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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    नैतिक सापेक्षवाद के अनुसार, नैतिकता किसी विशेष संस्कृति या समाज के सापेक्ष होती है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    13 Jun, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • नैतिक सापेक्षवाद को परिभाषित करके परिचय दीजिये।
    • नैतिक सापेक्षवाद के पक्ष में तर्क दीजिये।
    • नैतिक सापेक्षवाद के विरुद्ध तर्कों पर गहराई से विचार कीजिये।
    • संतुलित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय :

    नैतिक सापेक्षवाद एक दार्शनिक सिद्धांत है जो तर्क देता है कि नैतिक निर्णय निरपेक्ष या सार्वभौमिक नहीं होते, बल्कि किसी विशेष संस्कृति या समाज के मानदंडों और मूल्यों के सापेक्ष होते हैं।

    • यह दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ नैतिक सिद्धांतों के विचार को चुनौती देता है जो प्रत्येक व्यक्ति और स्थान पर लागू होते हैं।

    नैतिक सापेक्षवाद के लिये तर्क:

    • सांस्कृतिक विविधता और सम्मान: विभिन्न समाजों ने सदियों के विकास के दौरान अपनी अनूठी सांस्कृतिक परंपराएँ, विश्वास प्रणाली और मूल्य प्रणाली विकसित की हैं।
      • नैतिक सापेक्षवाद इस विविधता को स्वीकार करता है और उसका सम्मान करता है।
      • उदाहरण: बहुविवाह की प्रथा, जिसे कुछ संस्कृतियों में स्वीकार की जाती है लेकिन दूसरी संस्कृतियों में इस प्रथा को अनैतिक माना जाता है।
    • नैतिक मानदंड और सामाजिक विकास में परिवर्तन: नैतिक मूल्य और नैतिक सिद्धांत स्थिर नहीं हैं; वे समय के साथ समाज के भीतर विकसित होते एवं बदलते रहते हैं, जो सामाजिक, राजनीतिक तथा तकनीकी विकास से प्रभावित होते हैं।
      • नैतिक सापेक्षवाद, बदलते सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भों के आधार पर नैतिक मानदंडों के इस अनुकूलन व विकास की अनुमति देता है।
      • उदाहरण: समान-लिंग संबंधों और LGBTQ+ अधिकारों की क्रमिक स्वीकृति, जिनकी पहले निंदा की जाती थी या उन्हें अपराधी माना जाता था।
    • नैतिक साम्राज्यवाद से बचना: नैतिक सापेक्षवाद एक संस्कृति के नैतिक मूल्यों को दूसरी संस्कृति पर थोपने से रोकता है, सांस्कृतिक स्वायत्तता और आत्मनिर्णय के लिये सम्मान को बढ़ावा देता है।
      • यह नैतिक साम्राज्यवाद या सांस्कृतिक आधिपत्य की धारणा से बचता है, जिसे उत्पीड़न या नव-उपनिवेशवाद के रूप में देखा जा सकता है।
    • सार्वभौमिक सिद्धांतों की सीमाएँ: नैतिक सापेक्षवाद का मानना ​​है कि सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों को परिभाषित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। "नुकसान" या "सम्मान" का अर्थ संस्कृतियों के बीच भिन्न हो सकता है
      • उदाहरण: कुछ संस्कृतियों में मृत्युदंड को बर्बर माना जाता है, लेकिन अन्य में इसे न्याय का एक रूप माना जाता है।

    नैतिक सापेक्षवाद के विरुद्ध तर्क:

    • सांस्कृतिक प्रथाएँ बनाम सार्वभौमिक त्रुटियाँ: कुछ सांस्कृतिक प्रथाएँ, जैसे महिला जननांग विकृति या बाल विवाह, बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं। नैतिक सापेक्षवाद हानिकारक परंपराओं को उचित ठहराने का जोखिम उठाता है।
    • आंतरिक असहमति और विविधता को नज़रअंदाज़ करना: नैतिक सापेक्षवाद संस्कृतियों के भीतर असहमतिपूर्ण मतों और वैकल्पिक दृष्टिकोणों को अनदेखा कर सकता है या दबा सकता है, जिससे नैतिक स्वायत्तता तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
      • उदाहरण: नारीवादी आंदोलन पारंपरिक सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देते हैं और अपने समाजों के भीतर सामाजिक परिवर्तन का समर्थन करते हैं।
    • नैतिक शून्यवाद और नैतिक व्यक्तिपरकता: जब नैतिक सापेक्षवाद चरम बिंदु पर पहुँच जाता है, तो इसका परिणाम नैतिक शून्यवाद हो सकता है, एक ऐसी स्थिति जिसमें नैतिक निर्णय केवल व्यक्तिपरक और मनमाने होते हैं तथा कोई भी वस्तुनिष्ठ नैतिक सिद्धांत या सत्य स्वीकार नहीं किये जाते हैं।
      • उदाहरण: व्यक्ति या समूह बिना किसी वस्तुनिष्ठ नैतिक आधार के केवल अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं या सांस्कृतिक प्राथमिकताओं के आधार पर हानिकारक या अनैतिक कार्यों को उचित ठहराते हैं।
    • नैतिक असंगति और पाखंड: संस्कृतियाँ या समाज चुनिंदा रूप से सापेक्षतावादी सिद्धांतों को लागू कर सकते हैं, कुछ सार्वभौमिक नैतिक मानकों को स्वीकार करते हुए सांस्कृतिक सुविधा या स्वार्थ के आधार पर दूसरों को अस्वीकार कर सकते हैं।
      • उदाहरण: एक संस्कृति जो कुछ मानवाधिकारों के हनन की निंदा करते हुए, राजनीतिक औचित्य या सांस्कृतिक रीति-रिवाज़ों के कारण अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ अन्य दुर्व्यवहार जेसे पूर्वाग्रह को सहन करती है।
    • नैतिक जवाबदेही का अभाव: नैतिक सापेक्षता नैतिक जवाबदेही को कमज़ोर कर सकती है और अनैतिक कार्यों के लिये व्यक्तियों या समाजों को ज़िम्मेदार ठहराना मुश्किल बना सकती है।
      • उदाहरण: नेता या सरकारें सार्वभौमिक नैतिक मानकों के प्रति जवाबदेह हुए बिना, यह दावा करके अत्याचार या उत्पीड़न को उचित ठहराती हैं कि वे उनके सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हैं।

    निष्कर्ष:

    नैतिक सापेक्षवाद हमें सांस्कृतिक संदर्भों के प्रति सजग रहने के लिये बाध्य करता है। फिर भी मूल नैतिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता महत्त्वपूर्ण बनी हुई है। इस जटिल क्षेत्र में मार्गनिर्देशन करने के लिये एक विचारशील दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखते हुए सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करता है।

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