- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
क्षेत्रीय शक्तियों एवं गुटों का उदय वैश्विक व्यवस्था को नया आकार दे रहा है। संयुक्त राष्ट्र जैसी स्थापित बहुपक्षीय संस्थाओं के संदर्भ में इसके संभावित निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
28 May, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- बदलती वैश्विक व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए परिचय लिखिये।
- वैश्विक व्यवस्था को नया आकार देने वाली क्षेत्रीय शक्तियों और ब्लॉकों पर गहनता से चर्चा कीजिये।
- संयुक्त राष्ट्र जैसी स्थापित बहुपक्षीय संस्थाओं के लिये इसके निहितार्थों पर प्रकाश डालिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
वर्तमान वैश्विक व्यवस्था परिवर्तन के दौर से गुज़र रही है। क्षेत्रीय शक्तियों और गुटों का उदय संयुक्त राष्ट्र (UN) की स्थापित श्रेष्ठता को चुनौती दे रहा है। यह गतिशीलता संयुक्त राष्ट्र के लिये दोधारी तलवार प्रस्तुत करती है, जिसमें नवीन उद्देश्य के अवसरों के साथ-साथ प्रासंगिकता में संभावित गिरावट भी शामिल है।
मुख्य भाग:
वैश्विक व्यवस्था को नवीन आकार प्रदान करने वाली क्षेत्रीय शक्तियाँ और ब्लॉक:
- नवीन आर्थिक शक्तियों का उदय: क्षेत्रीय ब्लॉकों का उदय वैश्विक आर्थिक गतिशीलता को परिवर्तित कर रहा है।
- उदाहरण के लिये ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) का बढ़ता आर्थिक प्रभाव G7 जैसी पारंपरिक पश्चिमी शक्तियों के प्रभुत्व को चुनौती देता है।
- विकसित होते सुरक्षा परिदृश्य: क्षेत्रीय ब्लॉक क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों को आकार दे रहे हैं। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) इसका एक प्रमुख उदाहरण है और रूस-यूक्रेन संघर्ष में इसका प्रभाव इसकी विकसित होती भूमिका को दर्शाता है।
- वैकल्पिक विकास मॉडल: एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) जैसे- क्षेत्रीय विकास बैंक, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के लिये वैकल्पिक वित्तपोषण मॉडल पेश करते हैं, जिन पर पारंपरिक रूप से पश्चिमी शक्तियों का प्रभुत्व है।
- यह विकास वित्त और अवसंरचना परियोजनाओं पर प्रभाव में बदलाव को दर्शाता है, जो संभावित रूप से अधिक बहुध्रुवीय दृष्टिकोण की ओर ले जाता है।
- उभरते मानक ढाँचे: क्षेत्रीय ब्लॉक वैकल्पिक मानदंडों और मूल्यों को बढ़ावा दे रहे हैं।
- सदस्य देशों के मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आसियान का ज़ोर पश्चिमी शक्तियों द्वारा कभी-कभी पसंद किये जाने वाले हस्तक्षेपवादी दृष्टिकोण के विपरीत है।
संयुक्त राष्ट्र जैसे स्थापित बहुपक्षीय संस्थानों के निहितार्थ:
- चुनौतियाँ:
- बहुपक्षवाद का क्षरण: क्षेत्रीय शक्तियाँ बहुपक्षीय सहयोग पर अपने हितों और क्षेत्रीय गठबंधनों को प्राथमिकता दे सकती हैं, जो संभावित रूप से संवाद एवं सहयोग के लिये वैश्विक मंच के रूप में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को कमज़ोर कर सकता है।
- उदाहरण: चीन के नेतृत्व वाली बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) एक क्षेत्रीय ढाँचे के भीतर बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करती है, जो संभावित रूप से वैश्विक बुनियादी ढाँचे की योजना बनाने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को दरकिनार कर देती है।
- प्रतिस्पर्द्धी हित और गतिरोध: क्षेत्रीय शक्तियों और ब्लॉकों के बीच अलग-अलग हित तथा प्राथमिकताएँ संयुक्त राष्ट्र के भीतर विखंडन एवं गतिरोध को जन्म दे सकती हैं, जिससे वैश्विक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने की इसकी क्षमता में बाधा आ सकती है।
- उदाहरण: मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर अमेरिका और चीन के बीच असहमति ने ज़मीन खोजने के संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों को पंगु बना दिया है।
- संयुक्त राष्ट्र के अधिकार के लिये चुनौतियाँ: क्षेत्रीय शक्तियाँ और ब्लॉक संयुक्त राष्ट्र के अधिकार तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं पर तेज़ी से सवाल उठा सकते हैं, उन्हें पुराना एवं वर्तमान वैश्विक व्यवस्था का प्रतिनिधित्व न करने वाला मान सकते हैं।
- उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की चल रही रूसी-यूक्रेन युद्ध जैसे संघर्षों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में असमर्थता ने उभरती शक्तियों के सुधार और प्रतिनिधित्व की आवश्यकता को उजागर किया है।
- बहुपक्षवाद का क्षरण: क्षेत्रीय शक्तियाँ बहुपक्षीय सहयोग पर अपने हितों और क्षेत्रीय गठबंधनों को प्राथमिकता दे सकती हैं, जो संभावित रूप से संवाद एवं सहयोग के लिये वैश्विक मंच के रूप में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को कमज़ोर कर सकता है।
- अवसर:
- सुधार और अनुकूलन के उत्प्रेरक: क्षेत्रीय शक्तियों का उदय संयुक्त राष्ट्र के भीतर अति आवश्यक सुधारों के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकता है, जो अधिक समावेशी और प्रतिनिधि निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाएगा।
- उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिये भारत की आवाज, जिसे कई क्षेत्रीय शक्तियों का समर्थन प्राप्त है, संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग को दर्शाता है ताकि वर्तमान वैश्विक व्यवस्था को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित किया जा सके।
- अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान: संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय शक्तियों और ब्लॉकों के साथ सहयोग कर सकता है क्योंकि वह बहुमूल्य संसाधनों एवं विशेषज्ञता में योगदान दे सकता है ताकि महामारी तथा आतंकवाद जैसी सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता वाली अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
- बहुपक्षीय कूटनीति को सुविधाजनक बनाना: क्षेत्रीय शक्तियाँ संयुक्त राष्ट्र के भीतर सेतु-निर्माता के रूप में कार्य कर सकती हैं, आम सहमति बना सकती हैं और विभाजन को पाट सकती हैं।
- विकसित और विकासशील देशों के बीच एक सेतु के रूप में भारत की भूमिका इसका प्रमुख उदाहरण है।
- सुधार और अनुकूलन के उत्प्रेरक: क्षेत्रीय शक्तियों का उदय संयुक्त राष्ट्र के भीतर अति आवश्यक सुधारों के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकता है, जो अधिक समावेशी और प्रतिनिधि निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाएगा।
निष्कर्ष:
क्षेत्रीय शक्तियों का उदय संयुक्त राष्ट्र के लिये एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करता है। संस्था को क्षेत्रीय शक्तियों का लाभ उठाकर, अपनी सीमाओं को संबोधित करके, अधिक समावेशी, प्रतिनिधि वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देकर अनुकूलन करने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र का भविष्य सामूहिक हित के लिये क्षेत्रवाद की शक्ति का दोहन करने की इसकी क्षमता पर निर्भर करता है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print