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प्रश्न :
भारतीय लोक चित्रकला के विविध रूपों की चर्चा कीजिये। ये देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को किस प्रकार प्रदर्शित करते हैं? (250 शब्द)
29 Apr, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय लोक चित्रकला का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारतीय लोक चित्रकला के विविध रूपों का वर्णन कीजिये।
- वे देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत तथा सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को किस प्रकार दर्शाते हैं, विश्लेषण कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारतीय लोक चित्रकला, कला का एक जीवंत और विविध रूप है, जो देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत तथा सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है। इसकी अनूठी शैलियों, तकनीकों और विषयों से भारत के विभिन्न क्षेत्रों एवं समुदायों की कलात्मक परंपराओं का प्रदर्शन होता है।
मुख्य भाग:
भारतीय लोक चित्रकला के विविध रूप:
- वर्ली पेंटिंग:
- वर्ली पेंटिंग भारतीय लोक कला के सबसे प्रसिद्ध रूपों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र की वर्ली जनजाति से हुई है।
- इसमें शिकार, कृषि और मत्स्याग्रहण जैसे रोजमर्रा के जीवन से संबंधित दृश्यों को चित्रित करने के लिये ज्यामितीय आकृतियों एवं सरल रेखाओं का उपयोग होता है।
- मधुबनी पेंटिंग:
- मधुबनी पेंटिंग, जिसे मिथिला कला भी कहा जाता है, की उत्पत्ति बिहार के मिथिला क्षेत्र से हुई है।
- इन पेंटिंग में पौराणिक कहानियों और दैनिक जीवन के दृश्यों को बनाया जाता है तथा बोल्ड लाइनों एवं चमकीले रंगों का उपयोग करना इनकी विशेषता है।
- पट्टचित्र पेंटिंग:
- पट्टचित्र पेंटिंग ओडिशा राज्य की एक पारंपरिक कला है। इसे प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके बनाया जाता है और जटिल विवरण एवं ज्वलंत रंगों के लिये जाना जाता है।
- पट्टचित्र पेंटिंग में अक्सर हिंदू पौराणिक कथाओं एवं कहानियों को चित्रित किया जाता है तथा इसका धार्मिक समारोहों में उपयोग होता है।
- गोंड पेंटिंग:
- इसका विकास मध्यप्रदेश में हुआ है। इसमें डॉट्स और रेखाएँ, जीवंत रंग तथा लोक कथाओं के साथ वनस्पतियों, जीवों, देवताओं, मिथकों एवं किंवदंतियों को दर्शाया जाता है।
- भील पेंटिंग:
- भील पेंटिंग राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश की भील जनजाति में प्रचलित एक स्वदेशी कला है।
- इसे बिंदुओं एवं रेखाओं का उपयोग करके जटिल पैटर्न और रूपांकनों को बनाने हेतु जाना जाता है।
- इसमें प्रायः जानवरों, प्रकृति तथा आदिवासी जीवन को दर्शाया जाता है, जो भील समुदाय की सांस्कृतिक परंपराओं एवं मान्यताओं को दर्शाते है।
- संथाल चित्रकला:
- संथाल पेंटिंग झारखंड, पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा की संथाल जनजाति के बीच प्रचलित एक पारंपरिक कला है।
- संथाल पेंटिंग में प्रायः दैनिक जीवन, प्रकृति एवं आदिवासी रीति-रिवाज़ों के दृश्यों को बनाया जाता है, जो संथाल समुदाय की सांस्कृतिक विरासत तथा सामाजिक जीवन को दर्शाती है।
सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब:
- पारंपरिक विषय-वस्तु और रूपांकन:
- लोक चित्र अक्सर पारंपरिक विषयों और रूपांकनों को दर्शाते हैं जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं, जो विशिष्ट क्षेत्रों या समुदायों की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।
- इन विषयों में मिथकों, किंवदंतियों, अनुष्ठानों, त्योहारों और ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण शामिल हो सकता है जो लोगों की सांस्कृतिक पहचान के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- क्षेत्रीय विविधता:
- भारत के विभिन्न क्षेत्रों में लोक चित्रकला की अपनी विशिष्ट शैलियाँ हैं, जो स्थानीय रीति-रिवाज़ों, परंपराओं और परिदृश्यों से प्रभावित हैं।
- यह क्षेत्रीय विविधता देश की विविध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है, जो संपूर्ण भारत में विभिन्न उदाहरण के लिये कलाकार बाँस के ब्रश या ताड़ के पत्तों जैसे पारंपरिक उपकरणों के साथ-साथ खनिजों, पौधों या मृदा से प्राप्त प्राकृतिक रंगद्रव्य का उपयोग कर सकते हैं।
- ये सामग्रियाँ और तकनीकें लोक चित्रों की प्रामाणिकता में योगदान करती हैं तथा उनके निर्माण से जुड़ी सांस्कृतिक प्रथाओं को उजागर करती हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता प्रतिबिंब:
- दैनिक जीवन का चित्रण:
- लोक चित्रकलाएँ अक्सर दैनिक जीवन के दृश्यों को चित्रित करती हैं, जिसमें कृषि, मत्स्याग्रहण, शिकार और घरेलू कामकाज जैसी गतिविधियों को दर्शाया जाता है।
- ये चित्रण संपूर्ण भारत में सामाजिक मानदंडों एवं मूल्यों की विविधता को प्रदर्शित करते हुए, विभिन्न समुदायों की सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं, व्यवसायों और जीवन शैली में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
- सामुदायिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व:
- लोक चित्रकला अक्सर उन समुदायों के मूल्यों, विश्वासों और सामाजिक संरचनाओं को प्रतिबिंबित करती हैं जो उन्हें बनाते हैं।
- उदाहरण के लिये चित्रकला में परिवार, सामुदायिक एकजुटता, बड़ों के प्रति सम्मान एवं प्रकृति के प्रति आस्था जैसे विषयों को दर्शाया जा सकता है, जो विशिष्ट समूहों के भीतर प्रचलित सांस्कृतिक मानदंडों और सामाजिक गतिशीलता की झलक प्रस्तुत करते हैं।
- विविधता का उत्सव:
- लोक चित्रकला विषयों, शैलियों और कलात्मक परंपराओं की एक विस्तृत शृंखला का प्रदर्शन करके भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य की विविधता को प्रदर्शित करती हैं।
- मधुबनी पेंटिंग के जटिल पैटर्न से लेकर गोंड पेंटिंग की बोल्ड लाइनों तक, लोक चित्रकला का प्रत्येक रूप भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता में योगदान देता है, जो इसकी विरासत की समृद्धि और जटिलता को उजागर करता है।
- सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण:
- लोक चित्रकला सांस्कृतिक पहचान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संरक्षित और प्रसारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- पारंपरिक विषयों, रूपांकनों और तकनीकों को चित्रित करके, ये पेंटिंग सांस्कृतिक प्रथाओं एवं मान्यताओं के दृश्य अभिलेख के रूप में काम करती हैं, जिससे समुदायों को निरंतरता को बनाए रखने में मदद मिलती है।
निष्कर्ष:
भारतीय लोक चित्रकलाएँ देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता का प्रतिबिंब हैं। वे भारतीय कला की जीवंत और गतिशील प्रकृति को उजागर करते हुए विभिन्न समुदायों की कलात्मक परंपराओं, मान्यताओं एवं जीवन शैली का प्रदर्शन करते हैं। लोक चित्रकला न केवल कलात्मक अभिव्यक्ति का एक रूप है, बल्कि भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने का एक साधन भी है।
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