प्रश्न :
आप एक ऐसे ग्रामीण बाहुल्य ज़िले के ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम) हैं जिसे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत तथा पारंपरिक प्रथाओं के लिये जाना जाता है। इस ज़िले में विभिन्न जातीय समुदाय एवं जनजातियाँ रहती हैं, जिनमें से प्रत्येक के अपने अलग-अलग रीति-रिवाज़ और मान्यताएँ हैं। ज़िला प्रशासन आधुनिकीकरण एवं विकास की आवश्यकता के साथ इन परंपराओं के संरक्षण को संतुलित करने हेतु प्रतिबद्ध है।
हाल ही में सरकार के नेतृत्व वाली एक विकास परियोजना तथा आदिवासी समुदाय की पारंपरिक प्रथाओं के बीच संघर्ष पैदा हो गया। इस परियोजना में जनजातियों के वन क्षेत्र (जिसे वे अपनी सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये पवित्र और आवश्यक मानते हैं) से होते हुए एक सड़क का निर्माण करना शामिल है। संबंधित समुदाय इस परियोजना का विरोध कररने के साथ पक्ष रखता है कि इससे न केवल उनकी जीवनशैली बाधित होगी बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान होगा।
डीएम के रूप में, आप विकास परियोजना (जो क्षेत्र में बेहतर कनेक्टिविटी तथा आर्थिक विकास हेतु समर्पित है) के क्रियान्वयन तथा आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक विरासत एवं अधिकारों की रक्षा करने की नैतिक जिम्मेदारी के संदर्भ में दुविधा वाली स्थिति में हैं। स्थानीय प्रशासन के समक्ष इसमें गति लाने के लिये उच्च अधिकारियों का दबाव बना हुआ है।
इस परिदृश्य में डीएम के रूप में अपने समक्ष आने वाली नैतिक दुविधाओं पर चर्चा करते हुए लोक प्रशासन में लोक सेवा मूल्यों तथा नैतिकता को बनाए रखते हुए इस संघर्ष को हल करने के क्रम में अपने द्वारा उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा बताइये।
19 Apr, 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
- ग्रामीण क्षेत्रों में जातीय और जनजातीय समुदायों के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम) के रूप में आपके समक्ष आने वाली नैतिक समस्याओं का वर्णन कीजिये।
- लोक प्रशासन में लोक सेवा मूल्यों तथा नैतिकता को बनाए रखते हुए संघर्ष को हल करने के लिये उठाए जाने वाले कदमों का उल्लेख कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय :
ग्रामीण क्षेत्रों में जातीय समुदायों एवं जनजातियों को असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनके विकास में बाधा डालने के साथ उनकी सांस्कृतिक विरासत को खतरे में डालती है। ये समुदाय अक्सर दूरदराज़ और हाशिये पर रहने वाले क्षेत्रों में निवास करते हैं, जहाँ वे बुनियादी सेवाओं तथा अवसरों तक पहुँचने के लिये संघर्ष करते हैं। समावेशी नीतियों एवं हस्तक्षेपों को तैयार करने के लिये उनकी चुनौतियों को समझना महत्त्वपूर्ण है।
मुख्य भाग :
केस स्टडी से जुड़े तथ्य:
- यह ज़िला अपनी सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक प्रथाओं के लिये प्रसिद्ध है।
- यहाँ विभिन्न जातीय समुदायों और जनजातियों सहित विविध जनसंख्या शामिल है।
- यह मामला सरकार के नेतृत्व वाली विकास परियोजना तथा आदिवासी समुदाय की पारंपरिक प्रथाओं के बीच संघर्ष से संबंधित है।
- इस परियोजना का उद्देश्य जनजातियों द्वारा पवित्र माने जाने वाले वन क्षेत्र से होते हुए एक सड़क का निर्माण करना है।
- यहाँ की जनजाति द्वारा सांस्कृतिक व्यवधान तथा पर्यावरणीय क्षति का हवाला देते हुए इस परियोजना का पुरज़ोर विरोध किया गया है।
- क्षेत्रीय विकास हेतु इस परियोजना में तेज़ी लाने के लिये उच्च अधिकारियों द्वारा दबाव बना हुआ है।
शामिल हितधारक:
- जनजातीय समुदाय: सांस्कृतिक विरासत तथा अधिकारों के संरक्षक, जंगल से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए।
- सरकार: आर्थिक वृद्धि एवं कनेक्टिविटी हेतु विकास के एजेंडे पर कार्यरत।
- ज़िला प्रशासन: परस्पर विरोधी हितों के बीच मध्यस्थता के लिये ज़िम्मेदार।
- उच्च अधिकारी: इनके द्वारा विकास परियोजना को समय पर पूरा करने का दबाव बनाया जा रहा है।
नैतिक दुविधाएँ:
- सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण बनाम विकास अनिवार्यताएँ:
- विकास की अनिवार्यता के साथ स्वदेशी परंपराओं के संरक्षण की आवश्यकता को संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण नैतिक दुविधा उत्पन्न करता है।
