सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) की अवधारणा गरीबी उन्मूलन के संदर्भ में एक संभावित उपकरण के रूप में लोकप्रिय हो रही है। भारत में UBI को लागू करने से संबंधित संभावित आर्थिक प्रभावों एवं चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- UBI की अवधारणा का परिचय लिखिये।
- इसके संभावित आर्थिक लाभों पर प्रकाश डालिये।
- इसके कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियों पर गहराई से विचार कीजिये।
- UBI को लागू करने से पहले सावधानीपूर्वक विचार कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
यूनिवर्सल बेसिक इनकम/सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) एक सामाजिक कल्याण अवधारणा है, जिसके तहत देश के सभी नागरिकों को सरकार से नियमित, बिना शर्त नकद भुगतान मिलता है, चाहे उनकी रोज़गार स्थिति या आय कुछ भी हो।
- भारत, अपनी बड़ी आबादी और महत्त्वपूर्ण गरीबी के साथ, UBI की खोज के लिये एक आकर्षक मामला (Compelling Case) प्रस्तुत करता है।
मुख्य भाग:
संभावित आर्थिक प्रभाव:
- गरीबी उन्मूलन: UBI लाखों लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकालकर बुनियादी आय का आधार प्रदान कर सकता है। (वर्ष 2024 में लगभग 3.44 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं।)
- यह आय असमानता को दूर करने में मदद कर सकती है, जो अभी भी भारत में उच्च बनी हुई है। (हालाँकि कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा कुल आबादी के शीर्ष 10% के पास है।)
- आर्थिक प्रोत्साहन और खपत: UBI प्रयोज्य आय (Disposable Income) को बढ़ा सकता है और घरेलू खपत को बढ़ावा दे सकता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा (निजी अंतिम उपभोग व्यय भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 60% है।)
- यह ग्रामीण क्षेत्रों में मांग को बढ़ावा दे सकता है, जिससे कृषि और फास्ट-मूविंग उपभोक्ता वस्तुओं जैसे क्षेत्रों को लाभ होगा।
- मानव पूंजी विकास: UBI शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और पोषण तक पहुँच में सुधार कर सकता है, जिससे लंबे समय में मानव पूंजी तथा उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसे सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रमों ने शिक्षा और स्वास्थ्य परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव दिखाया है।
- उद्यमिता को बढ़ावा: UBI वित्तीय सहायता प्रदान कर सकता है, जिससे व्यक्ति उद्यमशीलता के जोखिम उठा सकते हैं और नवीन व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
- इससे नवाचार, रोज़गार सृजन और आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा मिल सकता है।
- महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण: UBI महिलाओं को घर के भीतर वित्तीय स्वतंत्रता और निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करके उन्हें सशक्त बना सकता है।
- इससे महिलाओं और बच्चों के लिये बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं, जिससे समावेशी विकास को बढ़ावा मिलेगा।
UBI के कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ:
- राजकोषीय बोझ: एक व्यापक UBI कार्यक्रम को लागू करने के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी, जिससे सरकारी वित्त पर दबाव पड़ेगा।
- वर्ष 2023-24 के लिये सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.8% होने का अनुमान है, जो बड़े पैमाने पर UBI कार्यक्रम हेतु राजकोषीय स्थान को सीमित करता है।
- कार्यान्वयन और वितरण संबंधी चुनौतियाँ: लक्षित लाभार्थियों की पहचान करना और उन तक पहुँचना, विशेष रूप से दूरदराज़ तथा ग्रामीण क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण तार्किक चुनौती हो सकती है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसी मौजूदा योजनाओं को कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा है, जिसे UBI कार्यक्रम के साथ बढ़ाया जा सकता है।
- मुद्रास्फीति का दबाव: UBI के माध्यम से अर्थव्यवस्था में बड़ी मात्रा में नकदी के आवागमन से संभावित रूप से अति-मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है, जिससे आय हस्तांतरण की क्रय शक्ति कम हो सकती है।
- काम करने के लिये हतोत्साहित करना: एक चिंता यह है कि UBI लोगों को काम करने से हतोत्साहित कर सकता है, मूलतः कम वेतन वाली नौकरियों के संबंध में। यह संभावित रूप से श्रम बल की भागीदारी को हतोत्साहित कर सकता है, जिससे श्रम बाज़ार में विकृतियाँ और आर्थिक उत्पादन में गिरावट आ सकती है।
- पहले ही भारत की 20% से भी कम महिलाएँ वेतन वाली नौकरियों में संलग्न हैं।
- राजनीतिक और सामाजिक विचार: UBI को लागू करने के लिये महत्त्वपूर्ण राजनीतिक इच्छाशक्ति और सार्वजनिक समर्थन की आवश्यकता होगी क्योंकि इसे विभिन्न हितधारकों एवं वैचारिक दृष्टिकोणों से विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
- कार्यक्रम की स्थिरता और निष्पक्षता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, मूलतः भारत जैसे विविधतापूर्ण एवं आबादी वाले देश में।
इसलिये भारत में UBI को लागू करने के लिये निम्नलिखित बातों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है:
- दिल्ली और मध्यप्रदेश की तरह पायलट अध्ययन करना तथा व्यवहार्यता, चुनौतियों एवं सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का आकलन करने के लिये कठोर प्रभावों का मूल्यांकन करना।
- राजकोषीय समेकन उपाय करना और UBI के लिये राजकोषीय स्थान के निर्माण हेतु वैकल्पिक राजस्व स्रोतों की खोज करना।
- UBI की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कौशल विकास और बुनियादी ढाँचे में पूरक नीतियों एवं सुधारों को लागू करना।
- गरीबी और असमानता को दूर करने के लिये सार्वभौमिक बुनियादी सेवाओं, नकारात्मक आयकर या सशर्त नकद हस्तांतरण जैसे वैकल्पिक विधियों की खोज करना।
निष्कर्ष:
UBI एक नीतिगत पहल के रूप में काफी आशाजनक है, फिर भी इसका सफल कार्यान्वयन सावधानीपूर्वक नियोजन और भारत के विशिष्ट आर्थिक परिदृश्य की गहन समझ पर निर्भर करता है, ताकि इसमें शामिल सभी हितधारकों के लिये सतत् एवं न्यायसंगत परिणाम सुनिश्चित हो सकें।