भारत में हाल ही में "एक राष्ट्र, एक चुनाव" चर्चा का विषय रहा है। ऐसी प्रणाली को लागू करने के संभावित लाभ एवं हानियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- एक राष्ट्र एक चुनाव को परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- एक राष्ट्र एक चुनाव के लाभों पर प्रकाश डालिये।
- इसके नुकसानों पर गहराई से विचार कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" की अवधारणा के अंतर्गत देश भर में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव कराना शामिल है।
- हाल ही में इस अवधारणा पर व्यापक रूप से चर्चा की गई है, जिसके परिणामस्वरूप सितंबर 2023 में एक साथ चुनाव पर एक उच्च स्तरीय समिति की स्थापना की गई है।
मुख्य भाग:
एक साथ चुनाव के संभावित लाभ और नुकसान:
- लाभ:
- लागत-प्रभावशीलता: आँकड़ों के अनुसार मात्र लोकसभा के लिये आम चुनाव कराने की लागत लगभग ₹4,000 करोड़ है।
- अलग-अलग अंतराल पर कई चुनाव कराने से कुल व्यय में काफी वृद्धि होती है।
- एक साथ चुनाव कराने से सरकार और राजनीतिक दलों के लिये लागत में महत्त्वपूर्ण बचत हो सकती है।
- संसाधनों का कुशल उपयोग: एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक मशीनरी, अर्द्धसैनिक बलों और चुनाव कराने के लिये आवश्यक अन्य संसाधनों की तैनाती में सुधार होगा।
- इससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण शासन और प्रशासनिक दक्षता में होने वाले व्यवधानों को रोका जा सकेगा।
- प्रचार मोड (Campaign Mode) में कमी: वर्तमान प्रणाली के तहत राजनीतिक दल और नेता निरंतर चुनाव होने के कारण निरंतर प्रचार मोड में रहते हैं, जिससे नीति-निर्माण तथा शासन में बाधा उत्पन्न होती है।
- एक साथ चुनाव होने से चुनावी व्यवधानों के बिना अपेक्षाकृत लंबे समय तक स्थिर शासन मिल सकता है।
- सामाजिक सामंजस्य: प्रत्येक वर्ष विभिन्न राज्यों में होने वाले उच्च-दाँव (High-stake) वाले चुनावों के कारण प्रायः राजनीतिक दलों द्वारा ध्रुवीकरण अभियान चलाए जाते हैं, जिससे धार्मिक, भाषायी और क्षेत्रीय आधार पर सामाजिक विभाजन बढ़ता है।
- एक साथ चुनाव कराने से संभावित रूप से ऐसे विभाजनकारी अभियानों की आवृत्ति कम हो सकती है, जिससे सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा मिलेगा।
- मतदाताओं की भ्राँति का निवारण: बार-बार चुनाव होने से मतदाता भ्राँति महसूस कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से मतदान में कमी आ सकती है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी कम हो सकती है।
- एक साथ चुनाव कराने से इस समस्या को कम करने में सहायता मिल सकती है, जिससे मतदाताओं की अधिक भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
- हानि:
- संघीय सिद्धांतों पर समझौता: भारत एक विविधतापूर्ण संघीय देश है, जिसके राज्यों में अलग-अलग क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दे हैं।
- एक साथ चुनाव कराने से ये विशिष्ट चिंताएँ खत्म हो सकती हैं, जिससे क्षेत्रीय दलों के मुकाबले राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को फायदा मिल सकता है, जिससे संघीय ढाँचा कमज़ोर पड़ सकता है।
- शायद यह इतना लागत प्रभावी न हो: चुनाव आयोग के विभिन्न अनुमानों से पता चलता है कि पाँच वर्ष के चक्र में सभी राज्य और संसदीय चुनाव कराने की लागत प्रति मतदाता प्रतिवर्ष 10 रुपए के बराबर है।
- अल्पावधि में एक साथ चुनाव कराने से EVM और VVPAT की बहुत बड़ी संख्या में तैनाती की लागत बढ़ जाएगी।
- संवैधानिक चुनौतियाँ: न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान के नेतृत्व में विधि आयोग ने रिपोर्ट दी कि मौजूदा संवैधानिक ढाँचे के भीतर एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है।
- एक साथ चुनाव लागू करने के लिये महत्त्वपूर्ण संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी, विशेष रूप से अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में जो लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि एवं विघटन से संबंधित हैं।
- इस तरह के संशोधनों का संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।
- प्रणालीगत विफलताओं के प्रति संवेदनशीलता: वर्तमान प्रणाली में यदि किसी राज्य या क्षेत्र को चुनाव के दौरान रसद या सुरक्षा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो शेष राज्य प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं।
- हालाँकि एक साथ चुनाव कराने की स्थिति में कोई भी महत्त्वपूर्ण प्रणालीगत विफलता या व्यवधान संभावित रूप से संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया को खतरे में डाल सकता है, जिससे प्रणाली के लचीलेपन से संबंधित चिंताओं में वृद्धि हो सकती है।
निष्कर्ष:
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" को लागू करने का कोई भी निर्णय सभी हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श पर आधारित होना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एक साथ चुनाव के संभावित लाभों को प्राप्त करते हुए संघवाद, लोकतंत्र और संवैधानिक औचित्य के सिद्धांतों को बरकरार रखा जाए।