भारत में वृद्धजनों की बढ़ती संख्या के संबंध में निर्भरता अनुपात की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। भारत में वृद्धजनों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों की पहचान करते हुए इनके समाधान हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- निर्भरता अनुपात की अवधारणा का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में बुज़ुर्गों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों की पहचान कीजिये।
- भारत में बुज़ुर्ग आबादी की चिंताओं को दूर करने के लिये कार्रवाई योग्य कदम सुझाइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
निर्भरता अनुपात कार्यशील आयु की आबादी (15-64 वर्ष) पर आश्रितों (15 वर्ष से कम और 64 वर्ष से अधिक के व्यक्ति) के अनुपात को संदर्भित करता है। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग (वर्ष 2021) के अनुसार, भारत का निर्भरता अनुपात वर्ष 2021 में 61% से घटकर वर्ष 2036 तक 53% होने का अनुमान है। हालाँकि यह प्रतीत होता है कि सकारात्मक प्रवृत्ति बुज़ुर्ग आबादी की बढ़ती पूर्ण संख्या के एक महत्त्वपूर्ण पहलू पर हावी है।
मुख्य भाग:
- भारत में बुज़ुर्गों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:
- स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकताओं को विकसित करना:
- बुज़ुर्गों को विभिन्न प्रकार की विशिष्ट चिकित्सा सेवाओं की आवश्यकता होती है, जो प्रायः घर पर ही प्रदान की जाती हैं।
- इसमें वृद्धावस्था विशेषज्ञों के साथ टेलीमेडिसिन परामर्श, गतिशीलता और पुनर्वास के लिये फिज़ियोथेरेपी, अकेलेपन एवं अवसाद को दूर करने के लिये मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, यात्रा से बचने के लिये ऑन-साइट निदान तथा आवश्यक दवाओं तक सुविधाजनक पहुँच शामिल है।
- अभिगम्यता अंतर:
- भारत की स्वास्थ्य देखभाल पहुँच और गुणवत्ता (HAQ) सूचकांक स्कोर 41.2 (वर्ष 2016) वैश्विक औसत 54 अंक से काफी नीचे है।
- इसका अर्थ है देश भर में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, विशेषतः छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच की यह कमी, प्रमुख शहरों के बाहर रहने वाली बुज़ुर्ग आबादी को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ:
- सामाजिक कारक बुज़ुर्गों के लिये स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में बाधा डाल सकते हैं।
- पारिवारिक उपेक्षा के उदाहरण, स्वयं बुज़ुर्गों के बीच निम्न शिक्षा स्तर और सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताएँ जो पेशेवर सहायता प्राप्त करने को हतोत्साहित करती हैं, समय पर चिकित्सा हस्तक्षेप में बाधाएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
- सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की सीमाएँ:
- मौजूदा सामाजिक कल्याण कार्यक्रम जैसे आयुष्मान भारत और सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ बुज़ुर्ग आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को असुरक्षित बनाती हैं।
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि 40 करोड़ भारतीयों के पास स्वास्थ्य देखभाल के लिये कोई वित्तीय कवरेज़ नहीं है। यहाँ तक कि मौजूदा पेंशन योजनाएँ भी अल्प सहायता प्रदान करती हैं, कुछ राज्य केवल ₹350-₹400 प्रति माह प्रदान करते हैं, जहाँ सार्वभौमिकता का अभाव होता है।
- वृद्धावस्था का स्त्रीकरण (The Feminization of Aging):
- एक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति "वृद्धावस्था का स्त्रीकरण" है, जिसमें महिलाएँ पुरुषों से अधिक दर से जीवित रहती हैं। यह घटना स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं और विशेष रूप से बुज़ुर्ग महिलाओं के लिये तैयार की गई सामाजिक सहायता प्रणालियों के संदर्भ में अनूठी चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
सम्मानजनक भविष्य के लिये कार्रवाई योग्य समाधान:
- सामाजिक सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना:
- राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) और प्रधानमंत्री वय वंदन योजना (PMVVY) जैसी योजनाओं के तहत पेंशन कवरेज का विस्तार आवश्यक वित्तीय सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
- केरल राज्य ने अपनी अग्रणी करुणा सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के माध्यम से बुज़ुर्गों के लिये सामाजिक सुरक्षा का एक सफल मॉडल लागू किया है।
- सक्रिय वृद्धावस्था को बढ़ावा देना (Promoting Active Aging):
- सामाजिक गतिविधियों, कौशल विकास कार्यक्रमों और अंतर-पीढ़ीगत स्वयंसेवा में वरिष्ठ नागरिकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने से सामाजिक भेदभाव का सामना किया जा सकता है तथा मानसिक कल्याण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- वृद्धावस्था देखभाल में निवेश:
- वृद्धावस्था विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाना, बुज़ुर्गों के लिये समर्पित स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ स्थापित करना और टेलीमेडिसिन सेवाओं को बढ़ावा देना, उनकी विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकता है।
- आयु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे का निर्माण:
- सार्वजनिक स्थानों और परिवहन प्रणालियों को बुज़ुर्गों के लिये सुलभ बनाने से उनकी गतिशीलता एवं स्वतंत्रता में सुधार हो सकता है। अधिक समावेशी समाज के निर्माण के लिये समुदायों को बुज़ुर्गों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील बनाना महत्त्वपूर्ण है।
- हाल ही में केरल के कोच्चि शहर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा 'आयु-अनुकूल शहरों' के वैश्विक नेटवर्क का सदस्य घोषित किया गया है।
- आयु-अनुकूल शहर WHO के आयु-अनुकूल दृष्टिकोण के मूल्यों और सिद्धांतों को साझा करते हैं तथा बढ़ावा देते हैं, जो आयु-अनुकूल वातावरण के निर्माण के लिये प्रतिबद्ध हैं।
निष्कर्ष:
भारत की वृद्ध आबादी एक अधिक समावेशी समाज के निर्माण का अवसर प्रस्तुत करती है। बेहतरीन तरीके से डिज़ाइन की गई नीतियों, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा में निवेश एवं सहायक वातावरण को बढ़ावा देकर बुज़ुर्गों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का सक्रिय रूप से समाधान करके, भारत अपने वरिष्ठ नागरिकों के लिये एक सम्मानजनक भविष्य सुनिश्चित कर सकता है। जैसे-जैसे राष्ट्र इस रज़त लहर (Silver Wave) पर आगे बढ़ता है, वैसे ही एक समग्र दृष्टिकोण जो आर्थिक सशक्तीकरण, सामाजिक समावेशन और सुलभ स्वास्थ्य सेवा को जोड़ता है, यह एक ऐसे समाज के निर्माण में सहायक होगा जो अपने बुज़ुर्गों को महत्त्व प्रदान करता है तथा उनका सम्मान करता है।