जैसे-जैसे मानव बस्तियों का विस्तार हो रहा है और वन्यजीवों के आवासों पर अतिक्रमण हो रहा है, वैसे-वैसे मनुष्यों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के उपाय सुझाइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मानव-वन्यजीव संघर्ष की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए परिचय लिखिये।
- मानव-पशु संघर्ष में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार कारक बताइये।
- मानव-पशु सह-अस्तित्त्व के लिये उपाय सुझाइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
मानव बस्तियों और वन्यजीवों के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन तनाव में है। भारत में वर्ष 2022-23 के सरकारी आँकड़ों में 8,800 से अधिक जंगली जानवरों के हमले दर्ज किये गए हैं।
- यह बढ़ता तनाव न केवल सार्वजनिक सुरक्षा बल्कि अनगिनत जानवरों की प्रजातियों के अस्तित्त्व को भी खतरे में डालता है।
मुख्य भाग:
बढ़ता मानव-पशु संघर्ष:
- आवास की हानि और विखंडन: जैसे-जैसे मानव बस्तियाँ फैलती जा रही हैं, प्राकृतिक आवास नष्ट या विखंडित होते जा रहे हैं, जिससे वन्यजीवों को भोजन, जल और आश्रय की तलाश में मानव-प्रधान क्षेत्रों में जाने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है। इससे मानव-वन्यजीव मुठभेड़ तथा संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है।
- मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेलवे परियोजना के निर्माण से आवासों के नुकसान और वन्यजीव गलियारों में गड़बड़ी की चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं, जिससे इस क्षेत्र में मानव-पशु संघर्षों में संभावित रूप से वृद्धि हो सकती है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण के कारण वन्यजीवों के प्राकृतिक व्यवहार तथा प्रवासन पैटर्न में व्यवधान आ रहा है, जिसके कारण वे संसाधनों की तलाश में मानव-वास क्षेत्रों में जा रहे हैं।
- हाथी, अफ्रीकी बारहसिंघा (wildebeest) और ज़ेबरा दक्षिणी अफ्रीकी देश में सूखे की स्थिति से बचने के लिये ज़िम्बाब्वे के ह्वांगे नेशनल पार्क को छोड़ रहे हैं।
- कृषि का विस्तार और फसल पर हमला: जैसे-जैसे कृषि गतिविधियाँ वन्यजीवों के आवासों में फैलती हैं, जानवरों द्वारा फसल पर हमला अधिक होता जाता है, जिससे किसानों की ओर से प्रतिशोध और वन्यजीवों के साथ संघर्ष होता है।
- असम जैसे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में चाय बागानों और कृषि गतिविधियों के विस्तार के कारण फसलों पर हाथियों के हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
- मानवीय दृष्टिकोण और जागरुकता की कमी: कुछ मामलों में वन्यजीवों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण, उनके पारिस्थितिक महत्त्व के बारे में जागरुकता की कमी और उनके व्यवहार के बारे में गलत धारणाएँ संघर्ष तथा जानवरों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में योगदान कर सकती हैं।
मानव-पशु सह-अस्तित्त्व के उपाय:
- परिदृश्य-स्तरीय योजना:
- आवास गलियारे: महत्त्वपूर्ण आवास गलियारे स्थापित करना जो खंडित आवासों को जोड़ते हैं, जिससे मानव बस्तियों के साथ संघर्ष के बिना वन्यजीवों की आवाजाही की अनुमति मिलती है।
- शहरी नियोजन: वन्यजीव-अनुकूल शहर बनाने के लिये शहरी नियोजन में हरित स्थानों और वन्यजीव गलियारों को एकीकृत करना।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना:
- गैर-घातक निवारक (Non-lethal Deterrent): बाड़ लगाना, रक्षक जानवरों (पशुधन संरक्षक कुत्ते) को पालना तथा वन्यजीवों को मानव बस्तियों में प्रवेश करने से रोकने के लिये डराने वाली रणनीति (रोशनी, ध्वनि) का उपयोग करना।
- मुआवज़ा संबंधी योजनाएँ: वन्यजीवों द्वारा पशुओं के शिकार या फसल को हुए नुकसान की भरपाई के लिये योजनाएँ विकसित करना, जिससे वन्यजीवों के प्रति आक्रोश कम हो।
- सामुदायिक सहभागिता और शिक्षा:
- जागरुकता कार्यक्रम: वन अधिकारियों के माध्यम से स्थानीय समुदायों को वन्यजीव संरक्षण और सह-अस्तित्त्व रणनीतियों के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना। इससे ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिल सकता है तथा डर कम हो सकता है।
- पारिस्थितिकी पर्यटन और आजीविका के अवसर: पारिस्थितिकी पर्यटन उपक्रमों को बढ़ावा देना, जो स्थानीय समुदायों के लिये राजस्व उत्पन्न करते हैं, वन्यजीव संरक्षण में निहित रुचि उत्पन्न करते हैं।
- तकनीकी प्रगति का लाभ उठाना:
- वन्यजीव निगरानी: वन्यजीवों की गतिविधियों पर नज़र रखने और संभावित संघर्ष क्षेत्रों की भविष्यवाणी करने के लिये कैमरा ट्रैप, ड्रोन तथा अन्य तकनीकों का उपयोग करना।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली: स्थानीय समुदायों को वन्यजीवों के नज़दीक आने के बारे में सचेत करने के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करना, जिससे निवारक उपाय किये जा सकें।
निष्कर्ष:
आवास संरक्षण, सतत् भूमि उपयोग प्रथाओं, जन जागरुकता और प्रभावी संघर्ष प्रबंधन रणनीतियों के संयोजन को लागू करके, हम मनुष्यों तथा वन्यजीवों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्त्व का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।