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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में क्षेत्रीय स्तर पर बुनियादी ढाँचे के अंतराल को कम करने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs) की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। देश में PPPs मॉडल के अधिक प्रभावी कार्यान्वयन हेतु सक्षम वातावरण बनाने के उपाय बताइये। (250 शब्द)

    01 May, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण की आवश्यकता और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs) के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत में बुनियादी ढाँचे के अंतराल को कम करने में PPPs की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
    • PPPs मॉडल से संबंधित प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
    • भारत PPPs के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपाय बताइये।
    • एक नवोन्मेषी P4 मॉडल के महत्त्व को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये

    परिचय:

    भारत सकल घरेलू उत्पाद के 5% से भी अधिक मूल्य के बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण के अंतराल का सामना कर रहा है। सरकारी एवं निजी क्षेत्र की संस्थाओं के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाने के क्रम में सार्वजनिक-निजी भागीदारी इसमें निर्णायक रूप में उभरी है।

    मुख्य भाग:

    बुनियादी ढाँचे के अंतराल को कम करने में PPPs की भूमिका:

    • महत्त्वपूर्ण उद्यमों के विकास में तीव्रता आना: PPPs से दिल्ली हवाई अड्डे के विस्तार जैसे महत्त्वपूर्ण उद्यमों में तेज़ी आने के साथ यह विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बने हुए हैं।
      • इसी तरह के सफल मॉडलों ने देश भर में राजमार्ग कनेक्टिविटी को बढ़ाया है, जिसका उदाहरण चेन्नई बाईपास परियोजना है।
    • तकनीकी उन्नति एवं नवाचार: निजी क्षेत्र की दक्षता से अत्याधुनिक सुविधाएँ मिलती हैं।
      • उदाहरण के लिये, मुंबई मेट्रो परियोजना में न्यूनतम व्यवधानों के साथ इसके त्वरित निर्माण हेतु सुरंग बनाने वाली उन्नत मशीनरी को अपनाया गया।
    • साझा जवाबदेहिता: PPPs परियोजना से जोखिमों का समान रूप से वितरण होता है। निजी भागीदार निर्माण में होने वाली देरी के साथ बजट का प्रबंधन करते हैं, जबकि सरकार द्वारा नियामक अनिश्चितताओं का समाधान किया जाता है।
      • इस संतुलित दृष्टिकोण से परिचालन दक्षता एवं परियोजना की गुणवत्ता को प्रोत्साहन मिलता है।
    • परिचालन दक्षता: निजी क्षेत्र की परिचालन विशेषज्ञता से सेवा वितरण मानकों को बढ़ावा मिलता है, जैसा कि जयपुर-किशनगढ़ एक्सप्रेसवे से पता चलता है, इससे यात्रा के समय में काफी कमी आने के साथ समग्र यात्री अनुभव तथा आर्थिक दक्षता में वृद्धि हुई।
    • नवोन्वेषी वित्तपोषण: PPPs के तहत अग्रणी वित्तपोषण तंत्र की सुविधा मिलती है, जैसे कि हैदराबाद आउटर रिंग रोड जैसी परियोजनाओं में नियोजित टोल-आधारित राजस्व मॉडल में देखा गया।
    • सतत् विकास: भारत में PPPs द्वारा अब बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सतत् प्रथाओं को एकीकृत किया जा रहा है।
      • उदाहरण के लिये गुजरात सोलर पार्क, निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता के सहयोग से नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने एवं उसके पर्यावरण प्रबंधन की क्षमता का परिचायक है।

    इन लाभों के बावजूद महत्त्वपूर्ण बाधाएँ बनी हुई हैं:

