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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    लोक सेवा में हितों के टकराव की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। व्यक्तिगत हित एवं व्यावसायिक कर्त्तव्यों के बीच टकराव की स्थिति का सिविल सेवक द्वारा किस प्रकार समाधान किया जाना चाहिये? (150 शब्द)

    30 May, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • हितों के टकराव को परिभाषित करते हुए परिचय लिखिये।
    • हितों के टकराव के प्रकारों का उल्लेख कीजिये।
    • हितों के टकराव को प्रबंधित करने के लिये लोक सेवकों के लिये रणनीति सुझाइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    • लोक सेवा में हितों के टकराव की अवधारणा एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है जो सिविल सेवा में ईमानदारी, निष्पक्षता और लोगों के विश्वास से संबंधित है। हितों का टकराव तब होता है जब किसी सिविल सेवक के व्यक्तिगत हित उसके पेशेवर कर्त्तव्यों एवं ज़िम्मेदारियों से टकराते हैं।
    • ऐसी स्थितियों से निपटने के लिये नैतिक सिद्धांतों की स्पष्ट समझ तथा स्थापित मानदंडों एवं विनियमों का पालन करना आवश्यक है।

    मुख्य भाग:

    हितों का टकराव:

    • वास्तविक संघर्ष: वास्तविक संघर्ष तब होता है जब किसी लोक सेवक के व्यक्तिगत हित से उसके आधिकारिक निर्णय स्पष्ट रूप से प्रभावित होते हैं।
      • उदाहरण: किसी निविदा प्रक्रिया की देख-रेख करने वाले किसी लोक सेवक का एक नज़दीकी रिश्तेदार उस परियोजना के लिये बोली लगाने वाली कंपनी का मालिक हो।
    • स्पष्ट संघर्ष: हितों का स्पष्ट संघर्ष तब होता है जब किसी लोक सेवक के कार्य व्यक्तिगत हितों के कारण पक्षपातपूर्ण होते हों।
      • उदाहरण: शिक्षा मंत्री दोस्ती का खुलासा किये बिना अपने जीवनसाथी के करीबी दोस्त के नेतृत्व में संचालित किसी निजी विश्वविद्यालय में बोलने का निमंत्रण स्वीकार करते हैं। जिससे भविष्य के नीतिगत निर्णयों में संभावित पक्षपात के बारे में चिंता उत्पन्न होती है।

    लोक सेवकों के लिये हितों के टकराव को प्रबंधित करने की रणनीतियाँ:

    • संभावित हितों के टकराव की पहचान तथा उन्हें प्रदर्शित करना: सरकारी कर्मचारियों को अपने वरिष्ठों या आचार समिति के समक्ष किसी भी संभावित हितों के टकराव को प्रदर्शित करना चाहिये। पारदर्शिता से लोक विश्वास को बनाए रखने में मदद मिलने के साथ उचित कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त होता है।
    • निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से अलग होना: ऐसी स्थितियों में जहाँ हितों का स्पष्ट टकराव हो, सिविल सेवकों को यदि संभव हो तो विवादित मामले से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने से खुद को अलग कर लेना चाहिये।
      • यह कदम निष्पक्षता बनाए रखने में मदद करने के साथ किसी भी अनुचित प्रभाव या पक्षपात की धारणा को रोकने में सहायक है।
    • स्वतंत्र निरीक्षण और जवाबदेही तंत्र: संभावित हितों के टकराव की निगरानी और जाँच करने के लिये स्वतंत्र निरीक्षण निकायों या समितियों की स्थापना से लोक विश्वास एवं जवाबदेहिता को बढ़ावा मिल सकता है।
      • इन तंत्रों के पास गैर-अनुपालन या अनैतिक आचरण के मामलों में उचित प्रतिबंध या अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार होना चाहिये।
    • कार्यों का यादृच्छिक आवंटन: सिविल सेवकों को विशिष्ट कार्यों, परियोजनाओं या निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का यादृच्छिक रूप से आवंटन करने से हितों के टकराव या पक्षपात की संभावना को कम किया जा सकता है।
      • यह दृष्टिकोण विशेष रूप से अनुबंध प्रदान करने, लाइसेंस देने या विनियामक निरीक्षण जैसे क्षेत्रों में उपयोगी हो सकता है।
    • संघर्ष संवेदनशीलता प्रशिक्षण: लोक सेवा विकास कार्यक्रमों में नियमित रूप से संघर्ष संवेदनशीलता प्रशिक्षण को शामिल किया जाना चाहिये। यह प्रशिक्षण अधिकारियों को संभावित संघर्षों की पहचान करने, जोखिमों को समझने तथा शमन के लिये रणनीति विकसित करने में मदद कर सकता है।

    निष्कर्ष:

    नैतिक सिद्धांतों का पालन करने तथा हितों के टकरावों की पहचान, प्रदर्शन एवं प्रबंधन के लिये सक्रिय कदम उठाने से सिविल सेवक लोगों का विश्वास बनाए रखने एवं सुशासन मानकों को कायम रखने के साथ यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके पेशेवर कर्त्तव्यों का निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ तरीके से पालन हो तथा जिन नागरिकों की वे सेवा करते हैं उनके व्यापक हित को प्राथमिकता दी जाए।

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