भावनात्मक बुद्धिमत्ता को अक्सर प्रभावी नेतृत्व तथा नैतिक निर्णय निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना जाता है। सिविल सेवकों के बीच इसे विकसित करने के उपाय बताइये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता को परिभाषित करते हुए उत्तर शुरू कीजिये।
- प्रभावी नेतृत्व क्षमता एवं नैतिक निर्णय लेने में भावनात्मक बुद्धिमत्ता के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- सिविल सेवकों में इसे विकसित करने के उपायों पर प्रकाश डालिये
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) का आशय भावनाओं को पहचानने, समझने, प्रबंधित करने तथा तर्क करने की क्षमता है। यह सिविल सेवकों के लिये एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है क्योंकि यह मूल्य उन्हें जटिल परिस्थितियों से निपटने, नागरिकों के साथ प्रभावी संबंध बनाने तथा नैतिक निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
मुख्य भाग:
प्रभावी नेतृत्व क्षमता तथा नैतिक निर्णय निर्माण में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का महत्त्व :
- आत्म-जागरूकता एवं भावनात्मक विनियमन: उच्च EI वाले लोगों को अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने के साथ मज़बूती और कमज़ोरियों की गहरी समझ होती है।
- उदाहरण: आईएएस अधिकारी, अशोक खेमका ने कई तबादलों एवं चुनौतियों के बावजूद भावनात्मक प्रबंधन का प्रदर्शन करते हुए अपने निर्णय लेने में अटूट दृढ़ संकल्प को बनाए रखा।
- नैतिक निर्णय निर्माण और सत्यनिष्ठा: भावनात्मक रूप से बुद्धिमान लोग नैतिक निर्णय लेने के क्रम में काफी प्रबंधित होते हैं क्योंकि विभिन्न हितधारकों पर अपने निर्णय के भावनात्मक प्रभाव पर विचार करने की उनकी अधिक संभावना होती है।
- इनकी अपने निर्णयों को अपने मूल्यों एवं सिद्धांतों के साथ जोड़कर, ईमानदारी के साथ कार्य करने की अधिक संभावना होती है।
- उदाहरण: मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में टी.एन. शेषन का कार्यकाल उनकी ईमानदारी, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता तथा अनुकरणीय भावनात्मक बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करते हुए जटिल राजनीतिक परिस्थितियों से निपटने के लिये जाना जाता है।
- अनुकूलनशीलता एवं लचीलापन: उच्च EI वाले लोग बदलती परिस्थितियों को बेहतर ढंग से अनुकूलित करने तथा लचीलेपन के साथ चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं।
- उदाहरण: कोविड-19 महामारी के दौरान, जैसिंडा अर्डर्न (न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री) ने उल्लेखनीय भावनात्मक बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया, जिससे जनता को इस संबंध में आश्वस्त करने तथा प्रभावी संकट प्रबंधन प्रयासों का मार्गदर्शन करने में मदद मिलती है।
- सहानुभूति एवं समझ: भावनात्मक रूप से बुद्धिमान नेतृत्वकर्त्ताओं में दूसरों की भावनाओं को समझने की क्षमता होती है, जिससे उनकी टीमों के बीच मज़बूत संबंध बनने के साथ विश्वास को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण: पेप्सिको की पूर्व सीईओ इंद्रा नूई को सहानुभूतिपूर्ण नेतृत्व शैली के लिये जाना जाता है।
- प्रभावी संचार तथा संघर्ष समाधान: उच्च EI वाले नेतृत्वकर्त्ताओं में मज़बूत संचार कौशल के साथ संघर्षों को प्रभावी ढंग से निपटाने की क्षमता होती है। वे भावनात्मक बुद्धिमत्ता के साथ अपने संदेश प्रसारित करने के साथ यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके उद्देश्यों को समझने के साथ खुले एवं रचनात्मक संवाद को बढ़ावा दिया जाए।
- उदाहरण: दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने अपने नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उदाहरण दिया।
सिविल सेवकों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता को विकसित करने के उपाय:
- प्रदर्शन मूल्यांकन में भावनात्मक बुद्धिमत्ता को शामिल करना: प्रदर्शन मूल्यांकन एवं पहचान कार्यक्रमों के भाग के रूप में भावनात्मक बुद्धिमत्ता दक्षताओं को शामिल करना चाहिये।
- अपने कार्य में उच्च स्तर की भावनात्मक बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करने वाले सिविल सेवकों को पहचानने के साथ उन्हें पुरस्कृत करना चाहिये।
- जॉब शैडोइंग: विविध अनुभव प्राप्त करने तथा सहानुभूति, विविध धारणा एवं भावनात्मक जागरूकता विकसित करने के लिये सिविल सेवकों हेतु जॉब शैडोइंग कार्यक्रम लागू करना चाहिये।
- उदाहरण के लिये भारत में "सिविल सेवा विनिमय कार्यक्रम" द्वारा अधिकारियों के बीच विभिन्न सेवाओं तथा मंत्रालयों के सदस्यों के बीच क्रॉस-फंक्शनल एक्सपोज़र के माध्यम से उनकी भावनात्मक बुद्धिमत्ता में वृद्धि हो सकती है।
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर बल देने के साथ नागरिक फीडबैक केंद्र: न केवल नीतिगत मुद्दों पर, बल्कि सिविल सेवकों के निर्णयों के भावनात्मक प्रभाव पर भी नागरिक दृष्टिकोण का पता लगाने हेतु नागरिक फीडबैक लैब स्थापित करना चाहिये।
- इससे सिविल सेवकों को नागरिकों से प्रत्यक्ष रूप से सीखने के साथ भावनात्मक बुद्धिमत्ता प्रथाओं में सुधार हेतु संबंधित क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता मिलती है।
निष्कर्ष:
इन उपायों को लागू करके सिविल सेवकों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता विकसित की जा सकती है जिससे वे नैतिक निर्णय लेने, हितधारकों के बीच विश्वास बनाने तथा जटिल परिस्थितियों को बेहतर भावनात्मक जागरूकता एवं लचीलेपन के साथ प्रबंधित करने में सक्षम हो सकते हैं।