश्य संघीय ढाँचे को पुनर्परिभाषित करने तथा इसे सुदृढ़ करने का एक अनूठा अवसर प्रदान कर रहा है। भारत में संघवाद के लिये एक दूरदर्शी दृष्टिकोण वह होगा जो इसकी विविधता का जश्न मनाए, सहयोग को बढ़ावा दे और इसके सभी नागरिकों के लिये एक सामंजस्यपूर्ण एवं समृद्ध भविष्य का निर्माण करे।