दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अपने सामरिक और आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने में भारत की एक्ट ईस्ट नीति की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। साथ ही भारत तथा आसियान देशों के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों पर भी गहनता से विचार कीजिये। (250 words)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत की एक्ट ईस्ट नीति के लक्ष्य का उल्लेख करते हुए परिचय लिखिये।
- आर्थिक और सामरिक दृष्टि से एक्ट ईस्ट नीति की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालिये।
- भारत और आसियान के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों पर विस्तार से चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत की एक्ट ईस्ट नीति, नवंबर 2014 में विभिन्न स्तरों पर विशाल एशिया-प्रशांत क्षेत्र, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये एक कूटनीतिक पहल के रूप में शुरू की गई थी।
मुख्य भाग:
एक्ट ईस्ट नीति की प्रभावशीलता:
- रणनीतिक संबंधों को मज़बूत बनाने में:
- भारत ने विभिन्न आसियान-नेतृत्व वाली व्यवस्थाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया है, जैसे कि पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, आसियान क्षेत्रीय मंच तथा आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक आदि।
- इन मंचों ने क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर बातचीत और सहयोग को सुगम बनाया है, जिससे दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी मज़बूत हुई है।
- सामरिक साझेदारी: भारत ने सिंगापुर, वियतनाम और इंडोनेशिया सहित कई आसियान देशों के साथ अपने संबंधों को सामरिक साझेदारी के स्तर तक उन्नत किया है।
- इन साझेदारियों से गहन सहयोग संभव हुआ है।
- आर्थिक संबंधों को मज़बूत बनाने में:
- व्यापार और निवेश: भारत और आसियान के बीच द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 131.58 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
- भारत ने व्यापार और निवेश प्रवाह को सुविधाजनक बनाने हेतु आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौता (AIFTA) लागू किया है।
- व्यापार संतुलन आसियान के पक्ष में बना हुआ है, जो सुधार के संभावित क्षेत्रों का संकेत देता है।
- कनेक्टिविटी पहल: भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भौतिक और आर्थिक संपर्क बढ़ाने के लिये भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग तथा कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना जैसी विभिन्न कनेक्टिविटी परियोजनाएँ शुरू की हैं।
- इन पहलों का उद्देश्य वस्तुओं, सेवाओं और लोगों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाना है, जिससे आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिले।
भारत और आसियान के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्र:
- समुद्री सहयोग: दक्षिण चीन सागर में समुद्री डकैती, अवैध मत्स्याग्रहण और क्षेत्रीय विवाद जैसी चुनौतियों से निपटने के लिये संयुक्त गश्त, सूचना साझाकरण तथा क्षमता निर्माण सहित समुद्री सुरक्षा सहयोग को बढ़ाना है।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था और उभरती प्रौद्योगिकियाँ: एक मज़बूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विकास, ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन एवं इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने पर सहयोग करना।
- नवीकरणीय ऊर्जा और हरित परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने तथा सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये सौर, पवन एवं हाइड्रोजन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास व तैनाती पर सहयोग करना।
- अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह प्रौद्योगिकी: उपग्रह विकास, सुदूर संवेदन, आपदा प्रबंधन, नेविगेशन तथा पर्यावरण निगरानी जैसे क्षेत्रों के लिये अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों सहित अंतरिक्ष अन्वेषण पहलों पर सहयोग करना।
- नीली अर्थव्यवस्था और समुद्री संसाधन प्रबंधन: समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग, समुद्री सुरक्षा तथा मत्स्य पालन, जलीय कृषि एवं तटीय पर्यटन जैसे क्षेत्रों सहित नीली अर्थव्यवस्था के विकास में सहयोग बढ़ाना।
- कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचा: भारत की एक्ट ईस्ट नीति तथा आसियान कनेक्टिविटी 2025 पर आसियान के मास्टर प्लान के तहत बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं में तेज़ी लाने पर सहयोग करना।
निष्कर्ष:
भारत की एक्ट ईस्ट नीति ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ उसके रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को मज़बूत किया है। पूरक शक्तियों का लाभ उठाकर तथा साझा चुनौतियों का समाधान करके, भारत एक मज़बूत, भविष्योन्मुखी साझेदारी बना सकता है जो क्षेत्रीय स्थिरता, सतत् विकास एवं सामूहिक समृद्धि में योगदान दे।