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प्रश्न :
भारत निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर वर्ष 1990 के बाद के चुनाव सुधारों के प्रभाव तथा लोकतांत्रिक शासन में उनके निहितार्थ का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
07 May, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत जैसे लोकतंत्र में चुनाव सुधारों के महत्त्व के साथ शुरुआत कीजिये।
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की कार्यप्रणाली पर चुनाव सुधारों के प्रभावों का उल्लेख कीजिये।
- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था पर चुनाव सुधारों का प्रभाव बताइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
चुनाव सुधार देश के लोकतांत्रिक ढाँचे को आकार देने, चुनावी प्रक्रिया की अखंडता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत में वर्ष 1990 के बाद के युग में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की कार्यप्रणाली और समग्र लोकतांत्रिक शासन को मज़बूत करने के उद्देश्य से दूरगामी सुधारों की एक शृंखला के साथ एक ऐतिहासिक परिवर्तन देखा गया।
मुख्य भाग:
वर्ष 1990 के बाद के चुनाव सुधारों का प्रभाव:
- भारत निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर:
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVM): वर्ष 1992 में संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में धारा 61A शामिल की और EVM के उपयोग को वैध बनाने एवं चुनावों में उनके उपयोग का मार्ग प्रशस्त करने वाले नियम बनाए। ECI ने वर्ष 1998 में व्यापक रूप से EVM का उपयोग शुरू किया।
- जयललिता और अन्य बनाम भारत निर्वाचन आयोग (2002) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनावों में EVM का इस्तेमाल संवैधानिक रूप से वैध है।
- वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल सिस्टम (VVPAT): वर्ष 2013 में केंद्र सरकार ने संशोधित चुनाव संचालन नियम, 1961 को अधिसूचित किया, जिससे ECI को EVM के साथ VVPAT का उपयोग करने में सक्षम बनाया गया।
- ADR बनाम भारत निर्वाचन आयोग (2024) में सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में यादृच्छिक रूप से 5% सत्यापन के साथ VVPAT के उपयोग की वैधता को बरकरार रखा।
- चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति: मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें व कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिये एक चयन समिति की स्थापना की, जिसमें प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री एवं विपक्ष के नेता शामिल हैं।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने अनूप बरणवाल बनाम भारत संघ मामले (2023) में चुनाव सुधार पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990) और विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट (2015) की सिफारिशों पर ज़ोर दिया।
- इन रिपोर्टों में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिये प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं विपक्ष के नेता के साथ एक समिति का प्रस्ताव रखा गया।
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVM): वर्ष 1992 में संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में धारा 61A शामिल की और EVM के उपयोग को वैध बनाने एवं चुनावों में उनके उपयोग का मार्ग प्रशस्त करने वाले नियम बनाए। ECI ने वर्ष 1998 में व्यापक रूप से EVM का उपयोग शुरू किया।
- लोकतांत्रिक शासन के संदर्भ में:
- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समय का आवंटन: चुनावों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समान समय के आवंटन को लेकर ईसीआई अधिसूचना, 2003 ने राजनीतिक चर्चा को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे विविध आवाज़ों और दृष्टिकोणों को मतदाताओं तक पहुँचने की अनुमति मिल गई है।
- इस प्रावधान ने पक्षपातपूर्ण मीडिया के प्रभाव को कम कर दिया है, मतदाताओं के बीच सूचित निर्णय लेने को बढ़ावा दिया है।
- नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं): नोटा को वर्ष 2013 में चुनावों में पेश किया गया था, जो मतदाताओं को मतपत्र की गोपनीयता बनाए रखते हुए किसी भी उम्मीदवार को वोट देने से परहेज़ करने की क्षमता प्रदान करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को मतपत्रों और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों दोनों में उपरोक्त में से कोई नहीं (नोटा) विकल्प शामिल करने का निर्देश दिया।
- एग्जिट पोल पर प्रतिबंध: वर्ष 2009 का एक प्रावधान लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान अंतिम चरण का मतदान समाप्त होने तक एग्जिट पोल आयोजित करने एवं प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाता है।
- एग्जिट पोल मतदाता के व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे चुनाव के शुरुआती चरण में एक दल के हावी होने पर रुचि-आधारित मतदान से जन-आधारित मतदान की ओर बदलाव हो सकता है।
- मतदाता भागीदारी और आत्मविश्वास में वृद्धि: राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल और मतदाता हेल्पलाइन जैसे मतदाता सुविधा उपायों ने मतदाता जागरूकता एवं सहभागिता में सुधार किया है, जिससे मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई है।
- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समय का आवंटन: चुनावों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समान समय के आवंटन को लेकर ईसीआई अधिसूचना, 2003 ने राजनीतिक चर्चा को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे विविध आवाज़ों और दृष्टिकोणों को मतदाताओं तक पहुँचने की अनुमति मिल गई है।
निष्कर्ष:
वर्ष 1990 के बाद के चुनाव सुधारों ने ECI की कार्यप्रणाली में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे यह स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय चुनाव के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये सशक्त हो गया है। हालाँकि इन सुधारों का लोकतांत्रिक शासन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, लेकिन मौजूदा चुनौतियाँ एवं चिंताएँ जैसे कार्यकारी हस्तक्षेप, चुनावों में धन की शक्ति तथा तकनीकी कमज़ोरियाँ बनी हुई हैं, जिन्हें भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे को और अधिक मज़बूत करने के लिये संबोधित करने की आवश्यकता है।
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