भारतीय इतिहास में स्मारकों एवं कलात्मक अभिव्यक्तियों की संकल्पना तथा निर्माण पर भारतीय दर्शन एवं परंपरा के प्रभावों का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत भारतीय दर्शन और परंपरा को संक्षिप्त रूप से समझाइये।
- भारतीय दर्शन और परंपरा ने विभिन्न अवस्थाओं में भारतीय स्मारकों एवं कलात्मक अभिव्यक्तियों को कैसे प्रभावित किया, इसका विस्तृत रूप से वर्णन कीजिये।
- संपूर्ण इतिहास में संबंधित स्थापत्य के उदाहरणों का उपयोग करते हुए उल्लेख कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारतीय दर्शन भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित दार्शनिक परंपराओं को संदर्भित करता है। इसमें हिंदू, बौद्ध और जैन दर्शन सहित अन्य दर्शन शामिल हैं।
भारत में दर्शन और धर्म के बीच अविभाज्य संबंध ने कलात्मक अभिव्यक्ति के लिये एक शक्तिशाली प्रेरणा के रूप में कार्य किया है। यह प्रभाव प्रारंभिक बौद्ध स्मारकों से लेकर हिंदू मंदिरों की भव्यता तक, बाद में निर्मित मस्जिदों और चर्चों में भी धार्मिक संरचनाओं के वर्णक्रम में स्पष्ट है, ये सभी अपने-अपने धर्मों के अद्वितीय दार्शनिक आधार को दर्शाते हैं।
मुख्य भाग:
- प्रारंभिक सभ्यताएँ:
- सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा) ने उन्नत शहरी नियोजन प्रदर्शित किया और स्वस्तिक जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल किया, जो एक सुविकसित दार्शनिक एवं आध्यात्मिक प्रणाली को रेखांकित करता था, जिसने बाद में हिंदू धर्म को प्रभावित किया।
- वैदिक काल:
- इस अवधि के दौरान स्थापित वर्ण व्यवस्था ने सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित किया और शहरों के विकास को प्रभावित किया।
- वैदिक ग्रंथों ने अनुष्ठानों और मान्यताओं के साथ-साथ दार्शनिक अवधारणाओं की खोज की। अग्नि एवं आकाश जैसे प्रकृति देवताओं की उपासना के कारण अग्नि वेदियों का निर्माण हुआ, जो आज भी महत्त्वपूर्ण है।
- बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उदय:
- अजंता और एलोरा जैसे स्थानों में गुफा चित्र (Cave Painting) एवं मूर्तियाँ इन दार्शनिक शिक्षाओं को चित्रित करने के लिये शक्तिशाली साधन बन गईं।
- बुद्ध के जीवन चक्र और जैन तीर्थंकरों की छवियाँ इसका उदाहरण हैं।
- आजीवक, जैन और बौद्ध धर्म से संबंधित तपस्वियों को ध्यान के लिये स्थानों की आवश्यकता होती थी। लोमस ऋषि, अजंता या एलोरा जैसी चट्टानों को काटकर निर्मित गुफाएँ भिक्षुओं एवं संतों के लिये एकांत स्थान प्रदान करने के लिये बनाई गई थीं।
- अशोक का शासनकाल:
- बौद्ध दर्शन ने अशोक के स्तंभों और स्तूपों के डिज़ाइन को काफी प्रभावित किया। स्तंभ का चक्र धर्म चक्र की गति का प्रतीक है, स्तूप का छत्र बौद्ध धर्म के तीन रत्नों का प्रतिनिधित्व करता है।
- गुप्त काल और उसके बाद:
- हिंदू मंदिर स्थापत्य नागर, वेसर और द्रविड़ जैसी विशिष्ट शैलियों के साथ विकसित हुईं। हिंदू महाकाव्यों तथा पौराणिक कथाओं की कहानियों एवं पात्रों को चित्रित करने वाली मूर्तियाँ मंदिरों की शोभा बढ़ाती हैं।
- खजुराहो मंदिर का क्षेत्र तीन त्रिकोणों में विभाजित है जो तीन लोकों या त्रिलोकीनाथ और पाँच ब्रह्मांडीय पदार्थों या पंचभूतेश्वर के हिंदू प्रतीकों को प्रतिबिंबित करने के लिये एक पंचकोण का निर्माण करते हैं।
- पल्लव एवं चोल राजवंश:
- इन शासकों के अधीन मंदिर सामाजिक केंद्र बन गए। इन्होंने महाबलीपुरम के "रथ" मंदिरों और पल्लवों द्वारा कैलाशनाथर एवं वैकुंठपेरुमल मंदिरों जैसी शानदार संरचनाओं का निर्माण किया।
- मध्यकाल:
- मुगल सम्राट अकबर धर्म का एकीकरण, दीन-ए-इलाही का प्रयास, दार्शनिक संश्लेषण का उदाहरण है। संस्कृतियों के इस सम्मिश्रण ने विभिन्न क्षेत्रों में नवीन कलात्मक अभिव्यक्तियों को जन्म दिया।
- आधुनिक भारत:
- ब्रिटिश शासन के दौरान यूरोपीय स्थापत्य शैली ने लोकप्रियता हासिल की, एक अनूठी इंडो-सारसेनिक शैली उभरी, जिसमें इंडो-इस्लामिक और यूरोपीय प्रभावों का मिश्रण था।
निष्कर्ष:
भारतीय दर्शन ने देश के इतिहास में कलात्मक अभिव्यक्ति के लिये निरंतर प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य किया है। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आधुनिक युग तक, इसने एक समृद्ध और विविध सांस्कृतिक परिदृश्य को पीछे छोड़ते हुए शहरों, स्मारकों एवं कला के डिज़ाइन को आकार दिया है।