जनसांख्यिकीय संक्रमण को परिभाषित करते हुए जनसांख्यिकीय लाभांश की अवधारणा को समझाइये। संभावित आर्थिक विकास तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के संदर्भ में भारत के जनसांख्यिकीय संक्रमण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- जनसांख्यिकीय संक्रमण का परिचय देते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- जनसांख्यिकीय लाभांश की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
- संभावित आर्थिक विकास तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के संदर्भ में भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
जनसांख्यिकीय संक्रमण का आशय औद्योगीकरण एवं आधुनिकीकरण के दौर से गुज़रते हुए उच्च जन्म और मृत्यु दर से निम्न जन्म तथा मृत्यु दर की ओर संक्रमण से है। इसके चार चरण होते हैं: पहले चरण में उच्च जन्म और मृत्यु दर, उसके बाद दूसरे चरण में मृत्यु दर में गिरावट के साथ जन्म दर अधिक बनी रहती है, फिर तीसरे चरण में जन्म दर में गिरावट देखी जाती है तथा अंत में चौथे चरण में निम्न जन्म एवं मृत्यु दर होती है।
मुख्य भाग:
जनसांख्यिकीय लाभांश को समझना:
- जनसांख्यिकीय संक्रमण के दौरान, जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति (विशेष रूप से तीसरे चरण) में जब किसी देश की कार्यशील जनसंख्या (15-64 वर्ष) और आश्रित जनसंख्या (15 से कम एवं 64 वर्ष से अधिक) से अधिक हो जाती है, देखने को मिलती है ।
- यह स्थिति आश्रित आबादी के सापेक्ष बड़े कार्यबल के कारण त्वरित आर्थिक विकास की संभावना उत्पन्न करती है।
भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन का महत्त्व:
- आर्थिक विकास की संभावना:
- भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन इसकी बड़ी और युवा आबादी के कारण महत्त्वपूर्ण है। लगभग 29 वर्ष की औसत आयु के साथ, भारत विश्व स्तर पर सबसे युवा आबादी में से एक है।
- यह जनसांख्यिकीय संरचना पर्याप्त जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करती है क्योंकि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा कार्यबल में प्रवेश करता है, जिससे उत्पादकता और आर्थिक विकास की संभावना बढ़ जाती है।
- बढ़ी हुई श्रम शक्ति:
- अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी कामकाजी उम्र वाली आबादी में से एक होगा, जो एक विशाल श्रम शक्ति प्रदान करेगा और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देगा।
- इस जनसांख्यिकीय लाभ का उपयोग बढ़ी हुई खपत, बचत और निवेश के माध्यम से आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिये किया जा सकता है।
- उत्पादकता को बढ़ावा:
- एक युवा आबादी नवाचार, उद्यमशीलता और तकनीकी प्रगति के माध्यम से उत्पादकता के स्तर को बढ़ा सकती है।
- जनसांख्यिकीय लाभांश भारत के लिये शिक्षा, कौशल विकास और रोज़गार सृजन में निवेश करके अपनी मानव पूंजी का लाभ उठाने का अवसर उत्पन्न करता है, जिससे उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता का उच्च स्तर प्राप्त होता है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
- भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन वैश्विक क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्रदान करता है। विविध कौशल और प्रतिभा वाला एक बड़ा कार्यबल विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकता है, व्यापार को बढ़ावा दे सकता है तथा वैश्विक बाज़ार में भारत की स्थिति को मज़बूत कर सकता है।
- अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाते हुए, भारत सूचना प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और सेवाओं जैसे उद्योगों में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में उभर सकता है।
- सामाजिक विकास के अवसर:
- जनसांख्यिकीय लाभांश स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन सहित सामाजिक विकास पहल के लिये अवसर प्रस्तुत करता है।
- मानव पूंजी विकास में निवेश करने से संपूर्ण समाज में समावेशी विकास और लाभों का समान वितरण सुनिश्चित हो सकता है, जिससे सामाजिक एकजुटता एवं सतत् विकास को बढ़ावा मिलेगा।
चुनौतियाँ और शमन रणनीतियाँ:
- बेरोज़गारी और अल्परोज़गार:
- जनसांख्यिकीय लाभांश के बावजूद, भारत को विशेषकर युवाओं और महिलाओं के बीच बेरोज़गारी एवं अल्परोज़गार से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- इस मुद्दे के समाधान के लिये, सरकार को कौशल विकास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करने, उद्यमिता को बढ़ावा देने और शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में रोज़गार सृजन के लिये एक सक्षम वातावरण बनाने की आवश्यकता है।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा:
- भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरी तरह से लाभ उठाने में एक और चुनौती गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच है।
- कार्यबल को आवश्यक कौशल युक्त बनाने, उनके स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के बुनियादी ढाँचे, व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश आवश्यक है।
- समावेशी विकास नीतियाँ:
- मज़बूत समावेशी विकास नीतियों का अभाव संपूर्ण समाज में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लाभों के समान वितरण में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- हाशिये पर रहने वाले समुदायों, महिलाओं और ग्रामीण आबादी के लिये लक्षित हस्तक्षेप असमानताओं को दूर करने तथा सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने में सहायक हो सकते हैं।
- सतत् विकास:
- सतत् विकास रणनीतियों का कार्यान्वयन अतिरिक्त चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है, जो जनसांख्यिकीय लाभांश की प्राप्ति के साथ-साथ भविष्य की पीढ़ियों के लिये पर्यावरणीय संसाधनों के संरक्षण में बाधा उत्पन्न करती हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा, सतत् कृषि और पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना पर्यावरणीय अखंडता से समझौता किये बिना दीर्घकालिक आर्थिक विकास का समर्थन कर सकता है।
निष्कर्ष:
भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन त्वरित आर्थिक विकास, बढ़ी हुई वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और सामाजिक विकास के लिये एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है। चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करके और लक्षित नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू करके, भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश की पूरी क्षमता का उपयोग कर सकता है तथा 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक शक्ति केंद्र के रूप में उभर सकता है।