संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने में न्यायिक समीक्षा के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे में इसकी भूमिका को प्रदर्शित करने वाले उदाहरण दीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- न्यायिक समीक्षा/पुनर्वलोकन के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- संविधान के सिद्धांतों को बनाए रखने में न्यायिक समीक्षा के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालने वाले उदाहरण प्रस्तुत कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
न्यायिक समीक्षा भारत के संविधान में निहित सिद्धांतों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण है। यह संविधान की सर्वोच्चता सुनिश्चित करने, राज्य के अंगों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने तथा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिये एक तंत्र के रूप में कार्य करती है।
मुख्य भाग:
संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने में न्यायिक समीक्षा की भूमिका:
- संवैधानिक सर्वोच्चता सुनिश्चित करना:
- न्यायिक समीक्षा से न्यायपालिका को विधायी एवं कार्यकारी कार्यों की संवैधानिकता की समीक्षा करने का अधिकार मिलता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि विधि और नीतियाँ संविधान में निर्धारित सिद्धांतों के अनुरूप हैं।
- उदाहरण के लिये, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संसद संविधान की मूल संरचना को नहीं बदल सकती है, इस प्रकार इसकी सर्वोच्चता की पुष्टि होती है।
- मौलिक अधिकारों की रक्षा:
- न्यायिक समीक्षा के प्राथमिक कार्यों में से एक संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) और के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) जैसे ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से न्यायपालिका ने मौलिक अधिकारों के दायरे का विस्तार करने के साथ राज्य एवं गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के खिलाफ उनके प्रवर्तन को सुनिश्चित करने में भूमिका निभाई।
भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे में भूमिका:
- कार्यकारी और विधायी कार्यों पर नियंत्रण:
- न्यायिक समीक्षा से कार्यकारी और विधायी शाखाओं की शक्तियों पर नियंत्रण रहता है, जो उन्हें उनकी संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन करने से रोकती है।
- उदाहरण के लिये, इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव की अखंडता को बनाए रखने में न्यायपालिका की भूमिका पर बल देते हुए, चुनावी कदाचार के आधार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को शून्य घोषित कर दिया।
- संघवाद की रक्षा करना:
- भारत के संघीय ढाँचे को न्यायिक समीक्षा के माध्यम से संरक्षित किया जाता है, क्योंकि न्यायपालिका केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच विवादों का फैसला करती है।
- कर्नाटक राज्य बनाम भारत संघ (1977) जैसे मामलों ने सहकारी संघवाद को बढ़ावा देते हुए केंद्र एवं राज्यों की संबंधित शक्तियों को रेखांकित किया है।
जवाबदेहिता और सुशासन सुनिश्चित करना:
- मनमाने कार्यों पर अंकुश लगाना:
- न्यायिक समीक्षा, सरकार की मनमानी कार्रवाइयों के खिलाफ निवारक के रूप में कार्य करती है, जिससे जवाबदेहिता एवं सुशासन को बढ़ावा मिलता है।
- विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये, जिससे सरकार को कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के क्रम में विधि निर्माण हेतु मजबूर होना पड़ा।
- विधि के शासन को बढ़ावा देना:
- कानूनों की व्याख्या करके तथा संविधान के साथ उनकी अनुरूपता सुनिश्चित करके, न्यायिक समीक्षा द्वारा विधि के शासन को मज़बूत बनाने में भूमिका निभाई जाती है।
- इसके उल्लेखनीय उदाहरणों में एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) मामला शामिल है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बनाए रखते हुए राजनीतिक कारणों से राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने को खारिज कर दिया।
निष्कर्ष:
न्यायिक समीक्षा संविधान के सिद्धांतों को बनाए रखने, सरकार की जवाबदेहिता सुनिश्चित करने, मौलिक अधिकारों की रक्षा करने तथा सुशासन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे-जैसे भारत का लोकतांत्रिक ढाँचा विकसित हो रहा है, संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारे के आदर्शों को संरक्षित करने में न्यायिक समीक्षा का महत्त्व अपरिहार्य बना हुआ है।