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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने में दबाव समूहों या हित समूहों की भूमिका की व्याख्या कीजिये। उनके प्रभाव के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    18 Jun, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • दबाव समूहों को परिभाषित करके उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत में नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने में दबाव समूहों या हित समूहों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
    • इनके सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    दबाव समूह और हित समूह समाज के विशिष्ट समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन हैं यह सार्वजनिक व्यवस्था एवं सरकारी निर्णयों को अपने पक्ष में प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।

    • भारत जैसे जीवंत लोकतंत्र में ऐसे समूह नीतिगत निर्माण प्रक्रिया को आकार देने के साथ यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि समाज के विभिन्न समूहों की चिंताओं पर ध्यान दिया जाए।

    मुख्य भाग:

    भारत में नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने में दबाव समूहों की भूमिका:

    • एजेंडा सेटिंग: दबाव समूह लोगों की चिंताओं को नीति निर्माताओं के समक्ष लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • ये जागरूकता बढ़ाने और नीतिगत एजेंडा को आकार देने के क्रम में लॉबिंग, जन अभियान तथा विरोध प्रदर्शन जैसे तरीकों को अपनाते हैं।
    • नीति निर्माण: कई दबाव समूहों के पास किसी विशेष क्षेत्र में विशेषज्ञता होती है और वे नीति निर्माण में मूल्यवान इनपुट प्रदान करते हैं। ये परामर्श प्रक्रिया में भाग लेने के साथ सिफारिशें देते हैं तथा नीतियों में अपने हितों को शामिल करने के लिये वकालत करते हैं।
    • नीति कार्यान्वयन: दबाव समूह नीतियों के कार्यान्वयन की सक्रिय रूप से निगरानी करने के साथ इसके लिये सरकार को जवाबदेह ठहराते हैं। ये नीति कार्यान्वयन के विशिष्ट पहलुओं का समर्थन या विरोध करते हैं, जिससे नीतियों को ज़मीनी स्तर पर लागू करने के तरीके पर प्रभाव डाला जा सके।
    • जनमत जुटाना: दबाव समूहों में कुछ नीतियों के पक्ष में या खिलाफ जनमत जुटाने की क्षमता होती है। वे जनता की भावनाओं को प्रभावित करने हेतु सोशल मीडिया सहित विभिन्न माध्यमों का उपयोग करते हैं, जो नीति निर्माताओं के निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।

    इनके सकारात्मक पहलू:

    • विविध हितों का प्रतिनिधित्व: दबाव समूह समाज के विभिन्न वर्गों जैसे- किसानों, श्रमिकों, व्यापारियों एवं हाशिये पर स्थित समुदायों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने तथा नीति निर्माण प्रक्रिया में भाग लेने के लिये एक मंच प्रदान करते हैं।
      • उदाहरण: अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेस (AITUC) और भारतीय मज़दूर संघ (BMS) ने श्रमिकों के अधिकारों की वकालत करने तथा श्रम नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • नियंत्रण एवं संतुलन: दबाव समूह निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं और इस क्रम में यह सरकारी कार्यों एवं नीतियों की निगरानी करते हैं तथा नीति निर्माताओं को उनके निर्णयों के लिये जवाबदेह ठहराते हैं।
      • उदाहरण: ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) जैसे पर्यावरण समूह पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा प्रदूषण नियंत्रण एवं सतत् विकास से संबंधित नीतियों को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • विशेषज्ञता एवं ज्ञान: कई दबाव/हित समूहों के पास अपने-अपने क्षेत्रों में विशेष ज्ञान एवं विशेषज्ञता होती है, जो सूचित नीति निर्माण में योगदान कर सकते हैं।
      • उदाहरण: भारतीय उद्योग परिसंघ (CII), उद्योग संघों, आर्थिक नीतियों एवं विनियमनों पर सरकार को बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करने के साथ ही सिफारिशें भी करते हैं।
    • जन जागरूकता एवं गतिशीलता: दबाव समूह विभिन्न मुद्दों पर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के साथ उनके उद्देश्यों के लिये समर्थन जुटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो नीति निर्माताओं को इन चिंताओं को समाप्त करने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
      • उदाहरण: नागरिक समाज समूहों द्वारा संचालित आंदोलन ने 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे शासन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को समर्थन प्राप्त हुआ।

    उनके प्रभाव के नकारात्मक पक्ष:

    • असंतुलित प्रभाव: सुव्यवस्थित रूप से वित्तपोषित एवं संगठित दबाव समूह नीति निर्माण पर असंगत प्रभाव डाल सकते हैं, संभावित रूप से कम प्रभावशाली अथवा हाशिये पर रहने वाले समूहों के हितों को कमज़ोर कर सकते हैं।
      • उदाहरण: शक्तिशाली व्यावसायिक समूहों द्वारा कॉर्पोरेट समुदाय कभी-कभी ऐसी नीतियों का कारण बन सकती है जो सार्वजनिक कल्याण पर कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता देती हैं।
    • संकीर्ण हित: दबाव समूह प्राय: अपने विशिष्ट हितों की वकालत करते हैं, जो व्यापक सार्वजनिक हित या अन्य समूहों के हितों के साथ टकराव उत्पन्न कर सकते हैं।
      • उदाहरण: कृषि सुधारों के विरूद्ध कुछ किसान समूहों द्वारा किये जा रहे विरोध प्रदर्शन का उद्देश्य उनके हितों की रक्षा करना है, लेकिन इससे सरकार के अत्यधिक महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन लाने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • ध्रुवीकरण एवं संघर्ष: विभिन्न दबाव समूहों की प्रतिस्पर्द्धी मांगों तथा हितों के कारण नीति निर्माण प्रक्रिया में ध्रुवीकरण, संघर्ष एवं गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।
    • गलत सूचना एवं दुष्प्रचार: कुछ दबाव समूह अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये गलत सूचना अभियान, प्रचार अथवा यहाँ तक कि हिंसा का सहारा ले सकते हैं, जिससे नीति निर्धारण प्रक्रिया की अखंडता कमज़ोर हो सकती है।
      • उदाहरण: सैन्य भर्ती के लिये अग्निपथ योजना के विरुद्ध हालिया विरोध प्रदर्शनों में हिंसा की घटनाएँ हुईं, जिससे रचनात्मक बातचीत में बाधा उत्पन्न हुई।

    निष्कर्ष:

    संतुलित और प्रभावी नीति निर्माण प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये, दबाव समूहों की वैध चिंताओं को समायोजित करने के साथ-साथ व्यापक सार्वजनिक हित की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है। समावेशी तथा पारदर्शी परामर्श, मज़बूत विनियामक ढाँचे एवं प्रभावी संघर्ष समाधान तंत्र दबाव समूह के प्रभाव के नकारात्मक पहलुओं को कम करने में सहायता प्रदान कर सकते हैं, साथ ही उनके सकारात्मक योगदान का उपयोग भी कर सकते हैं।

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