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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में महिला उद्यमियों के समक्ष आने वाली सामाजिक एवं आर्थिक बाधाओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। महिलाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने तथा उसे उन्नत बनाने के क्रम में सशक्त बनाने की रणनीतियाँ बताइये। (250 शब्द)

    27 May, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में महिला उद्यमियों के आँकड़े देते हुए परिचय लिखिये।
    • उनके समक्ष आने वाली सामाजिक और आर्थिक बाधाओं का वर्णन कीजिये।
    • महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने के लिये रणनीति सुझाइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    महिला उद्यमी महिलाओं के नेतृत्व वाली आर्थिक वृद्धि और सामाजिक प्रगति को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालाँकि भारत में केवल 14% उद्यमी महिलाएँ हैं। उन्हें अभी भी महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है जो सफल व्यवसाय शुरू करने तथा विकसित करने की उनकी क्षमता में बाधा डालती हैं।

    मुख्य भाग:

    महिला उद्यमियों के समक्ष आने वाली सामाजिक और आर्थिक बाधाएँ:

    • सामाजिक बाधाएँ
      • लैंगिक भेदभाव और पितृसत्तात्मक मानसिकता: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 14% भारतीय व्यवसायों का स्वामित्व महिलाओं के पास है।
        • हालिया रिपोर्टों में यह बताया गया है कि 63% महिलाएँ उद्यमी बनने का सपना देखती हैं, लेकिन फिर भी 74% निवेश के लिये वह परिवार पर निर्भर हैं।
          • काँच के वितान (Glass Ceiling) भी उनकी आकांक्षाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा प्रस्तुत करते हैं।
        • ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ पितृसत्तात्मक मानदंड अधिक गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं, वहाँ महिला उद्यमियों का प्रतिशत और भी कम है।
      • परिवार के समर्थन की कमी और गतिशीलता प्रतिबंध: महिलाएँ व्यवसाय और पारिवारिक दायित्वों के बीच संतुलन बनाने के लिये संघर्ष करती हैं। सीमित गतिशीलता नेटवर्किंग एवं अवसरों की खोज को प्रतिबंधित करती है।
      • शिक्षा और कौशल विकास तक सीमित पहुँच: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार भारत में महिलाओं की साक्षरता दर 71.5% है, जबकि पुरुषों के लिये यह 84.7% है, जो शैक्षिक अंतर को उजागर करता है।
        • बिहार एवं झारखंड जैसे राज्यों में जहाँ शिक्षा में लैंगिक अंतर अधिक महत्त्वपूर्ण है, महिला उद्यमियों का प्रतिशत और भी कम है।
      • सुरक्षा एवं संरक्षा संबंधी चिंताएँ: सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न या हिंसा का खतरा महिलाओं को उद्यमशील गतिविधियों को आगे बढ़ाने से हतोत्साहित करता है।
    • आर्थिक बाधाएँ:
      • वित्त और ऋण तक सीमित पहुँच: एक हालिया सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत के टियर-2 और 3 शहरों में केवल 3% महिला उद्यमियों के पास बाहरी फंडिंग तक पहुँच थी।
        • उनमें बैंकिंग साक्षरता का अभाव है। भारत में प्रत्येक पाँच में से 1 महिला के पास बैंक खाते तक पहुँच नहीं है। (ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन)।
      • बाज़ारों और नेटवर्क तक अपर्याप्त पहुँच: पुरुष-प्रधान व्यावसायिक नेटवर्क और बाज़ार की जानकारी से वंचित रहना महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों की पहुँच एवं विकास क्षमता को सीमित करता है।
        • विनिर्माण और निर्माण जैसे कुछ उद्योगों में उद्योग संघों एवं व्यापार नेटवर्क में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5-10% जितना कम है।
      • संपत्ति के अधिकार और स्वामित्व का अभाव: महिलाओं के पास प्रायः संपत्ति या परिसंपत्तियों पर स्वामित्व अधिकार नहीं होते हैं। यह वित्तपोषण के लिये संपार्श्विक के रूप में परिसंपत्तियों का उपयोग करने की उनकी क्षमता में बाधा डालता है।
        • भारत में 62.5% पुरुषों की तुलना में 42.3% महिलाओं के पास घर है। (NFHS-5)
      • घरेलू एवं देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों का असमान वितरण: एक औसत भारतीय महिला औसत पुरुष की तुलना में अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम पर लगभग 10 गुना अधिक समय व्यतीत करती है (NSO द्वारा किया गया समय उपयोग सर्वेक्षण)।

    महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने की रणनीतियाँ:

    • जेंडर-लेंस निवेश को लागू करना: वेंचर कैपिटलिस्ट और एंजेल निवेशकों को जेंडर-लेंस निवेश दृष्टिकोण अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना तथा प्रोत्साहित करना, जो महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों या महिलाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले व्यवसायों में निवेश को प्राथमिकता देता है।
    • महिला उद्यमिता क्षेत्र (WEZ) विकसित करना: ये क्षेत्र रियायती किराये की दरें, साझा सुविधाओं (जैसे- सह-कार्य स्थान, विनिर्माण इकाइयाँ) तक पहुँच और विशेष सहायता सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं।
      • तेलंगाना राज्य ने भारत के पहले महिला उद्यमिता केंद्र की स्थापना का प्रस्ताव दिया है।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स का लाभ उठाना: महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों से उत्पादों और सेवाओं को बढ़ावा देने तथा बेचने के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म एवं मार्केटप्लेस विकसित करना।
      • ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म "शी प्रेन्योर्स" विशेष रूप से महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों के उत्पादों और सेवाओं को प्रदर्शित करता है।
    • महिला उद्यमी राजदूतों (Ambassador) की स्थापना करना: फाल्गुनी नायर और किरण मजूमदार-शॉ जैसी सफल महिला उद्यमियों को उनके संबंधित उद्योगों या क्षेत्रों में राजदूत या रोल मॉडल के रूप से परिचित कराना।
      • ये राजदूत मार्गदर्शक के रूप में कार्य कर सकते हैं, महत्त्वाकांक्षी उद्यमियों को प्रेरित कर सकते हैं तथा व्यवसाय में महिलाओं को समर्थन देने वाली नीतियों और पहलों का समर्थन कर सकते हैं।

    निष्कर्ष:

    इन सामाजिक एवं आर्थिक बाधाओं को दूर करके और लक्षित सहायता प्रदान करके, भारत महिला-नेतृत्व विकास के माध्यम से महिला उद्यमियों की विशाल क्षमता को खोल सकता है। इससे न केवल लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि देश की आर्थिक वृद्धि में भी महत्त्वपूर्ण योगदान मिलेगा।

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