सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण तथा राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में भारतीय शास्त्रीय संगीत की भूमिका पर चर्चा कीजिये। समाज पर इसके प्रभाव को उदाहरण सहित बताइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय शास्त्रीय संगीत का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- सांस्कृतिक विरासत तथा राष्ट्रीय एकता के संरक्षण में भारतीय शास्त्रीय संगीत की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- समाज पर इसके प्रभाव को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
शास्त्रीय भारतीय संगीत, संगीत का एक जटिल और प्राचीन रूप है जिसकी जड़ें हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथ वेदों में निहित हैं, जो लगभग 1500 ईसा पूर्व के हैं। इसे दो मुख्य परंपराओं में विभाजित किया गया है: हिंदुस्तानी संगीत, (जो उत्तर भारत में प्रचलित है) और कर्नाटक संगीत (जो दक्षिण भारत में लोकप्रिय) है।
मुख्य भाग:
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण:
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति सामवेद जैसे प्राचीन ग्रंथों से हुई है, जो इसकी गहन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं भारतीय परंपराओं से संबंध को प्रदर्शित करता है।
- ज्ञान का हस्तांतरण: शास्त्रीय संगीत में गुरु-शिष्य परंपरा (शिक्षक-शिष्य परंपरा) की प्रमाणिकता को संरक्षित करते हुए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान एवं कौशल का हस्तांतरण सुनिश्चित हुआ है।
- परंपरा को बनाए रखना: शास्त्रीय संगीत में मज़बूत नियमों तथा परंपराओं (जैसे कि राग प्रणाली, जो पीढ़ियों से चली आ रही है) का पालन किया गया है, जिससे भारत की संगीत विरासत का संरक्षण सुनिश्चित हुआ है।
- उदाहरण के लिये, मध्यकालीन भारत के भक्ति और सूफी संतों ने सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देते हुए, भक्ति गीतों (भजन) एवं कव्वालियों के माध्यम से ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति को व्यक्त किया।
- इसी तरह आधुनिक समय के संगीतकार जैसे- ए.आर. रहमान और ज़ाकिर हुसैन द्वारा समकालीन शैलियों के साथ शास्त्रीय तत्त्वों का समावेश करने के क्रम में व्यापक दर्शकों तक पहुँच के माध्यम से पीढ़ीगत अंतराल को कम करने में भूमिका निभाई गई है।
राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना:
- सांस्कृतिक एकता: शास्त्रीय संगीत एक सामान्य सांस्कृतिक सूत्र के रूप में कार्य करते हुए विविध पृष्ठभूमि के लोगों को एकजुट करने में भूमिका निभाता है। इसकी क्षेत्रीय, भाषाई एवं धार्मिक बाधाओं को कम करने के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने में भूमिका है।
- राष्ट्रगान: रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित भारतीय राष्ट्रगान, "जन गण मन", शास्त्रीय रागों पर आधारित है, जो राष्ट्रीय प्रतीकों के संदर्भ में शास्त्रीय संगीत के प्रभाव को दर्शाता है।
- समावेशी प्रकृति: शास्त्रीय संगीत में विभिन्न क्षेत्रीय शैलियों एवं वाद्ययंत्रों का समायोजन शामिल है, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता का परिचायक है। इस समावेशिता से विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव तथा समन्वय को बढ़ावा मिलता है।
- शास्त्रीय संगीत समारोह और सवाई गंधर्व भीमसेन महोत्सव एवं चेन्नई संगीत सीज़न जैसे उत्सव विविध पृष्ठभूमि के कलाकारों तथा दर्शकों को एक साथ लाते हैं, जिससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान एवं समझ को बढ़ावा मिलता है।
- विविधता में एकता: शास्त्रीय संगीत द्वारा भारत में सांस्कृतिक विविधता में एकता को महत्त्व मिलता है। हिंदुस्तानी और कर्नाटक जैसी विभिन्न शैलियाँ, भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रदर्शित करती हैं।
समाज पर प्रभाव:
- आध्यात्मिक और भावनात्मक उन्नयन: शास्त्रीय संगीत को भावनात्मक और आध्यात्मिक उन्नयन के लिये जाना जाता है। इससे लोगों का जीवन समृद्ध होने के साथ शांति एवं समन्वय की भावना को बढ़ावा मिलता है।
- सामाजिक एकजुटता: शास्त्रीय संगीत द्वारा अक्सर सामाजिक और धार्मिक समारोहों के एक अभिन्न अंग के रूप में समुदायों को एक साथ लाकर सामाजिक बंधनों को मज़बूत करने में भूमिका निभाई जाती है।
- सांस्कृतिक त्योहार: शास्त्रीय संगीत सांस्कृतिक त्योहारों जैसे कि नवरात्रि, दिवाली एवं दुर्गा पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो भारतीय सांस्कृतिक समारोहों में इसकी अभिन्न भूमिका को प्रदर्शित करता है।
- शैक्षिक मूल्य: अपने कलात्मक मूल्य के अलावा, शास्त्रीय संगीत के शैक्षिक लाभ भी हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि संगीत सीखने से संज्ञानात्मक कौशल, स्मृति एवं एकाग्रता को बढ़ावा मिलता है।
निष्कर्ष:
भारतीय शास्त्रीय संगीत द्वारा भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक के रूप में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के साथ समाज में समन्वय बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। यह सांस्कृतिक अभिव्यक्ति तथा सामाजिक एकजुटता का एक शक्तिशाली माध्यम है।