अनुसूचित जाति उप-योजना एवं जनजातीय उप-योजना दो नीतिगत साधन हैं जो स्पष्ट रूप से अतीत के अनावश्यक पदानुक्रमों को समाप्त करने तथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सशक्तीकरण में तेज़ी लाने और न्यायसंगत समाज के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिये हैं। आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।
01 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय
उत्तर की रूपरेखा :
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अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति सदियों से सबसे उपेक्षित, हाशिये पर तथा शोषित रही है। अस्पृश्यता भारतीय सभ्यता के ऊपर एक कलंक है। इसकी समाप्ति के लिये संविधान के अनुच्छेद 17 में किये गए प्रावधानों के बावजूद यह कई रूपों में मौजूद है जो कि उनके प्रति पूर्वाग्रह अवसरों की समानता तथा विकल्प की स्वतंत्रता हासिल करने में बाधक है।
इनके उत्थान के प्रति संविधान निर्माताओं की गहरी चिंता संवैधानिक युक्तियों में झलकती है जैसे अनुच्छेद 17, 46, 335, 15(4), 330, 332 तथा 338 इत्यादि। अनुच्छेद 46 राज्य को यह निर्देश देता है कि वह कमजोर वर्गों विशेषकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के शैक्षिक तथा वित्तीय हितों को प्रोत्साहित करे। इस प्रत्यक्ष और निर्धारित चिंता के बावजूद उद्देश्यों को पूर्णतः हासिल नहीं किया जा सका है तथा जो भी किया गया है वह दुविधा में और आधे-अधूरे मन से किया गया है।
उनके द्वारा सामना की जा रही विभिन्न चुनौतियों में अस्पृश्यता तथा उत्पीड़न जोत के आकार में कमी, भूमिहीन श्रमिकों की बढ़ती संख्या, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के कल्याण हेतु जारी धन में कमी, परंपरागत व्यवसाय व अधिकांश दलित परिवारों का कृषि श्रमिक होना आदि शामिल हैं। दलितों को दयनीय हालत में ग्रामीण बस्तियों तथा शहरी मलिन बस्तियों में रहने पर मज़बूर किया जाता है कई लोग तो अब भी सिर पर मैला ढोने के कार्य में लगे हुए हैं।
अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के प्रति संवैधानिक दायित्वों की पूर्ति के लिये अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति उप योजनाएँ बनाई गई हैं। यह अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने के लिये एक समेकित रणनीति है।
उद्देश्य और लाभ:
हालाँकि इन योजनाओं में कई कमियाँ हैं, जिसके कारण योजना के अपेक्षित परिणामों को हासिल करने में शिथिलता आई है।
इन कमियों को शीघ्रतापूर्वक दूर किये जाने की आवश्यकता है ताकि इन योजनाओं का निर्बाध कार्यान्वयन हो सके साथ ही केंद्र से नोडल प्राधिकारी की नियुक्ति किये जाने की आवश्यकता है ताकि कार्यान्वयन की नियमित समीक्षा की जा सके।
स्वतंत्रता के पश्चात् के वर्षों में इन प्रयासों के केवल सीमित परिणाम ही नज़र आते हैं। निस्संदेह कई क्षेत्रों में अंतराल अब भी कायम है। इनके कल्याण हेतु संघर्ष जो कि गांधी और अम्बेडकर के साथ शुरू हुआ था को भारत के प्रत्येक नागरिक की सक्रिय भागीदारी द्वारा शीघ्र समाप्त किये जाने की आवश्यकता है।