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प्रश्न :
शासन में वैधानिक, नियामक तथा अर्द्ध-न्यायिक निकायों की भूमिकाओं एवं महत्त्व पर उदाहरण सहित चर्चा कीजिये तथा लोक प्रशासन के संबंध में उनके प्रभाव पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)
30 Apr, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
प्रभावी लोकतंत्र सुव्यवस्थित शासन तंत्र पर निर्भर करता है। भारत में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से परे, वैधानिक, नियामक एवं अर्द्ध-न्यायिक निकायों का एक नेटवर्क लोक प्रशासन को आकार देने, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने तथा प्रणाली के भीतर नियंत्रण व संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
वैधानिक निकाय:
- भूमिका: वे संसद या राज्य विधानसभाओं के एक अधिनियम द्वारा स्थापित होते हैं और संबंधित अधिनियमों से अपना अधिकार प्राप्त करते हैं।
- इन निकायों को विशिष्ट कार्य और उत्तरदायित्व सौंपे गए हैं तथा उनकी शक्तियों को कानूनी ढाँचे के भीतर स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
- महत्त्व: वे लोक प्रशासन में विशेष विशेषज्ञता लाते हैं, दक्षता में सुधार करते हैं और विधायी मंशा का पालन सुनिश्चित करते हैं।
- उदाहरण:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934)
- केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) (सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952)
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993)
नियामक निकाय:
- भूमिका: ये निकाय प्रायः वैधानिक निकायों के उपसमूह होते हैं जिन्हें किसी विशेष क्षेत्र के भीतर नियम बनाने और उनके कार्यान्वयन की देख-रेख करने का काम सौंपा जाता है। वे अनुपालन न करने पर ज़ुर्माना लगा सकते हैं।
- महत्त्व: नियामक निकाय समान अवसर सुनिश्चित करते हैं, उपभोक्ता हितों की रक्षा करते हैं और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देते हैं।
- उदाहरण:
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) दूरसंचार क्षेत्र को नियंत्रित करता है, टैरिफ निर्धारित करता है और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करता है।
- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता मानकों को नियंत्रित करता है।
अर्द्ध-न्यायिक निकाय:
- भूमिका: ये निकाय कार्यकारी और न्यायिक दोनों शाखाओं की विशेषताओं को जोड़ते हैं। वे नियमित न्यायालयों की तुलना में प्रायः सरलीकृत प्रक्रियाओं का पालन करते हुए, कानूनों एवं विनियमों से उत्पन्न होने वाले विवादों का निपटारा करते हैं।
- महत्त्व: वे विवादों के समाधान के लिये तीव्र और अधिक सुलभ मार्ग प्रदान करते हैं, नियमित न्यायालयों में भीड़ को कम करते हैं तथा त्वरित न्याय सुनिश्चित करते हैं।
- उदाहरण:
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) पर्यावरणीय विवादों पर निर्णय देता है, जबकि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग उपभोक्ता शिकायतों का समाधान करता है।
लोक प्रशासन पर प्रभाव:
- उन्नत विशेषज्ञता और सूचित निर्णय लेना: ये निकाय जटिल मुद्दों से निपटने के लिये विशेष ज्ञान का लाभ उठाते हैं, जिससे लोक प्रशासन के भीतर डेटा-संचालित निर्णय लेने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिये, विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024 के लिये भारतीय विकास की अनुमानित दर 6.3% रखी है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से RBI ब्याज दरों को विनियमित करने के लिये इन डेटा-संचालित रणनीतियों का उपयोग करता है।
- सुव्यवस्थित प्रक्रियाएँ और बेहतर सेवा वितरण: वैधानिक एवं नियामक निकाय स्पष्ट दिशा-निर्देश और प्रक्रियाएँ स्थापित करते हैं, जिससे सरकारी एजेंसियों द्वारा सेवा वितरण में मापने योग्य सुधार होता है।
- उदाहरण: हाल ही में FSSAI ने स्पष्ट किया है कि 'हेल्थ ड्रिंक' शब्द FSS अधिनियम 2006 के तहत कहीं भी परिभाषित या मानकीकृत नहीं है।
- जवाबदेही और अनुपालन को बढ़ावा देना: नियामक निकाय मानक निर्धारित करते हैं, अनुपालन लागू करते हैं और हितधारकों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह बनाते हैं, जिससे नैतिक प्रथाओं में स्पष्ट रूप से सुधार होता है।
- पारदर्शिता और नागरिक केंद्रितता को बढ़ावा देना: अर्द्ध-न्यायिक निकाय नागरिकों को शिकायतों का समाधान करने के लिये सुलभ मंच प्रदान करते हैं, जिससे एक अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी लोक प्रशासन प्रणाली का निर्माण होता है।
- दिल्ली के गाज़ीपुर लैंडफिल/भराव क्षेत्र में भीषण आग लगने के बाद, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने स्वत: संज्ञान लिया और शहरों में डंप साइटों को "टाइम बम" के रूप में परिभाषित किया।
- अनुकूलनशीलता और उभरती चुनौतियों का समाधान: ये निकाय नई चुनौतियों और तकनीकी प्रगति से निपटने के लिये नियमों को अनुकूलित एवं विकसित कर सकते हैं, उभरते मुद्दों से स्पष्ट रूप से निपट सकते हैं।
- एल्गोरिथम ट्रेडिंग के लिये SEBI के हालिया नियम एक नई चुनौती हेतु डेटा-संचालित प्रतिक्रिया हैं।
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