पारिस्थितिकी और आर्थिक पहलुओं पर विचार करते हुए, भारत में सतत् कृषि अपनाने के क्रम में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के सिद्धांतों एवं संभावित लाभों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- शून्य बजट प्राकृतिक कृषि का परिचय लिखिये।
- ZBNF के प्रमुख सिद्धांतों का उल्लेख कीजिये।
- पारिस्थितिक और आर्थिक संदर्भ में इसके संभावित लाभों पर गहराई से विचार कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि एक कृषि पद्धति है, जो न्यूनतम बाहरी इनपुट और लागत के साथ सतत् कृषि की विधियों को बढ़ावा देती है।
- ZBNF विधि को वर्ष 1990 के दशक में सुभाष पालेकर द्वारा विकसित किया गया था।
- पारिस्थितिकी और आर्थिक स्थिरता दोनों के लिये इसके संभावित लाभों के कारण हालिया वर्षों में इसने महत्त्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है।
मुख्य भाग:
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के सिद्धांत:
- गैर-रसायन: मृदा और पर्यावरण के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं शाकनाशियों से संरक्षित करना।
- प्राकृतिक इनपुट:
- जीवामृत: लाभकारी सूक्ष्मजीवों के साथ मृदा को समृद्ध करने के लिये माइक्रोबियल कल्चर का उपयोग।
- बीजामृत: बीज के अंकुरण और कीटों के प्रतिरोध को बढ़ाने के लिये प्राकृतिक समाधानों के साथ बीज उपचार।
- अच्छाना (Acchadana) (मल्चिंग): मृदावरण, आर्द्र्युक्त, खरपतवारों को दबाने और उर्वरता बढ़ाने के लिये कार्बनिक पदार्थों का उपयोग।
- वापसा (Whapasa): यह स्थिति मृदा में पवन और जल के अणुओं की उपस्थिति को संदर्भित करती है, जो बदले में सिंचाई की आवश्यकता को कम करने में मदद करती है।
- जैवविविधता को बढ़ावा देना:
- अंतर-फसल: एक विविध पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण, प्राकृतिक कीट नियंत्रण को बढ़ावा देने और मृदा स्वास्थ्य में सुधार करने हेतु एक साथ कई फसलों को उगाना।
- मृदा के स्वास्थ्य पर ध्यान देना:
- खाद्य निर्माण करना: मृदा संरचना और उर्वरता को बेहतर बनाने के लिये पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद में जैविक अपशिष्ट को पुनर्चक्रित करना।
- फसल अवशेष प्रबंधन: जैविक पदार्थ सामग्री और मृदा के स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिये फसल अवशेषों को मृदा में शामिल करना।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के संभावित लाभ:
- पारिस्थितिकी लाभ:
- मृदा स्वास्थ्य में सुधार: जैविक इनपुट और माइक्रोबियल गतिविधि पर ZBNF का ध्यान मृदा संरचना, जल धारण क्षमता एवं पोषक तत्त्वों की उपलब्धता में सुधार कर सकता है, जिससे स्वस्थ तथा अधिक उत्पादक मृदा प्राप्त हो सकती है।
- पर्यावरण प्रदूषण में कमी: सिंथेटिक रसायनों के उपयोग को समाप्त करके ZBNF जल, वायु और मृदा प्रदूषण को कम कर सकता है, जिससे स्वच्छ एवं अधिक सतत् पर्यावरण में योगदान मिलता है।
- जैवविविधता संरक्षण: विविध फसल किस्मों को बढ़ावा देना और ZBNF प्रणालियों में पशुधन को एकीकृत करना जैवविविधता को संरक्षित करने तथा परागण एवं कीट नियंत्रण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का समर्थन करने में मदद कर सकता है।
- जलवायु लचीलापन: मल्चिंग और जल संरक्षण जैसी ZBNF प्रथाएँ, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, जैसे कि शुष्कता एवं चरम मौसमी घटनाओं के प्रति कृषि प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ा सकती हैं।
- आर्थिक लाभ:
- इनपुट लागत में कमी: स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों पर निर्भर रहने और महँगे रासायनिक इनपुट की आवश्यकता को समाप्त करके, ZBNF किसानों के लिये उत्पादन लागत को काफी कम कर सकता है, जिससे उसकी शुद्ध आय में वृद्धि हो सकती है।
- बाहरी इनपुट पर निर्भरता में कमी: ZBNF की स्व-निर्भरता और कृषि संसाधनों के उपयोग पर ज़ोर बाहरी इनपुट पर निर्भरता को कम करता है, जो मूल्य में उतार-चढ़ाव एवं आपूर्ति व्यवधानों के अधीन हो सकता है।
- बाज़ार के अवसर: जैविक और सतत् कृषि उत्पादों की बढ़ती मांग ZBNF किसानों को प्रीमियम बाज़ारों तक पहुँच तथा उनके उत्पादों के लिये उच्च मूल्य प्रदान कर सकती है।
- दीर्घकालिक स्थिरता: मृदा उर्वरता बनाए रखने और जैवविविधता को बढ़ावा देने पर ZBNF का ध्यान कृषि प्रणालियों की दीर्घकालिक स्थिरता में योगदान दे सकता है, जिससे किसानों के लिये खाद्य सुरक्षा तथा आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो सकती है।
निष्कर्ष:
हिमाचल प्रदेश (प्राकृतिक कृषि खुशहाल किसान योजना) जैसे कुछ क्षेत्रों में ZBNF ने आशाजनक परिणाम प्रदर्शित किये हैं। ZBNF को एक स्थायी कृषि दृष्टिकोण के रूप में अपनाकर, भारत अधिक पर्यावरण के अनुकूल, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और सामाजिक रूप से न्यायसंगत खाद्य उत्पादन प्रणाली का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जिससे लोगों तथा पृथ्वी ग्रह दोनों की भलाई सुनिश्चित होगी।