"हितों के टकराव" को परिभाषित कीजिये तथा बताइये कि इससे लोक सेवकों की निर्णय लेने की प्रक्रिया किस प्रकार प्रभावित होती है। यदि हितों के टकराव की स्थिति का सामना करना पड़े, तो आप इसे किस प्रकार हल करेंगे? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- "हितों के टकराव" की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
- लोक सेवकों की निर्णय लेने की प्रक्रिया में हितों के टकराव के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- हितों के टकराव को हल करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
"हितों के टकराव" की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी लोक अधिकारी के लोक कर्त्तव्य तथा निजी हितों के बीच वास्तविक या स्पष्ट टकराव होता है। ऐसी स्थिति में किसी अधिकारी के निजी हित आधिकारिक कर्त्तव्यों के निष्पादन को अनुचित रूप से प्रभावित कर सकते हैं। हितों के टकराव से लोक पदाधिकारियों की सत्यनिष्ठा एवं निष्पक्षता के प्रति लोगों के विश्वास में कमी आती है।
मुख्य भाग:
लोक सेवकों के निर्णय लेने की प्रक्रिया में हितों के टकराव का प्रभाव:
- पक्षपातपूर्ण निर्णय लेना: हितों के टकराव का सामना करने पर लोक सेवक लोगों के कल्याण के बजाय व्यक्तिगत हितों या किसी विशेष समूह के हितों को प्राथमिकता दे सकते हैं। इससे ऐसे निर्णय लिये जा सकते हैं जो व्यापक समुदाय के बजाय स्वयं या उनके सहयोगियों को लाभ पहुँचाते हों।
- निष्पक्षता का क्षरण: हितों के टकराव से निर्णय पक्षपातपूर्ण होने के कारण लोक सेवकों की निष्पक्षता कमज़ोर हो सकती है। व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता देने से निष्पक्ष निर्णय लेना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- पक्षपात: हितों के टकराव की दुविधा वाले लोक सेवक उन व्यक्तियों या संगठनों के प्रति पक्षपात दिखा सकते हैं जिनके साथ उनका व्यक्तिगत संबंध या वित्तीय हित है, जिससे दूसरों के साथ अनुचित व्यवहार हो सकता है।
- ईमानदारी से समझौता होना: हितों के टकराव की दुविधा वाले लोक सेवकों की सत्यनिष्ठा से समझौता हो सकता है जिससे सरकार एवं संबंधित संस्थानों में लोगों का विश्वास कम हो सकता है।
हितों के टकराव की स्थिति को हल करने के क्रम में लोक सेवकों हेतु आवश्यक कदम:
- हितों के टकराव को स्पष्ट करना: सार्वजनिक रूप से या औपचारिक रूप से संबंधित पक्षों जैसे- पर्यवेक्षकों, सहकर्मियों या हितधारकों के हितों के टकराव को स्पष्ट करना चाहिये। यह कदम पारदर्शिता के साथ दूसरों को वस्तुनिष्ठ रूप से स्थिति का आकलन करने की सुविधा देने में निर्णायक है।
- मूल्यांकन: हितों के टकराव की प्रकृति तथा सीमा का मूल्यांकन करना चाहिये। निर्णय निर्माण, संगठन तथा इसमें शामिल हितधारकों पर पड़ने वाले इसके संभावित प्रभावों पर विचार करना चाहिये।
- निर्णय निर्माण: हितों के टकराव की स्थिति को हल करने के लिये सर्वोत्तम कार्रवाई को अपनाना चाहिये। इसमें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से खुद को अलग करना, विवादों के समाधान के लिये व्यवहार में बदलाव लाना या नैतिक सलाहकारों एवं समितियों से मार्गदर्शन प्राप्त करना शामिल हो सकता है।
- निर्णय प्रक्रिया से अलग होना: यदि आवश्यक हो, तो स्वयं को निर्णय लेने की उन प्रक्रियाओं से दूर कर लेना चाहिये जहाँ कोई टकराव हो। इस कदम से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि निर्णय निष्पक्ष और बिना पक्षपात के लिये जाएँ।
- शमन: निर्णय लेने के क्रम में हितों के टकराव के प्रभाव को कम करने हेतु कदम उठाना चाहिये। इसमें निगरानी तंत्र या पारदर्शिता उपायों जैसे सुरक्षा उपायों को लागू करना शामिल हो सकता है।
- निगरानी एवं समीक्षा: यह सुनिश्चित करने के लिये स्थिति की लगातार निगरानी करनी चाहिये कि हितों के टकराव को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जाए। नियमित समीक्षा एवं मूल्यांकन से ऐसे किसी भी नए टकराव या परिवर्तन की पहचान करने में मदद मिल सकती है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- दस्तावेज़ीकरण: हितों के टकराव, इसका प्रकटीकरण तथा इसे हल करने के लिये की गई कार्रवाइयों का दस्तावेज़ीकरण करना चाहिये। दस्तावेज़ीकरण से नैतिक मानकों के साथ संगठनात्मक नीतियों के अनुपालन में मदद मिलती है।
निष्कर्ष:
संघर्षों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करके लोक सेवक लोगों के सर्वोत्तम हित में पारदर्शिता तथा नैतिक आचरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर सकते हैं।