स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भाषायी राज्यों के गठन ने राष्ट्रीय एकता की स्थापना में किस प्रकार भूमिका निभाई? मूल्यांकन कीजिये।
29 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थायद्यपि भारत में स्वतंत्रता पूर्व भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की बात गांधीजी और भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने कई अवसरों पर की थी, लेकिन आज़ादी के बाद संविधान सभा द्वारा गठित धर आयोग, जे. वी. पी. समिति और राज्य पुनर्गठन आयोग ने केवल भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को अस्वीकार कर दिया।
वस्तुतः भारत को आज़ादी के बाद विभाजन का सामना करना पड़ा, जिसमें एक साथ कई समस्याएँ जुड़ी हुई थीं। देश के लगभग सभी हिस्सों में सांप्रदायिक वैमनस्य चरम स्तर पर व्याप्त था। इसी समस्या को देखकर शीर्ष नेतृत्व ने कुछ समय के लिये प्रशासनिक इकाइयों के पुनर्गठन के विचार को त्याग दिया। किंतु आम लोगों में पूर्व की आकांक्षाओं को वास्तविक रूप देने की इच्छा प्रबल हो रही थी, जिसके परिणामस्वरूप जन-आंदोलन और विरोध प्रदर्शन का दौर प्रारंभ हो गया। इससे राज्यों के पुनर्गठन को एक विघटनकारी स्वरूप प्राप्त हो गया।
जोरदार प्रदर्शन और विरोध के कारण सरकार को झुकना पड़ा और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र का गठन क्रमशः 1953 और 1960 में किया गया। इसके बाद इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पंजाब और हरियाणा (1966) का गठन किया गया।
दरअसल राज्यों के पुनर्गठन ने विभाजनकारी अवधारणा को गलत साबित कर दिया और देश की अखंडता को सुदृढ़ करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई, जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से देखा जा सकता है-
यद्यपि पुनर्गठन के आरंभिक दौर में कुछ ऐसी घटनाएँ हुई थीं जिन्होंने आंतरिक ढाँचे को कमज़ोर करने की कोशिश की। ये घटनाएँ उन क्षेत्रों में ही देखने को मिली थीं, जहाँ भाषा के साथ धर्म या संप्रदाय भी जुड़ गए थे। इन शक्तियों को जल्द ही नियंत्रण में ले लिया गया था।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भाषायी आधार पर राज्यों के गठन ने अंग्रेज़ों के अतार्किक विभाजन की समस्या को दूर करने के साथ प्रशासन को सुविधाजनक बनाते हुए राष्ट्रीय एकीकरण को भी सुदृढ़ किया।