क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों पर अपने पड़ोसियों के साथ भारत के बदलते संबंधों के प्रभाव की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के पड़ोस का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- क्षेत्रीय स्थिरता पर अपने पड़ोसियों के साथ भारत के बदलते संबंधों के प्रभाव का वर्णन कीजिये।
- विदेश नीति के उद्देश्यों पर अपने पड़ोसियों के साथ भारत के बदलते संबंधों के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत के पड़ोस (जिसे अक्सर दक्षिण एशिया या भारतीय उपमहाद्वीप कहा जाता है) में ऐसे देश शामिल हैं जो भारत के साथ भौगोलिक निकटता और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक संबंध साझा करते हैं। क्षेत्रीय स्थिरता, सुरक्षा एवं आर्थिक विकास पर इसके प्रभाव के कारण यह क्षेत्र भारत के लिये रणनीतिक महत्त्व का है।
मुख्य भाग:
ऐतिहासिक संदर्भ:
- पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों को ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं भू-राजनीतिक कारकों से आकार मिला है।
- स्वतंत्रता के बाद, भारत ने गुटनिरपेक्षता एवं क्षेत्रीय सहयोग पर बल देते हुए क्षेत्रीय नेतृत्व का लक्ष्य रखा।
- हालाँकि, सीमा विवाद तथा सुरक्षा संबंधी चिंताओं जैसी चुनौतियों के कारण कई बार इन संबंधों में तनाव आया है।
वर्तमान परिदृश्य:
- चीन फैक्टर: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी पहलों के माध्यम से दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत के लिये रणनीतिक चिंताओं को जन्म दिया है, जिससे क्षेत्रीय गतिशीलता प्रभावित हो रही है।
- भारत-पाकिस्तान संबंध: संघर्षों और आतंकवाद से प्रभावित भारत-पाकिस्तान संबंधों का क्षेत्रीय स्थिरता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। तमाम कोशिशों के बावजूद कश्मीर जैसे मुद्दे अनसुलझे हैं।
- बांग्लादेश: बांग्लादेश के साथ बेहतर संबंधों से व्यापार एवं सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- श्रीलंका: भारत-श्रीलंका संबंध जटिल रहे हैं, इसमें तमिल अधिकारों जैसे मुद्दे संबंधों को प्रभावित कर रहे हैं। हालाँकि, समुद्री सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में हालिया सहयोग सकारात्मक विकास का संकेत देता है।
- नेपाल: नेपाल के साथ ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ संबंधों में कालापानी सीमा विवाद आदि जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। भारत का जन-केंद्रित परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने का उद्देश्य संबंधों को मज़बूत करना है।
- भूटान: भूटान के साथ मज़बूत ऐतिहासिक संबंधों को विकासात्मक सहयोग के माध्यम से मज़बूत किया गया है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान मिल रहा है।
क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव:
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: पाकिस्तान के साथ तनाव का क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव पड़ता है, विशेषकर परमाणु प्रसार और आतंकवाद के संबंध में।
- चीन फैक्टर: क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव, विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे जैसी पहल के माध्यम से, अपने पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों में जटिलता उत्पन्न करता है।
- आर्थिक सहयोग: पड़ोसियों के साथ बेहतर आर्थिक संबंध बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान आदि की साझा समृद्धि को बढ़ावा देकर स्थिरता को बढ़ावा देते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियाँ: सीमा पार आतंकवाद, अवैध व्यापार और पर्यावरणीय क्षरण जैसे मुद्दों के प्रभावी प्रबंधन के लिये क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
- सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी: भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) और बॉलीवुड जैसी पहलों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक कूटनीति, इस क्षेत्र में सद्भावना और स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद करती है।
भारत की विदेश नीति के उद्देश्य:
- पड़ोसी प्रथम की नीति: पड़ोसियों के साथ संबंधों को प्राथमिकता देना, क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी: दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने से चीन के प्रभाव का मुकाबला होने के साथ भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक उपस्थिति बढ़ती है।
- सामरिक स्वायत्तता: भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए अमेरिका, रूस और चीन जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने पर बल देता है।
- आर्थिक एकीकरण: दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग पहल (BIMSTEC) जैसी पहल का उद्देश्य इस क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण और विकास को बढ़ावा देना है।
- वैश्विक नेतृत्व: UNSC में स्थायी सीट जैसे अंतर्राष्ट्रीय मामलों में एक बड़ी भूमिका की आकांक्षा रखते हुए, पड़ोसियों के साथ भारत की सहभागिता एक जिम्मेदार वैश्विक अभिनेता के रूप में इसकी छवि में योगदान करती है।
आगे की राह:
- सुरक्षा संबंधी दुविधाएँ: बातचीत और सहयोग की अनिवार्यता के साथ सुरक्षा चिंताओं को संतुलित करना एक चुनौती (खासकर कश्मीर जैसे संघर्ष-प्रवण क्षेत्रों में) बनी हुई है।
- चीन का प्रभाव: क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करने के लिये समान विचारधारा वाले देशों के साथ कूटनीतिक एवं रणनीतिक साझेदारी की आवश्यकता है।
- घरेलू राजनीति: नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में घरेलू राजनीतिक गतिशीलता द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर सकती है, जिसके लिये भारत के दृष्टिकोण में लचीलेपन और व्यावहारिकता की आवश्यकता है।
- आर्थिक असमानताएँ: पड़ोसियों के बीच आर्थिक असमानताओं को दूर करना, सतत् विकास और क्षेत्रीय स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण है, इसके लिये बुनियादी ढाँचे एवं क्षमता निर्माण में निवेश की आवश्यकता है।
- ट्रैक II कूटनीति: लोगों से लोगों के बीच संपर्क को मज़बूत करने के साथ ट्रैक II जैसी कूटनीतिक पहल आपसी समझ और विश्वास को बढ़ावा देते हुए आधिकारिक वार्ताओं का पूरक बन सकती है।
निष्कर्ष:
अपने पड़ोसियों के साथ भारत के विकसित होते संबंधों का क्षेत्रीय स्थिरता तथा इसकी विदेश नीति के उद्देश्यों पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। हालाँकि इससे संबंधित चुनौतियाँ बनी हुई हैं लेकिन सक्रिय सहभागिता, संवाद एवं सहयोग से आपसी हितों को बढ़ाने के साथ इस क्षेत्र में शांति तथा समृद्धि के लिये अनुकूल वातावरण बन सकता है।