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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन तथा वर्ष 1967 के इसके प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर न करने के भारत के निर्णय हेतु उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिये। इसके साथ ही भारत के समक्ष विद्यमान शरणार्थी चुनौतियों पर भी चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    21 May, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वर्ष 1951 का शरणार्थी कन्वेंशन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का परिचय लिखिये।
    • कन्वेंशन और इसके प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर न करने के भारत के निर्णय के कारणों का उल्लेख कीजिये।
    • भारत के समक्ष आने वाली वर्तमान शरणार्थी चुनौतियों पर गहराई से चर्चा कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन, संयुक्त राष्ट्र संधि, शरणार्थियों, उनके अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिये राज्य के दायित्वों को परिभाषित करती है। वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल ने वैश्विक स्तर पर अपना दायरा बढ़ाया।

    • ये शरणार्थी संरक्षण के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कानूनी ढाँचा का निर्माण करते हैं, जिसमें न्यायालयों, रोज़गार और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में उपचार के लिये गैर-वापसी तथा न्यूनतम मानक शामिल हैं।
    • इसे जुलाई,1951 में जिनेवा में हस्ताक्षर के लिये आमंत्रित किया गया था, हालाँकि भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये।

    मुख्य भाग:

    वर्ष 1951 का शरणार्थी कन्वेंशन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर न करने के भारत के निर्णय के निम्न कारण हैं:

    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भारत की अपने पड़ोसियों के साथ सीमाएँ खुली हुई हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में किसी भी संघर्ष या संकट के कारण बड़े पैमाने पर शरणार्थी आ सकते हैं।
      • इससे स्थानीय बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव पड़ सकता है और सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसाँख्यिकीय संतुलन बिगड़ सकता है, जो पहले से ही संवेदनशील हैं।
      • शरणार्थियों के रूप में घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों, उग्रवादियों या अन्य राष्ट्र-विरोधी तत्त्वों से संभावित खतरों के बारे में चिंता हैं।
    • संसाधन की कमी: एक विकासशील देश के रूप में भारत पहले से ही अपनी आबादी को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने के लिये संघर्ष कर रहा है।
      • बड़ी सँख्या में शरणार्थियों को प्रदान करने के लिये कानूनी दायित्व लेने से सीमित संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है और विकास के प्रयासों में बाधा आ सकती है।
      • उदाहरण: वर्ष 1971 में बाँग्लादेश से 10 मिलियन से अधिक शरणार्थियों के आने से संसाधनों की बर्बादी हुई, जिसके कारण हैज़ा फैल गया।
    • नीतियों के लचीलेपन को बनाए रखना: कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने से भारत कानूनी रूप से गैर-वापसी (कोई जबरन प्रत्यावर्तन नहीं) जैसे सिद्धांतों से बँध जाएगा, जो ज़मीनी हकीकत के आधार पर शरणार्थी प्रवाह को प्रबंधित करने की इसकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
      • भारत अद्वितीय क्षेत्रीय चुनौतियों और घरेलू समस्याओं से निपटने के लिये अपनी शरणार्थी नीतियों में लचीलापन बनाए रखना पसंद करता है।
    • शरणार्थी संरक्षण की मानवीय परंपरा: हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद, भारत के पास मानवीय आधार पर विस्थापित लोगों को शरण प्रदान करने का एक लंबा इतिहास है।
      • उदाहरण के लिये तिब्बती शरणार्थियों को दशकों से भारत में आश्रय मिला है। भारत का तर्क है कि उसकी मौजूदा प्रथाएँ शरणार्थी सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती हैं।
    • द्विपक्षीय समझौतों पर ध्यान: भारत पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से शरणार्थी स्थितियों को संभालना पसंद करता है। यह दृष्टिकोण प्रत्येक स्थिति की विशिष्ट परिस्थितियों पर विचार करते हुए अधिक अनुरूप समाधानों की अनुमति प्रदान करता है।

    भारत के समक्ष वर्तमान शरणार्थी चुनौतियाँ:

    • रोहिंग्या शरणार्थी संकट: भारत बड़ी संख्या में रोहिंग्या शरणार्थियों की मेज़बानी करता है जो म्याँमार में उत्पीड़न के कारण भागकर आए हैं।
      • संभावित सुरक्षा खतरों और संसाधनों पर बोझ संबंधी चिंताओं के साथ, उनकी कानूनी स्थिति तथा अधिकार विवादास्पद बने हुए हैं।
      • उदाहरण: UNHCR का कहना है कि रोहिंग्या सहित म्याँमार के लगभग 79,000 शरणार्थी भारत में निवास करते हैं।
    • श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी स्थिति: भारत ने श्रीलंका में गृहयुद्ध से भागकर आए बड़ी संख्या में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की मेज़बानी की है।
      • हालाँकि कुछ को वापस भेज दिया गया है या नागरिकता प्रदान की गई है, लगभग 58,000 श्रीलंकाई शरणार्थी अभी भी तमिलनाडु में 104 शिविरों में निवास कर रहे हैं।
    • अफगान शरणार्थियों का आना: अफगानिस्तान में हालिया राजनीतिक उथल-पुथल के साथ, भारत में अफगान शरणार्थियों तादाद बढ़ी है, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने अफगानिस्तान में पूर्व के संघर्षों के दौरान भारत में शरण मांगी थी।
    • वैधानिक ढाँचे का अभाव: शरणार्थी कन्वेंशन और प्रोटोकॉल से भारत की अनुपस्थिति के कारण शरणार्थी मुद्दों को संबोधित करने के लिये एक व्यापक वैधानिक ढाँचे की कमी हो गई है, जिसके कारण तदर्थ नीतियाँ तथा विभिन्न शरणार्थी समूहों के साथ असंगत व्यवहार हो रहा है।
    • शरणार्थी शिविरों में चुनौतियाँ: भारत में शरणार्थी शिविरों और बस्तियों को प्रायः भीड़भाड़, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, शिक्षा तथा स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच एवं सुरक्षा व संरक्षण संबंधी चिंताओं जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है।

    निष्कर्ष:

    सुरक्षा, संसाधनों और नीतिगत लचीलेपन के बारे में भारत की चिंताओं ने शरणार्थी कन्वेंशन पर उसके रुख को आकार दिया है, उभरती शरणार्थी चुनौतियाँ इस महत्त्वपूर्ण मानवीय मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने तथा कमज़ोर आबादी के संरक्षण के लिये भारत की प्रतिबद्धता को बनाए रखने के लिये एक मज़बूत कानूनी एवं संस्थागत ढाँचे की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।

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