राजकोषीय घाटे में योगदान देने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये और समावेशी विकास को बढ़ावा देते हुए राजकोषीय समेकन के उपाय सुझाइये। इस संदर्भ में FRBM अधिनियम की भूमिका पर संक्षेप में चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- राजकोषीय घाटे और राजकोषीय समेकन की आवश्यकता को परिभाषित करते हुए परिचय लिखिये।
- राजकोषीय घाटे में योगदान देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
- राजकोषीय समेकन और समावेशी विकास के लिये उपाय सुझाइये।
- FRBM अधिनियम की भूमिका पर गहनता से विचार कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
राजकोषीय घाटा एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है, जो सरकार के कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच के अंतर को मापता है। भारत का वित्त वर्ष 2024 का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.63% है।
- राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्ति (उधारी को छोड़कर)
मुख्य भाग:
राजकोषीय घाटे में योगदान देने वाले कारक:
- कर राजस्व में कमी: बड़े अनौपचारिक क्षेत्र और व्यापक कर चोरी/परिहार्य प्रथाओं (Avoidance Practice) के कारण कर आधार सीमित है।
- वर्ष 2021-22 में 3.5% आबादी ने आयकर का भुगतान किया, जबकि वर्ष 2022-23 में यह संख्या और कम होकर 2.2% हो गई।
- अक्षम कर प्रशासन और प्रवर्तन तंत्र, राजस्व संग्रह में रिसाव (Leakage) को बढ़ावा देते हैं।
- स्थिर राजस्व व्यय: सार्वजनिक ऋण पर ब्याज भुगतान का बढ़ता बोझ (केंद्र का वित्त वर्ष 25 का ब्याज व्यय चालू वित्त वर्ष 24 से 11 से 12% बढ़ सकता है), जो ऋण लेने की बढ़ती लागत से प्रेरित है।
- खाद्य, उर्वरक और ईंधन पर सब्सिडी में वृद्धि (Ballooning Subsidies), बढ़ती वैश्विक कीमतों तथा अकुशल लक्ष्यीकरण से अधिक बढ़ गई है।
- पूंजीगत व्यय में वृद्धि: सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय के रूप में वर्गीकृत बजटीय व्यय वर्ष 2024-25 में वर्ष 2014-15 के स्तर से लगभग 4.5 गुना बढ़ने का अनुमान है।
- राजमार्ग, रेलवे और शहरी बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ जैसे महत्त्वाकांक्षी बुनियादी ढाँचा विकास कार्यक्रम इसके प्रेरक कारक हैं।
- रक्षा आधुनिकीकरण और उन्नत सैन्य हार्डवेयर की खरीद भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
- संरचनात्मक कठोरता: उत्पादक क्षेत्रों में संसाधनों को पुनः आवंटित करने के लिये सीमित लचीलेपन के साथ कठोर व्यय पैटर्न।
- राजकोषीय अनुशासन की कमी (FRBM के अपवाद खंड का शोषण) के कारण व्यय में वृद्धि होती है।
- बाह्य कारक: वैश्विक आर्थिक मंदी, व्यापार तनाव, अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय वस्तु कीमतें, विशेष रूप से कच्चे तेल और अन्य आयात-गहन वस्तुओं की कीमतें भारत के आयात बिल, व्यापार संतुलन तथा राजकोषीय स्थिति को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं।
- उच्च राजकोषीय घाटे के अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं, जिसमें ऋण लेने की लागत में वृद्धि, उच्च ब्याज दरें तथा निजी निवेश पर संभावित अतिरेक प्रभाव शामिल हैं।
- इसलिये राजकोषीय समेकन, जिसमें राजकोषीय घाटे को कम करना और सतत् ऋण स्तर को बनाए रखना शामिल है, जो समावेशी विकास तथा व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने हेतु आवश्यक हैं।
राजकोषीय समेकन और समावेशी विकास के उपाय:
- राजस्व वृद्धि: अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाकर और कर छूट को तर्कसंगत बनाकर कर आधार को व्यापक बनाना।
- प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों के माध्यम से कर प्रशासन और अनुपालन में सुधार करना।
- व्यय युक्तिकरण (Rationalization): लाभार्थियों की बेहतर पहचान और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से सब्सिडी को लक्षित करना।
- गैर-उत्पादक व्यय की तुलना में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे में उत्पादक निवेश को प्राथमिकता देना।
- परिणाम-आधारित बजट: पारंपरिक इनपुट-आधारित बजट से परिणाम-आधारित बजट की ओर बदलाव। यह दृष्टिकोण मापनीय लक्ष्यों और सामाजिक लाभों के आधार पर संसाधनों का आवंटन करता है।
- उर्वरक सब्सिडी व्यवस्था में सुधार: उत्पाद-आधारित सब्सिडी से पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी प्रणाली में बदलाव, साथ ही संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देने के उपायों से राजकोषीय बोझ कम हो सकता है और सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिल सकता है।
राजकोषीय समेकन में FRBM अधिनियम की भूमिका:
वर्ष 2003 में पेश किया गया FRBM अधिनियम, सरकार को नियम-आधारित राजकोषीय नीति ढाँचे का पालन करने के लिये बाध्य करके राजकोषीय समेकन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। FRBM अधिनियम के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं:
- राजस्व घाटे को समाप्त करने तथा राजकोषीय घाटे को स्थायी स्तर तक कम करने के लिये लक्ष्य निर्धारित करना।
- विशिष्ट राजकोषीय संकेतकों के लिये तीन-वर्षीय रोलिंग लक्ष्यों के साथ एक मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति वक्तव्य की स्थापना करना।
- नियमित रिपोर्टिंग और प्रकटीकरण के माध्यम से राजकोषीय संचालन में पारदर्शिता को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष:
सीमित बचाव प्रावधानों, बाध्यकारी लक्ष्यों और एक स्वतंत्र निगरानी तंत्र के माध्यम से राजकोषीय उत्तरदायित्व तथा बजट प्रबंधन अधिनियम की विश्वसनीयता एवं प्रवर्तनीयता को बढ़ाने की आवश्यकता है, जिससे राजकोषीय अनुशासन व समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सके।