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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    द्विपक्षीय एवं वैश्विक समूहों में भारत की भागीदारी के इसके राष्ट्रीय हितों से संबंधित महत्त्व एवं प्रभाव पर उपयुक्त उदाहरणों सहित चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    30 Apr, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    निरंतर रूप से विकसित हो रहे वैश्विक परिदृश्य में भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिये रणनीतिक रूप से द्विपक्षीय और वैश्विक समूहों के एक जटिल जाल को नेविगेट करता है। इन संघों के माध्यम से भारत अपने बढ़ते प्रभाव का लाभ उठाने और ऐसी साझेदारियाँ बनाने में सक्षम हुआ है जो इसके मूल मूल्यों एवं उद्देश्यों के अनुरूप हों।

    द्विपक्षीय समूहों में भारत की भागीदारी का महत्त्व:

    • रणनीतिक साझेदारी सुरक्षित करना: अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्भुज सुरक्षा संवाद समुद्री सहयोग को बढ़ावा देता है तथा भारत-प्रशांत में संभावित विरोधियों को रोकता है।
      • वर्ष 2024 में मालाबार नौसैनिक अभ्यास ने इस बढ़ते सैन्य सहयोग को प्रदर्शित किया।
    • आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना: यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ भारत के हालिया मुक्त व्यापार समझौते तरजीही बाज़ार पहुँच प्रदान करते हैं, जिससे अगले पाँच वर्षों के भीतर द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि होगी (भारत सरकार के अनुमान के अनुसार)।
    • तकनीकी सहयोग बढ़ाना: वर्ष 2023 में लॉन्च किया गया US-इंडिया क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ इनिशिएटिव (iCET), महत्त्वपूर्ण रूप से सुरक्षित, सुलभ और लचीली प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र एवं मूल्य शृंखला का निर्माण करेगा।
    • संयुक्त अवसंरचना विकास: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) भारत को खाड़ी के माध्यम से यूरोप से जोड़ेगा। जिसका उद्देश्य आर्थिक कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
    • सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान: ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) समूह सांस्कृतिक एवं शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों को बढ़ावा देता है, यह लोगों से लोगों के बीच संबंध तथा आपसी समझ को बढ़ावा देता है।

    वैश्विक समूहों का प्रभाव:

    • वैश्विक मानदंडों को आकार देना: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों का उदाहरण देती है, जो जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय एजेंडे को प्रभावित करती है।
    • बाज़ार पहुँच का विस्तार: विश्व व्यापार संगठन (WTO) में सदस्यता भारत को निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं पर बातचीत करने और अपने निर्यात के लिये व्यापक बाज़ारों तक पहुँच बनाने के लिये एक मंच प्रदान करती है।
    • वैश्विक चुनौतियों को संबोधित करना: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में भागीदारी भारत को वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और महामारी संबंधी तैयारियों जैसे मुद्दों पर अन्य देशों के साथ सहयोग करने की अनुमति देती है।
    • सतत् विकास को बढ़ावा देना: जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते में भारत की सक्रिय भागीदारी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और सतत् विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देने के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को प्रभावित करना: ग्लोबल साउथ के नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत का बढ़ता प्रभाव इसे वित्तीय स्थिरता और ऋण प्रबंधन, जलवायु शमन आदि जैसे वैश्विक आर्थिक मुद्दों पर चर्चा को आकार देने की अनुमति देता है।

    चुनौतियाँ और विचार:

    • प्रतिस्पर्द्धी हितों को संतुलित करना: अमेरिका और रूस जैसी प्रमुख शक्तियों, जिनके परस्पर विरोधी हित हो सकते हैं, के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना एक चुनौती हो सकती है।
      • यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र में हाल ही में हुए मतदान से भारत का अनुपस्थित रहना इस दिशा में संतुलनकारी कार्य का उदाहरण है।
    • व्यापार सौदों पर बातचीत: शक्तिशाली आर्थिक गुटों के साथ जटिल व्यापार समझौतों में अनुकूल शर्तों पर बातचीत करना समय लेने वाला हो सकता है और इसके लिये सावधानीपूर्वक रणनीति बनाने की आवश्यकता होती है।
      • यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते के लिये चल रही बातचीत इस चुनौती को उजागर करती है।
    • आंतरिक दबावों का प्रबंधन: व्यापार उदारीकरण के लाभों के साथ घरेलू उद्योगों के हितों को संतुलित करना एक कठिन कदम हो सकता है।
      • भारत सरकार को फार्मास्यूटिकल्स जैसे कुछ क्षेत्रों के दबाव का सामना करना पड़ रहा है जो मुक्त व्यापार समझौतों से प्रभावित हो सकते हैं।

    इन चुनौतियों से पार पाने के लिये भारत को STRIDE की आवश्यकता है:

    • S- रणनीतिक कूटनीति: प्रतिस्पर्द्धी हितों को संतुलित करना
    • T- व्यापार वार्ता: जटिल व्यापार सौदों को संभालना
    • R- संबंध प्रबंधन: प्रमुख शक्तियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना
    • I - आंतरिक दबाव: घरेलू उद्योग की मांगों का प्रबंधन
    • D- कूटनीतिक चपलता: वैश्विक गतिशीलता को नेविगेट करना
    • E- आर्थिक रणनीति: व्यापार उदारीकरण के लिये रणनीति बनाना

    इन व्यस्तताओं ने न केवल वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्शों के माध्यम से दुनिया को एक परिवार मानने वाले भारत की राजनयिक स्थिति को बढ़ाया है, बल्कि आर्थिक विकास, सुरक्षा और वैश्विक शासन जैसे क्षेत्रों में अपने राष्ट्रीय हितों की उन्नति को भी सुविधाजनक बनाया है।

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