क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने तथा भू-राजनीतिक मुद्दों को हल करने के क्रम में भारत की 'पड़ोसी प्रथम की नीति' के महत्त्व एवं संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पड़ोसी प्रथम की नीति/नेबरहुड फर्स्ट नीति को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट नीति' के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।
- भू-राजनीतिक मुद्दों को हल करने में भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट नीति' में निहित चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत की 'पड़ोसी प्रथम नीति' का उद्देश्य अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ संबंधों को मज़बूत करना है। हालाँकि यह नीति क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने तथा भू-राजनीतिक मुद्दों को हल करने में महत्त्वपूर्ण है लेकिन इससे संबंधित कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
मुख्य भाग:
पड़ोस प्रथम नीति का महत्त्व :
- सामरिक महत्त्व :
- भारत के पड़ोस में ऐसे देश शामिल हैं जो इसकी सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। इन देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने से भारत की भू-राजनीतिक स्थिति एवं सुरक्षा में वृद्धि होगी।
- व्यापार, सुरक्षा तथा कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग से हाल के वर्षों में भारत-बांग्लादेश संबंधों में सुधार देखा गया है।
- भूमि सीमा समझौता (LBA) और तीस्ता नदी जल-बँटवारा जैसे समझौते सफल द्विपक्षीय पहल के उदाहरण हैं।
- व्यापार तथा आर्थिक अवसर:
- पड़ोसी देशों से निकटता के चलते व्यापार संबंधों के साथ आर्थिक अवसर मिलते हैं।
- बेहतर सहयोग से व्यापार की मात्रा, निवेश प्रवाह तथा इसमें शामिल सभी पक्षों के लिये आर्थिक विकास में वृद्धि हो सकती है।
- क्षेत्रीय स्थिरता:
- पड़ोसी देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाने से आतंकवाद, उग्रवाद तथा सीमा पार अपराधों जैसी आम चुनौतियों का समाधान करके क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
- सांस्कृतिक तथा लोगों से लोगों के बीच समन्वय को बढ़ावा:
- भारत के अपने पड़ोसियों के साथ गहन सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक संबंध हैं। लोगों से लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत करने से आपसी समझ एवं विश्वास को बढ़ावा मिलता है, जिससे सतत् राजनयिक संबंधों का आधार तैयार होता है।
पड़ोसी प्रथम की नीति को लागू करने में चुनौतियाँ:
- ऐतिहासिक तनाव:
- ऐतिहासिक संघर्ष एवं क्षेत्रीय विवाद, सहयोग को बढ़ावा देने में चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं। देशों के बीच अविश्वास तथा तनाव से द्विपक्षीय संबंधों में बाधा आती है।
- समन्वय के कई प्रयासों के बावजूद, सीमा पार आतंकवाद तथा कश्मीर जैसे मुद्दों के कारण भारत-पाकिस्तान संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।
- इन विवादास्पद मुद्दों को हल करने में प्रगति की कमी, नेबरहुड फर्स्ट नीति की सीमाओं को उजागर करती है।
- चीन का प्रभाव:
- भारत के पड़ोसी देश चीन का बढ़ता प्रभाव, भारत की पड़ोसी प्रथम नीति के लिये चुनौती है।
- पड़ोसी क्षेत्रों में बीजिंग के आर्थिक निवेश तथा बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कारण अक्सर भारत के लिये चुनौतियाँ प्रस्तुत होने के साथ भू-राजनीतिक तनाव पैदा होता है।
- आंतरिक अस्थिरताएँ:
- कई पड़ोसी देश राजनीतिक अशांति, जातीय संघर्ष एवं शासन संबंधी मुद्दों के रूप में आंतरिक अस्थिरता का सामना कर रहे हैं। ये आंतरिक चुनौतियाँ, स्थायी समन्वय के प्रयासों में बाधक बनती हैं।
- शक्ति असंतुलन:
- भारत के विस्तृत आकार एवं क्षमताओं को कभी-कभी छोटे पड़ोसियों द्वारा भय के रूप में देखा जाता है, जिससे भारतीय पहल एवं हस्तक्षेप में बाधा आती है।
- बुनियादी ढाँचे का अभाव:
- कनेक्टिविटी एवं बुनियादी ढाँचे के अभाव के कारण क्षेत्रीय एकीकरण प्रयासों में बाधा आती है।
- बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से देशों के बीच भौतिक कनेक्टिविटी में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है लेकिन इसके कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ हैं।
चुनौतियों को हल करने की रणनीतियाँ:
- राजनयिक समन्वय:
- देशों के बीच चिंताओं को दूर करने तथा विश्वास को बनाए रखने के लिये विभिन्न स्तरों पर निरंतर राजनयिक समन्वय आवश्यक है। नियमित उच्च-स्तरीय राजनयिक वार्ता से देशों के बीच ऐतिहासिक अविश्वास को दूर करने में मदद मिल सकती है।
- दक्षिण एशिया में चीन की BRI परियोजनाओं, जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), से इस क्षेत्र में भारत के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहल के माध्यम से भारत की प्रतिक्रिया, वैकल्पिक विकास मॉडल के माध्यम से चीन के प्रभाव को संतुलित करने के प्रयासों को प्रदर्शित करती है।
- आर्थिक सहयोग:
- आर्थिक सहयोग पर बल देने से देशों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कम हो सकती है। दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) जैसी पहल और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं से आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है।
- सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी:
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षिक छात्रवृत्ति तथा पर्यटन के माध्यम से भारत को सॉफ्ट पावर का लाभ उठाने तथा लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
- बहुपक्षीय दृष्टिकोण:
- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) जैसे बहुपक्षीय मंचों में शामिल होने से भारत को द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने की सुविधा मिलती है।
- संघर्ष समाधान तंत्र:
- संघर्ष समाधान तंत्र एवं विश्वास-निर्माण उपायों को प्राथमिकता देने से क्षेत्रीय विवादों तथा ऐतिहासिक शिकायतों का समाधान किया जा सकता है। लंबे समय से चले आ रहे विवादों को सुलझाने में विमर्श के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता है।
निष्कर्ष:
भारत की पड़ोसी प्रथम की नीति क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने तथा दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक मुद्दों को हल करने में प्रभावी है। इससे संबंधित चुनौतियों के बावजूद अपने पड़ोसियों के साथ संबंध बढ़ाने के भारत के प्रयास इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता तथा विकास को बढ़ावा देने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।