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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में अनुवांशिक रूप से संशोधित जीवों के लिये विनियामक ढाँचे का विश्लेषण कीजिये। अनुवांशिक संशोधन प्रौद्योगिकी से संबंधित संभावित लाभों और जोखिमों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    19 Jun, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकी को परिभाषित करके परिचय दीजिये।
    • भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के लिये विनियामक ढाँचे पर प्रकाश डालिये।
    • आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकी से जुड़े संभावित लाभों और जोखिमों पर गहराई से विचार कीजिये।
    • आगे की राह सुझाते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय :

    आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकी, जिसे आनुवंशिक इंजीनियरिंग के रूप में भी जाना जाता है, विशिष्ट जीन को प्रस्तुत करने, हटाने या संशोधित करके किसी जीव की आनुवंशिक सामग्री को बदलने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।

    भारत में इस तकनीक का अनुप्रयोग एक व्यापक नियामक ढाँचे द्वारा शासित है जिसका उद्देश्य GMOs के लाभों का दोहन करते हुए उनके सुरक्षित विकास, हैंडलिंग और व्यावसायीकरण को सुनिश्चित करना है।

    भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के लिये विनियामक ढाँचा:

    • अंब्रेला विधान: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।
    • विशिष्ट नियम: खतरनाक सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूप से इंजीनियर जीवों या कोशिकाओं के निर्माण/उपयोग/आयात/निर्यात और भंडारण के नियम (1989) GMO के लिये एक विनियामक प्रक्रिया स्थापित करते हैं।
    • कार्यान्वयन निकाय: आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) GMO के अनुसंधान, विकास, व्यावसायीकरण और आयात/निर्यात को स्वीकृति देने के लिये शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करती है।
      • पुनः संयोजक DNA सलाहकार समिति (RDAC) राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैव प्रौद्योगिकी में विकास की समीक्षा करती है तथा r-DNA अनुसंधान, उपयोग व अनुप्रयोगों में भारत के लिये उपयुक्त एवं उचित सुरक्षा नियमों की सिफारिश करती है।
    • राज्य-स्तरीय समन्वय: राज्य जैव सुरक्षा समन्वय समितियाँ (SBCC) और ज़िला स्तरीय समितियाँ (DLC) राज्य तथा ज़िला स्तरों पर कार्यान्वयन का समर्थन करती हैं।

    आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकी के संभावित लाभ:

    • फसल की पैदावार में वृद्धि: आनुवंशिक संशोधन कीट प्रतिरोध, सूखा सहिष्णुता और बेहतर पोषक तत्त्व उपयोग जैसे गुणों को शामिल करके फसल की पैदावार को बढ़ा सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा में योगदान मिलता है।
      • उदाहरण: बॉलवर्म कीटों का प्रतिरोध करने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कपास ने भारत में उपज में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
    • पोषण की बेहतर गुणवत्ता: आनुवंशिक संशोधन के माध्यम से बायोफोर्टिफिकेशन आवश्यक विटामिन, खनिज और पोषक तत्त्वों को बढ़ाकर फसलों के पोषण मूल्य को बढ़ा सकता है।
      • उदाहरण: विटामिन ए से समृद्ध गोल्डन राइस में विकासशील देशों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने की क्षमता है।
    • कीटनाशक और शाकनाशी के उपयोग में कमी: कीट प्रतिरोध या शाकनाशी सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक रूप से इंजीनियर फसलें रासायनिक कीटनाशकों तथा शाकनाशियों की आवश्यकता को कम कर सकती हैं, टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दे सकती हैं एवं पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकती हैं।
    • चिकित्सा और दवा अनुप्रयोग: आनुवंशिक संशोधन आनुवंशिक रूप से संशोधित सूक्ष्मजीवों या पौधों के माध्यम से चिकित्सीय प्रोटीन, टीके तथा अन्य चिकित्सा उत्पादों के उत्पादन में योगदान दे सकता है।

    संभावित जोखिम और चिंताएँ:

    • पर्यावरणीय जोखिम: GMO से गैर-लक्ष्यित प्रजातियों (जीन प्रवाह) में ट्रांसजीन का अनपेक्षित प्रसार और जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन पर संभावित प्रभाव प्रमुख चिंताएँ हैं।
    • खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थों के सेवन से संभावित एलर्जी, विषाक्तता तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में चिंताएँ हैं, हालाँकि व्यापक अध्ययनों में अब तक कोई महत्त्वपूर्ण जोखिम नहीं पाया गया है।
    • नैतिक और सामाजिक चिंताएँ: आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों का पेटेंट और बड़े निगमों द्वारा बीज उद्योग पर संभावित एकाधिकार पहुँच, सामर्थ्य तथा किसानों के अधिकारों से संबंधित नैतिक एवं सामाजिक चिंताएँ उत्पन्न करता है।
    • नियामक और जैव सुरक्षा चुनौतियाँ: मज़बूत जोखिम मूल्यांकन, निगरानी और जैव सुरक्षा विनियमों का प्रवर्तन सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में जहाँ संसाधनों की कमी है।

    आगे की राह

    • बाज़ार के बाद की निगरानी (Post-Market Monitoring): पर्यावरण में जारी होने के बाद GMO के दीर्घकालिक प्रभावों को ट्रैक करने के लिये सख्त बाज़ार के बाद की निगरानी कार्यक्रमों को लागू करना।
    • पारदर्शिता और लेबलिंग: उपभोक्ताओं को चुनने का अधिकार देने के लिये GMO उत्पादों की स्पष्ट लेबलिंग सुनिश्चित करना।
    • तकनीकी प्रगति का लाभ उठाना: अनपेक्षित परिणामों को कम करने के लिये CRISPR जैसी नई, अधिक सटीक जीन संपादन तकनीकों पर शोध को बढ़ावा देना।
      • मंज़ूरी से पहले विशिष्ट GMO से जुड़े संभावित जोखिमों का व्यापक मूल्यांकन करने हेतु मज़बूत जोखिम मूल्यांकन उपकरण विकसित करना।
    • संरक्षकता और सह-अस्तित्त्व को बढ़ावा देना: GMO के जीन प्रवाह को रोकने और पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने के लिये अलगाव दूरी (isolation distances), बफर ज़ोन एवं रोकथाम रणनीतियों जैसे मज़बूत जैव सुरक्षा उपायों को लागू करना।
      • GMO और रासायनिक इनपुट पर निर्भरता को कम करने के लिये एकीकृत कीट प्रबंधन एवं फसल चक्रण जैसी टिकाऊ कृषि प्रथाओं को अपनाने को प्रोत्साहित करना।
    • नियमों का सामंजस्य: GMO के लिये नियमों को सुसंगत बनाने हेतु अन्य देशों के साथ सहयोग करना, एक सुसंगत वैश्विक दृष्टिकोण सुनिश्चित करना।
      • GMO अनुसंधान और जोखिम मूल्यांकन निष्कर्षों पर सूचना साझा करने को बढ़ावा देना।

    निष्कर्ष:

    खाद्य सुरक्षा (SDG 2) को बढ़ाने, टिकाऊ कृषि (SDG 2 व 15) को बढ़ावा देने एवं मानव स्वास्थ्य (SDG 3) में योगदान देने हेतु GMO की क्षमता का दोहन करने के लिये एक मज़बूत नियामक ढाँचा, निरंतर निगरानी और समावेशी हितधारक जुड़ाव अनिवार्य है, जबकि इससे जुड़े जोखिमों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना तथा नैतिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय चिंताओं को संबोधित करना भी ज़रूरी है।

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