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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    लोकतंत्र में अधिकारों तथा कर्त्तव्यों के बीच संबंधों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। कभी-कभी व्यक्तिगत अधिकारों एवं सामाजिक कर्त्तव्यों के बीच किस प्रकार टकराव देखा जाता है? (150 शब्द)

    20 Jun, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • अधिकारों और कर्त्तव्यों को परिभाषित करते हुए उत्तर लिखिये।
    • अधिकारों और कर्त्तव्यों के बीच संबंधों पर प्रकाश डालिये।
    • अधिकारों और कर्त्तव्यों के बीच संभावित संघर्षों पर गहराई से विचार कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    लोकतंत्र व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक कर्त्तव्यों के बीच एक नाजुक संतुलन पर पनपता है। ये अवधारणाएँ परस्पर अनन्य नहीं हैं; जबकि आपस में जुड़ी हुई हैं।

    • अधिकार व्यक्तियों को सशक्त बनाते हैं, जो सामाजिक संरचना में अभिकरण और भागीदारी की भावना को बढ़ावा देते हैं।
    • दूसरी ओर, कर्त्तव्य व्यक्तियों को सामूहिक हित के लिये बाँधते हैं, साथ ही सामाजिक व्यवस्था और प्रगति सुनिश्चित करते हैं।

    मुख्य भाग:

    अधिकारों और कर्त्तव्यों के बीच संबंध:

    • नागरिक भागीदारी के सक्षमकर्त्ता के रूप में अधिकार: लोकतंत्र में व्यक्तिगत अधिकार नागरिकों को शासन प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनाते हैं, जिससे एक जीवंत नागरिक समाज का निर्माण होता है।
      • उदाहरण: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 भारतीय नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेहिता को बढ़ावा मिलता है।
    • सामाजिक उत्तरदायित्व के स्तंभ के रूप में कर्त्तव्य: सामाजिक कर्त्तव्य सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न करते हैं, जिससे लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं का सुचारु संचालन सुनिश्चित होता है।
      • उदाहरण: चुनावों में मतदान करने का कर्त्तव्य, भारत में कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है, लेकिन राष्ट्र के लोकतांत्रिक ढाँचे को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • सहजीवी संबंध: लोकतंत्र में अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जो एक सहजीवी संबंध में मौजूद हैं।
      • उदाहरण: भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार (भाग III) और मौलिक कर्त्तव्य (भाग IV-A) को शामिल किया गया है, जो लोकतांत्रिक ढाँचे में उनके परस्पर संबंधित स्वरूप को उजागर करता है।

    अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के बीच संभावित संघर्ष:

    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सार्वजनिक व्यवस्था: बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार असहमति की अनुमति देता है, यह सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के कर्त्तव्य के साथ संघर्ष कर सकता है।
      • घृणास्पद भाषण या हिंसा को बढ़ावा देने से सामाजिक शांति भंग हो सकती है। हालाँकि संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है।
    • संपत्ति अधिकार बनाम विकास: संपत्ति के स्वामित्व का अधिकार आवश्यक है, लेकिन विकास परियोजनाओं के लिये प्रायः भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता होती है, जिससे संभावित रूप से व्यक्तियों को विस्थापित होना पड़ता है।
      • व्यापक हित के लिये विकास को बढ़ावा देने का सरकार का कर्त्तव्य विस्थापित लोगों के अधिकारों के साथ टकराव कर सकता है।
    • धार्मिक स्वतंत्रता बनाम लैंगिक समानता: भारत का धर्मनिरपेक्ष ढाँचा धार्मिक स्वतंत्रता की अनुमति देता है।
      • हालाँकि धार्मिक संबंधों के बावजूद सती (विधवा को जलाने) जैसी हानिकारक मानी जाने वाली प्रथाओं को गैरकानूनी घोषित किया गया है।
      • ऐसे मामलों में लैंगिक समानता को बनाए रखने का कर्त्तव्य पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता पर वरीयता लेता है।
    • गोपनीयता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा: गोपनीयता का अधिकार व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा करता है। हालाँकि राज्य का कर्त्तव्य राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखना है, जिसके लिये संभावित रूप से जाँच के लिये डेटा संग्रह की आवश्यकता होती है।
      • आधार कार्यक्रम गोपनीयता बनाम सुरक्षा लाभों के बारे में चिंताएँ व्यक्त करता है।
    • पर्यावरण अधिकार बनाम आजीविका: स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि पर्यावरण संरक्षण के लिये बनाए गए नियम कभी-कभी उन लोगों की आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर निर्भर हैं।
      • उदाहरण: नदियों की रक्षा के लिये रेत खनन पर बनाए गए नियम रेत खनिकों की आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं।

    निष्कर्ष:

    लोकतंत्र में व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक कर्त्तव्यों के बीच संबंध गतिशील है, जो सामाजिक मूल्यों तथा प्रगति के साथ-साथ निरंतर विकसित होता रहता है। आपसी सम्मान एवं सामूहिक उत्तरदायित्व की संस्कृति को बढ़ावा देकर, भारत का लोकतंत्र यह सुनिश्चित कर सकता है कि व्यक्तिगत अधिकार सामाजिक कर्त्तव्य की मज़बूत भावना के साथ-साथ पनपें, जिससे अंततः सभी के लिये न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज का निर्माण हो।

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