- महात्मा गांधी ने कहा था कि किसी भी समाज की असली पहचान इस बात से होती है कि वह अपने सबसे कमज़ोर सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करता है।
- पर्यावरण संरक्षण बनाम आर्थिक संवृद्धि:
- इस संघर्ष में आर्थिक विकास पर पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देने पर सवाल उठाना शामिल है।
- हालाँकि अमर्त्य सेन का मानना था कि विकास को उन वास्तविक स्वतंत्रताओं के विस्तार की प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है जो लोगों को प्राप्त हैं।
- शक्ति समीकरण बनाम उच्च अधिकारियों का दबाव:
- वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव के बीच निर्णय लेने में स्वायत्तता तथा ईमानदारी बनाए रखने की नैतिक चुनौती।
- स्थानीय समुदायों के अधिकार बनाम सरकार के नेतृत्व वाली विकास परियोजनाएँ:
- सरकार के नेतृत्व वाली विकास परियोजनाओं की पृष्ठभूमि में स्थानीय समुदायों के अधिकारों और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- भारत में नर्मदा बचाओ आंदोलन, बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं से जुड़ी नैतिक दुविधाओं तथा स्वदेशी समुदायों एवं पर्यावरण पर उनके प्रभाव को उजागर करता है।
संघर्ष को सुलझाने के लिये कदम:
- समझ और समानुभूति:
- संवाद में शामिल होना : आदिवासी समुदाय की चिंताओं और आकांक्षाओं को समझने के लिये उनके साथ खुली और समानुभूतिपूर्ण बातचीत शुरू कीजिये।
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण: स्वदेशी संस्कृतियों और परंपराओं के प्रति समझ एवं संवेदनशीलता बढ़ाने के लिये सरकारी अधिकारियों के लिये कार्यशालाएँ आयोजित कीजिये।
- नैतिक शिक्षा: प्रशासन के भीतर नैतिक निर्णय लेने की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये लोक सेवा मूल्यों और नैतिकता पर प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना।
- मध्यस्थता और संघर्ष समाधान:
- एक मध्यस्थता समिति स्थापित करना: बातचीत और समझौते की सुविधा के लिये आदिवासी समुदाय, सरकार एवं स्थानीय प्रशासन के प्रतिनिधियों की एक समिति बनाएँ।
- वैकल्पिक मार्गों की पहचान करना : सड़क निर्माण के लिये वैकल्पिक मार्गों का पता लगाएँ जो विकास के उद्देश्यों को पूरा करते हुए पवित्र वन क्षेत्र में व्यवधान को कम करें।
- संघर्ष समाधान तंत्र: पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने के लिये मध्यस्थता या सर्वसम्मति-निर्माण जैसी संघर्ष समाधान तकनीकों का उपयोग कीजिये।
- नैतिक निर्णय लेने की रूपरेखा:
- उपयोगितावादी दृष्टिकोण: समग्र कल्याण को अधिकतम करने वाली कार्रवाई के पाठ्यक्रम को निर्धारित करने के लिये जनजातीय समुदाय और व्यापक क्षेत्रीय विकास दोनों पर विकास परियोजना के परिणामों का मूल्यांकन कीजिये।
- अधिकार-आधारित दृष्टिकोण: मौलिक नैतिक सिद्धांतों के रूप में स्वदेशी अधिकारों और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा को प्राथमिकता दीजिये, भले ही इसके लिये कुछ विकास लक्ष्यों से समझौता करना पड़े।
- सदाचार नैतिकता: सार्वजनिक प्रशासन में नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिये निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में समानुभूति, अखंडता और विविधता के प्रति सम्मान जैसे गुणों को विकसित करना।
- पारदर्शिता और जवाबदेही:
- लोक परामर्श: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में साझेदारों को शामिल करके और प्रस्तावित विकास परियोजनाओं पर उनका इनपुट मांगकर पारदर्शिता सुनिश्चित कीजिये।
- जवाबदेही तंत्र: विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर नज़र रखने और प्रभावित समुदायों द्वारा उठाई गई किसी भी शिकायत या चिंता का समाधान करने के लिये निगरानी एवं जवाबदेही के लिये तंत्र स्थापित कीजिये।
निष्कर्ष:
विकास की अनिवार्यताओं और सांस्कृतिक संरक्षण के बीच संघर्ष से उत्पन्न नैतिक दुविधाओं से निपटने के लिये समानुभूति, संवाद और नैतिक निर्णय लेने की रूपरेखा पर आधारित एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में मेरी ज़िम्मेदारी लोक प्रशासन में सार्वजनिक सेवा मूल्यों और नैतिकता के सिद्धांतों को बनाए रखते हुए आदिवासी समुदाय की आकांक्षाओं तथा क्षेत्र की विकासात्मक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाने में निहित है।