भारतीय, अमेरिका और ब्रिटेन के संवैधानिक ढाँचे में शक्तियों के पृथक्करण, संघीय ढाँचे और न्यायिक पुनरावलोकन तंत्र की तुलना कीजिये तथा इनके बीच अंतर बताइये। इनके निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत, अमेरिका और ब्रिटेन के संवैधानिक ढाँचे का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत, अमेरिका और ब्रिटेन में शक्तियों के पृथक्करण, संघीय ढांचे और न्यायिक समीक्षा तंत्र की तुलना कीजिये।
- शक्तियों के पृथक्करण, संघीय ढाँचे और न्यायिक समीक्षा तंत्र के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिए।
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परिचय:
विभिन्न देशों के संवैधानिक शासन में शक्तियों का पृथक्करण, संघीय संरचना और न्यायिक समीक्षा मूलभूत सिद्धांत हैं। भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका (US) और यूनाइटेड किंगडम (UK) में इन सिद्धांतों की अलग-अलग रूपरेखाएँ हैं, जिससे उनकी राजनीतिक प्रणाली और शासन को आकार मिलता है।
मुख्य भाग:
शक्तियों का पृथक्करण:
- भारत:
- भारत का संविधान शक्तियों के सम्मिश्रण के साथ संसदीय लोकतंत्र की प्रणाली का प्रतीक है।
- संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण की परिकल्पना की गई है, संसदीय प्रणाली के कारण कार्यपालिका एवं विधायिका के बीच काफी ओवरलैपिंग देखने को मिलती है।
- राष्ट्रपति (जो राज्य का प्रमुख होता है) के पास कार्यकारी शक्तियाँ होती हैं, लेकिन वास्तविक कार्यकारी अधिकार प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका:
- अमेरिकी संविधान में विधायी, कार्यकारी और न्यायिक शाखाओं के बीच शक्तियों का स्पष्ट पृथक्करण है। संविधान में उल्लिखित प्रत्येक शाखा की अपनी अलग शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ हैं।
- इस पृथक्करण को जाँच और संतुलन की प्रणाली द्वारा सुदृढ़ किया जाता है, जहाँ प्रत्येक शाखा को किसी एक शाखा को बहुत शक्तिशाली होने से रोकने के लिये अन्य शाखाओं की शक्तियों के विनियमन का अधिकार होता है।
- यूके:
- अमेरिका के विपरीत, ब्रिटेन में कोई संहिताबद्ध संविधान नहीं है, लेकिन यह संसदीय संप्रभुता की प्रणाली के तहत कार्य करता है।
- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के नाममात्र पृथक्करण के साथ शक्तियों का एकीकरण अधिक स्पष्ट है।
- प्रधानमंत्री, जो सरकार का मुखिया होता है, विधायिका (हाउस ऑफ कॉमन्स) का सदस्य भी होता है। इससे कार्यपालिका एवं विधायिका के बीच की रेखा अस्पष्ट होती है।
संघीय संरचना:
- भारत:
- भारत एक मज़बूत केंद्र सरकार वाला एक संघीय देश है। संविधान में संघ (केंद्रीय) सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन का वर्णन है।
- हालाँकि, भारतीय संघीय संरचना में केंद्रीकरण की ओर झुकाव है, जिसमें केंद्र सरकार के पास राज्यों की तुलना में अधिक शक्तियाँ हैं, विशेष रूप से रक्षा, विदेशी मामले और वित्त जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में।
- संयुक्त राज्य अमेरिका:
- संयुक्त राज्य अमेरिका एक संघीय गणराज्य है जिसमें संघ सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है।
- शक्तियों का यह विभाजन एक मज़बूत केंद्र सरकार के साथ राज्य की स्वायत्तता हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- यूके:
- यूके में सरकार की एकात्मक प्रणाली है, जिसका अर्थ है कि शक्ति राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रित है, तथा स्थानीय संस्थाओं को थोड़ी ही स्वायत्तता प्राप्त है।
- स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड में अलग-अलग विधायी शक्ति की सरकारें हैं लेकिन अंतिम अधिकार अभी भी वेस्टमिंस्टर, यूके संसद के पास है।
न्यायिक समीक्षा की प्रणाली:
- भारत:
- न्यायिक समीक्षा, भारत के संवैधानिक ढांचे का अभिन्न अंग है जो सर्वोच्च न्यायालय को विधायिका द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिकता तथा कार्यपालिका द्वारा किये गए कार्यों की समीक्षा करने की शक्ति प्रदान करती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कई ऐतिहासिक फैसले दिये हैं जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र तथा शासन की दिशा को आकार दिया है।
- अमेरिका:
- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट को मुख्य रूप से न्यायिक समीक्षा के अधिकार के कारण विश्व के सबसे शक्तिशाली न्यायिक निकायों में से एक माना जाता है।
- न्यायालय के पास कॉन्ग्रेस द्वारा बनाए गए कानूनों या राष्ट्रपति द्वारा किये गए कार्यों को असंवैधानिक घोषित करने की शक्ति है।
- यह शक्ति सरकार की अन्य शाखाओं पर नियंत्रण का कार्य करती है और यह सुनिश्चित करती है कि वे संविधान की सीमा के तहत कार्य करें।
- यूके:
- भारत और अमेरिका के विपरीत, ब्रिटेन में न्यायिक समीक्षा के लिये स्पष्ट प्रावधानों वाला कोई संहिताबद्ध संविधान नहीं है।
- हालाँकि, संसदीय संप्रभुता का सिद्धांत यूके के न्यायालयों को यूरोपीय संघ के कानून और मानवाधिकार पर यूरोपीय कन्वेंशन के साथ कानूनों की अनुकूलता की समीक्षा करने की अनुमति देता है।
- इसके बावजूद, संसदीय सर्वोच्चता यूके के संवैधानिक ढाँचे की एक परिभाषित विशेषता बनी हुई है।
प्रभाव:
- भारत:
- भारत के संसदीय लोकतंत्र में लचीलापन देखने को मिलता है लेकिन इससे जवाबदेहिता और कार्यपालिका के हाथों में शक्ति के संकेंद्रण से संबंधित मुद्दे पैदा हो सकते हैं।
- संघीय ढाँचा में क्षेत्रीय स्वायत्तता के साथ केंद्रीय प्राधिकरण को संतुलित करने का प्रयास किया गया है, लेकिन अंतर-राज्य विवाद तथा केंद्र-राज्य संबंध जैसी चुनौतियाँ बनी रहती हैं।
- अमेरिका:
- अमेरिका में, शक्तियों के स्पष्ट पृथक्करण तथा नियंत्रण एवं संतुलन की मज़बूत प्रणाली से राजनीतिक स्थिरता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा में योगदान मिला है।
- हालाँकि, सरकार की शाखाओं के बीच गतिरोध और ध्रुवीकरण प्रभावी शासन में बाधा बन सकता है।
- यूके:
- यूके में शक्तियों का एकीकरण और संहिताबद्ध संविधान की कमी, मज़बूत कार्यकारी नेतृत्व प्रदान करती है, लेकिन इससे लोकतांत्रिक जवाबदेहिता और अधिकारों की सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ती हैं, खासकर स्पष्ट न्यायिक समीक्षा प्रावधानों के अभाव में।
निष्कर्ष:
शक्तियों का पृथक्करण, संघवाद तथा न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत संवैधानिक शासन के लिये मूलभूत हैं, उनका कार्यान्वयन भारत, अमेरिका और यूके में काफी भिन्न है। प्रत्येक देश की राजनीतिक व्यवस्था की मज़बूती और कमज़ोरियों का विश्लेषण करने के लिये इन मतभेदों एवं उनके निहितार्थों को समझना महत्त्वपूर्ण है।