    • परियोजना चयन और व्यवहार्यता: लाभप्रदता पर अदूरदर्शी (Myopic) फोकस ग्रामीण सड़कों या स्कूलों जैसी सामाजिक रूप से महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं की उपेक्षा का कारण बन सकता है। इससे क्षेत्रीय असमानताएँ बढ़ सकती हैं और कुछ समुदाय वंचित हो सकते हैं।
    • अनुबंध जटिलता: जटिल समझौते विवादों का कारण बन सकते हैं, जैसा कि मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे की शुरुआती निर्माण में देखा गया था।
    • जोखिम आवंटन: सार्वजनिक और निजी संस्थाओं के बीच जोखिमों को निष्पक्ष रूप से साझा करना एक चुनौती है। लागत में कटौती पर अधिक ज़ोर सार्वजनिक क्षेत्र पर दीर्घकालिक रखरखाव देनदारियों का बोझ डाल सकता है।
    • भ्रष्टाचार के लिये प्रजनन भूमि: अपारदर्शी निर्णय लेने की प्रक्रिया और अनुबंध देने में पारदर्शिता की कमी से भ्रष्टाचार के अवसर उत्पन्न होते हैं, जिससे जनता का विश्वास कम होता है।

    भारत में प्रभावी PPPs कार्यान्वयन के उपाय:

    • मानकीकृत PPPs टूलकिट: विभिन्न क्षेत्रों में मानकीकृत अनुबंधों, व्यवहार्यता अध्ययन और सर्वोत्तम प्रथाओं का एक केंद्रीकृत भंडार विकसित करना।
      • यह "PPPs टूलकिट" परियोजना की शुरुआत को सुव्यवस्थित करेगा और लेन-देन की लागत को कम करेगा।
    • जोखिम रेटिंग और बीमा योजनाएँ: PPPs परियोजनाओं के लिये एक जोखिम रेटिंग ढाँचा विकसित करना, जिससे निजी भागीदारों को अनुकूलित बीमा उत्पादों तक पहुँच प्राप्त हो सके जो विशिष्ट परियोजना जोखिमों को कम करते हैं। इससे अधिक वित्तीय सुरक्षा मिलेगी और भागीदारी को प्रोत्साहन मिलेगा।
    • PPPs "शार्क टैंक" पिच: ऑनलाइन "शार्क टैंक" शैली के कार्यक्रम आयोजित करना, जहाँ सरकारी एजेंसियाँ ​​एवं निजी निवेशक प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये PPPs सौदों पर बातचीत करने और उन्हें अंतिम रूप देने के लिये एक साथ आते हैं।
      • यह सार्वजनिक हितों को बढ़ा सकता है, नवीन प्रस्तावों को आकर्षित कर सकता है और PPPs परियोजना के चयन के लिये अधिक पारदर्शी एवं प्रतिस्पर्द्धी वातावरण को बढ़ावा दे सकता है।
    • विश्वविद्यालय-उद्योग PPPs लैब: बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों के लिये नवीन समाधान विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने वाले विश्वविद्यालयों और निजी कंपनियों के बीच संयुक्त प्रयोगशालाएँ स्थापित करना।
      • यह शिक्षा और उद्योग के बीच की खाई को पाट देगा, विशेष रूप से PPPs परियोजनाओं के लिये अनुसंधान एवं विकास की संस्कृति को बढ़ावा देगा।
    • PPPs के लिये सामाजिक प्रभाव बॉण्ड: ग्रामीण विद्युतीकरण या जल उपचार संयंत्रों जैसी सामाजिक रूप से महत्त्वपूर्ण PPPs परियोजनाओं की सफलता से जुड़े सामाजिक प्रभाव बॉण्ड जारी करना।
      • निवेशकों को पूर्व-निर्धारित सामाजिक प्रभाव लक्ष्यों को प्राप्त करने, व्यापक सामाजिक लाभ वाली परियोजनाओं में निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के आधार पर रिटर्न प्राप्त होगा।

    निष्कर्ष:

    PPP का भविष्य और भी अधिक समावेशी मॉडल में निहित हो सकता है: सार्वजनिक, निजी, जन भागीदारी (PPPP) या P4। यह ढाँचा बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में नागरिक भागीदारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानता है। नवाचार, पारदर्शिता और जन-केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाकर, भारत अपनी बुनियादी ढाँचा क्राँति को बढ़ावा देने तथा सभी के लिये अधिक समृद्ध एवं न्यायसंगत भविष्य का निर्माण करने के लिये PPP व PPP की वास्तविक क्षमता के लिये नए मार्ग प्रदान कर सकता है।

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