भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर पश्चिम एशिया के राजनीतिक विकास से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा करते हुए इन चुनौतियों से निपटने के तरीके बताइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पश्चिम एशिया में हाल ही में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- पश्चिम एशिया में राजनीतिक घटनाक्रम से संबंधित भारत की ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- इन चुनौतियों से निपटने के तरीके बताइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत की ऊर्जा सुरक्षा पश्चिम एशिया से होने वाले तेल के स्थिर एवं पूर्वानुमानित आयात पर काफी हद तक निर्भर है। हालाँकि ईरान एवं सऊदी अरब के बीच संवेदनशील सुलह प्रयास, इराक से अमेरिकी सेना की वापसी को लेकर अनिश्चितताएँ तथा इस क्षेत्र में घरेलू अशांति व सत्तावादी प्रवृत्तियों के बढ़ने जैसे हालिया राजनीतिक घटनाक्रम इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं, जिससे यह आपूर्ति शृंखला संवेदनशील हुई है। ऐतिहासिक रूप से, पश्चिम एशिया की भारत के कच्चे तेल के आयात में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है और इसकी कुल कच्चे तेल के आयात में 80% से अधिक की हिस्सेदारी है।
मुख्य भाग:
पश्चिम एशिया में हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों के आलोक में भारत की ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित चुनौतियाँ:
- आपूर्ति में व्यवधान तथा मूल्य में उतार-चढ़ाव:
- पश्चिम एशिया में राजनीतिक अस्थिरता, जिसमें संघर्ष तथा गृह युद्ध (जैसे- इराक, सीरिया और यमन में) शामिल हैं, से तेल एवं गैस की आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। इस व्यवधान से भारत का ऊर्जा आयात प्रभावित होने के साथ इसकी कमी होने से कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
- उदाहरण के लिये होर्मुज जलडमरूमध्य (जिसकी वैश्विक तेल शिपमेंट में काफी भूमिका है) में संघर्ष से भारत की तेल आपूर्ति पर तत्काल एवं गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- कुछ आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता:
- तेल एवं गैस आपूर्ति के लिये कुछ पश्चिम एशियाई देशों पर भारत की अधिक निर्भरता, इन देशों में राजनीतिक घटनाक्रमों के प्रति इसे संवेदनशील बनाती है।
- उदाहरण के लिये भारत के तेल आयात में सऊदी अरब, इराक और यूएई जैसे देशों की प्रमुख हिस्सेदारी है। इन देशों में कोई भी राजनीतिक अस्थिरता या नीति परिवर्तन भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सीधे प्रभावित कर सकता है।
- भू-राजनीतिक गठबंधन एवं प्रतिद्वंद्विता:
- पश्चिम एशिया जटिल भू-राजनीतिक गठबंधनों और प्रतिद्वंद्विता का क्षेत्र है, जिसमें न केवल सऊदी अरब, ईरान एवं तुर्की जैसी क्षेत्रीय शक्तियाँ शामिल हैं बल्कि अमेरिका, रूस तथा चीन जैसी बाहरी शक्तियाँ भी शामिल हैं।
- भारत के लिये स्थिर ऊर्जा आयात बनाए रखते हुए इस गतिशीलता को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण है। इस क्षेत्र में विरोधी गुटों के साथ संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता से भारत की विदेश नीति एवं ऊर्जा रणनीतियों में जटिलता आ सकती है।
- प्रतिबंध और अंतर्राष्ट्रीय नीतियाँ:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध (विशेष रूप से ईरान जैसे देशों पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध) महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करते हैं।
- उदाहरण के लिये ईरान की अनुकूल शर्तों के बावजूद, भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से अपने तेल आयात को कम करना पड़ा है।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों से निपटने के तरीके:
- पश्चिम एशिया से परे तेल आयात में विविधीकरण:
- भारत को अफ्रीका, मध्य एशिया तथा अमेरिका में अन्वेषण एवं उत्पादन परियोजनाओं में निवेश करके अपने तेल तथा गैस आयात स्रोतों में विविधता लाने के अपने प्रयासों में तेज़ी लाने की ज़रूरत है।
- रणनीतिक साझेदारी:
- ईरान-सऊदी अरब के बीच संबंधों को मज़बूत करते हुए, भारत को दोनों देशों एवं अन्य प्रमुख उत्पादकों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखने चाहिये।
- इससे आपूर्ति में व्यवधानों से बचाव के साथ प्रतिस्पर्द्धी कीमतों को सुरक्षित करने में मदद मिल सकती है।
- घरेलू उत्पादन एवं रणनीतिक भंडारण को बढ़ावा देना:
- घरेलू अन्वेषण एवं शोधन क्षमताओं में निवेश करने से भारत की आयातित तेल पर निर्भरता में काफी कमी आ सकती है, जिससे बाहरी असंतुलन का असर कम हो सकता है।
- भारत को क्षेत्रीय अस्थिरता या मूल्य अस्थिरता के कारण संभावित आपूर्ति व्यवधानों से बचने के लिये अपने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार को बढ़ावा देना चाहिये।
- क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना:
- भारत, पश्चिम एशिया में संवाद तथा शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान तंत्र को बढ़ावा देने के लिये अपने बढ़ते प्रभाव का लाभ उठा सकता है।
- अधिक स्थिर क्षेत्र से अधिक विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति वातावरण को बढ़ावा मिल सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश:
- सौर एवं पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में त्वरित निवेश से लंबे समय में पश्चिम एशिया के जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।
- परमाणु ऊर्जा की संभावनाओं पर ध्यान देना:
- परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्वच्छ, आधारभूत ऊर्जा उत्पन्न करते हैं, जिससे अस्थिर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी आ सकती है।
- परमाणु प्रौद्योगिकी में निवेश से भारत के ऊर्जा क्षेत्र को मज़बूती मिल सकती है तथा दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है।
निष्कर्ष:
पश्चिम एशिया की हाल की राजनीतिक अनिश्चितताओं से भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर प्रश्न चिह्न लगा है। भारत को इस जटिल परिदृश्य से निपटने तथा अपनी दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकताओं को सुनिश्चित करने के लिये तेल आयात में विविधता लाने एवं रणनीतिक साझेदारी बनाने के साथ घरेलू उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना चाहिये।